एक कहावत है, “एक आदमी जो देखता है, वही सोचता है और जो सोचता है, वही कहता है। जो कहता है, वही करता है और जो करता है, वैसा ही बन जाता है।”
इसलिए एक आदमी क्या देखता है बल्कि हम कहें एक आदमी को क्या दिखाया जाता है यह बहुत महत्व पूर्ण हैं। एक समाज में एक व्यक्ति को जो दिखाया जाएगा, धीरे-धीरे वैसी ही प्रवृत्ति उस समाज में पनपने लगती है।
आज कल ओ.टी.टी. मनोरंजन के साधन के विकल्प के रूप में बहुत तेजी से उभरा है। ओ.टी. टी. को ओवर द टॉप मीडिया प्लेटफार्म रूप में परिभाषित किया जाता है। अर्थात मनोरंजन का वो साधन, जो इंटरनेट पर आसानी से उपलब्ध है।
पहले सिनेमा को मनोरंजन के साधन के रूप में देखा जाता था। जैसा कि सिनेमा से पहले सर्कस, नाटक इत्यादि मनोरंजन के साधन थे। फिर टेलीविज़न और केबल ऑपरेटर का समय आया तो वहीं आजकल ओ.टी.टी मनोरंजन के विकल्प के रूप में उभरा है।
अश्लील दृश्य और संभोग किसकी ज़रूरत?
कुछ दिन पहले तक नेटफ्लिक्स हीं मुख्यतः ओ.टी. टी. के रूप में सेवा प्रदान करता था। आजकल एम.एक्स.प्लेयर, वूट, डिज्नी हॉटस्टार, अमेज़न प्राइम, ए.एल.टी. बालाजी इत्यादि इस तरह की सेवाएं प्रदान कर रहे हैं और आने वाले दिनों में बहुत सारी नई कंपनियां इस दिशा में प्रयासरत हैं।
ओ.टी.टी. के लोकप्रिय होने का कारण यह है कि इसमें आम दर्शक अपनी सुविधानुसार कभी भी कोई भी प्रोग्राम देख सकता है लेकिन समस्या ओ.टी. टी. पर दिखाए गए अश्लील दृश्यों और भाषा के उपयोग से है।
सबसे बड़ी चिंताजनक बात यह है कि ओ.टी.टी. के वेब सीरीज़ अश्लील सम्भोग के दृश्यों और अश्लील भाषा के प्रयोगों से भरे पड़े हैं, जो भी इन दृश्यों को देखेगा स्वभाविक है इसका निश्चित रूप से गलत असर पड़ेगा, खासकर युवा पीड़ी पर।
आश्रम , मस्तराम , चरम सुख इत्यादि वेब सीरीज़ अश्लील सम्भोग के दृश्यों और अश्लील भाषा के प्रयोगों से परिपूर्ण हैं। केवल आर्थिक लाभ के लिए वेब सीरीज़ के निर्माता कुछ भी दिखाने से परहेज़ नहीं करते हैं।
मौलिकता का पर्याय क्या?
ओ.टी.टी. के समर्थक कहते हैं कि कहानी को ज़्यादा मौलिक दिखाने के लिए अश्लील सम्भोग के दृश्य और अश्लील भाषा के प्रयोग, हिंसा का प्रदर्शन ज़रुरी है लेकिन मौलिकता के नाम पर क्या दिखाया जाए ये शायद किसी के लिए ज़रूरी नहीं?
क्या मौलिकता की नाम पर अश्लील सम्भोग के दृश्य, अश्लील भाषा का प्रयोग, हिंसा आदि का प्रदर्शन करना जरुरी है?
इनका समर्थन करने वाले साथ ही यह भी कहते हैं कि वेब सीरीज़ परिवार के साथ नहीं देखे जाते, इनको हरेक व्यक्ति अपने मोबाइल पर अकेले ही देखता है और यदि हम ऐसे लोगों के तर्क से जाते हैं कि एक वेब श्रृंखला को अकेले देखा जा सकता है, तब क्या इसे कुछ भी दिखाने की अनुमति दी जानी चाहिए?
क्या वयस्क सामाग्री सीरीज़ में नैतिक है?
क्या किशोरों और अन्य दर्शकों के दिमाग को किसी भी हद तक प्रदूषित करने की अनुमति दी जानी चाहिए? उत्तर निश्चित रूप से नहीं होगा! ऐसी वयस्क सामग्री के प्रदर्शन पर कुछ उचित नियंत्रण का प्रयोग किया जाना चाहिए।
कोरोना काल में आज कल सभी ने सिनेमा हॉल जाना बंद कर दिया है। इन परिस्थितियों में ओ.टी.टी काफी लोकप्रिय हो गए हैं। वहीं, आने वाले दिनों में ओ.टी. टी. के और भी लोकप्रिय होने ही संम्भावना है।
सिनेमा और केबल टी.वी. पर व्यस्क सामग्री दिखाने पर रोक थी, साथ ही कोई किशोर अवयस्क सिनेमा को देख नहीं पाता था। ओ.टी. टी. के माध्यम से बड़ी आसानी से अवयस्क सामग्री मोबाइल पर उपलब्ध है।
बिना किसी रोक टोक के किशोर इन अवयस्क सामग्री को देख लेते हैं। यदि इसमें कोई लगाम ना लगाई जाए, तब आने वाली युवा पीढ़ी में निश्चित तौर पर सेक्स और हिंसा की भावना भर जाएगी ।
अब समय आ गया है कि सरकार ओ.टी. टी. प्लेटफार्म पर दिखाने वाली सामग्रीयों के लिए कुछ कानून बनाए जाएं, अन्यथा युवा पीढ़ी के चारित्रिक विकास पर इसके बहुत हीं हानिकारक प्रभाव हो सकते हैं।