अब मुझे खुली सांस लेनी है
मुझे मेरे हिसाब से ज़िन्दगी जीनी है,
बहन, बेटी, बीवी और माँ के अलावा मुझे अब खुद अपनी पहचान बननी है।
मेरे हक़ और अधिकार की अब मुझे खुद लड़ाई लड़नी है
अब बहुत हो चुका घुट-घुटकर जीना
अब बहुत हो चुका ताने सुनना
अब बहुत हो चुका किसी की झूटी इज़्जत बनना और उसे संभालना।
अब बहुत हो चुका अन्याय और अत्याचार को सहना
अब मुझे मेरी आज़ादी की पहल करनी है,
मुझे मेरे हिसाब से ज़िन्दगी जीनी है।
अब बर्दाश्त नहीं करूंगी, आम ज़िन्दगी में दोयम दर्ज़ा
अब बर्दाश्त नहीं करूंगी, अगर कोई मुझे कहे एक बोझ और कर्ज़ा,
अब बर्दाश्त नहीं करूंगी, किसी भी सीता को भुगतनी पड़े बेवजह सज़ा
अब बर्दाश्त नहीं करूंगी, कोई जब चाहे मुझे कहे घर से निकल जा।
अब मुझे खुद की परवाह करनी है
मुझे मेरे हिसाब से ज़िन्दगी जीनी है,
अब मैं सत्ता और समाज से सवाल पूछूंगी
अब मैं समाज में चल रही कुरुतियों और कुप्रथाओं का विरोध करूंगी।
अब मैं अन्याय और अत्याचार के खिलाफ खुद की बुलंद आवाज़ बनूंगी
अब मैं अपने हक़ की लड़ाई लड़ने वाली महिलाओं के साथ खड़ी रहूंगी,
अब मुझे समाज को सही राह दिखानी है
मुझे मेरे हिसाब से ज़िंदगी जीनी है।
अब मैं मेरी ज़िन्दगी के फैसले खुद करूंगी
अब जो मैं बनना चाहती हूं, वही बनूंगी,
अब जो मुझे पहनना है, मैं वही पहनूंगी
अब मैं समाज की घटिया सोच को बदलूंगी।
अब मुझे मेरे खुद के वजूद की अहमियत समझनी है
मुझे मेरे हिसाब से ज़िंदगी जीनी है,
अब मैं महिला को महिला समझने वाला समाज चाहती हूं
अब मैं मेरे खुद के अधिकार और हक़ चाहती हूं।
अब मैं समाज की घटिया और महिला विरोधी सिस्टम में बदलाव चाहती हूं
अब मैं महिलाओं के लिए सुरक्षित देश चाहती हूं,
अब मुझे इस बदलाव की कहानी लिखनी है
मुझे मेरी ज़िंदगी अपने हिसाब से जीनी है।