भारत एक प्राचीन देश है, और भारतीय सभ्यता लगभग 5 हजार वर्ष से भी ज़्यादा पुरानी है, इसलिये इसका समाज भी बहुत पुराना और जटिल प्रकृति का है। अपनी लम्बी ऐतिहासिक अवधि के दौरान, भारत बहुत से उतार-चढ़ावों और अप्रवासियों के आगमन का गवाह हैं। जैसे: आर्यों का आगमन, मुस्लिमों का आगमन आदि। भारत सबसे विकासशील देशों में से एक है लेकिन फिर भी भारत में अभी भी बहुत से ऐसे मुद्दे हैं जिनकी वजह से हम दूसरे देशों से बहुत पीछे है।
जातिवाद है बड़ी समस्या
भारत में जाति व्यवस्था लोगों को चार अलग-अलग श्रेणियों ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र में बांटती है। इनके अलावा एक और वर्ग है जिसे बाद में जोड़ा गया है उसे दलितों या अछूतों के रूप में जाना जाता है। इनमें सड़कों की सफाई करने वाले या अन्य साफ-सफाई करने वाले क्लीनर वर्ग के लोगों को समाहित किया गया। इस श्रेणी को जाति बहिष्कृत माना जाता था।
यह मुख्य श्रेणियां आगे अपने विभिन्न पेशे के अनुसार लगभग 3,000 जातियों और 25,000 उप जातियों में विभाजित हैं। देश में लोगों का सामाजिक एवं धार्मिक जीवन सदियों से जाति व्यवस्था की वजह से काफी हद तक प्रभावित हो रहा है और यह प्रक्रिया आज भी जारी है जिसका राजनीतिक दल भी अपने-अपने हितों को साधने में दुरूपयोग कर रहे हैं।
बंधुआ मज़दूरी बन गई एक परम्परा
वह व्यक्ति जो लिए हुए ऋण को चुकाने के बदले ऋणदाता के लिए श्रम करता है या सेवाएं देता है, बंधुआ मजदूर कहलाता है। इन्हें ‘अनुबद्ध श्रमिक’ या ‘बंधक मज़दूर’ भी कहते हैं। कभी-कभी बंधुआ मज़दूरी एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक चलती रहती है।
बंधुआ मज़दूर से मतलब किसी ऐसे मज़दूरों से है जिनसे बहुत ज़्यादा काम करवाने के बाद भी उन्हें मज़दूरी ना देना और जीवन भर उनको मज़दूर बनाकर शोषण करने से है। यदि कोई मज़दूर ऋण न चुका पाए तो उसके बदले उसे जीवन भर काम करना पड़ता है।
इस प्रणाली को समाज के कुछ सामाजिक और आर्थिक रूप से शक्तिशाली वर्गों को समाज के कमजोर वर्गों का शोषण करने में सक्षम बनाने के लिए बनाया गया है।
गरीबी है एक मूल दिक्कत
भारत में गरीबी बहुत व्यापक है लेकिन बहुत तेज़ी से कम भी हो रही है। अनुमान है कि विश्व की सम्पूर्ण गरीब आबादी का तीसरा हिस्सा भारत में है।
- 2010 में विश्व बैंक के अनुसार भारत के 32.7% लोग रोज़ना 113.67 रुपये की अंतर्राष्ट्रीय गरीबी रेखा के नीचे रहते हैं और 68.7% लोग रोज़ना की 151.95 रुपये से कम में गुज़ारा करते हैं।
- योजना आयोग के साल 2009-2010 के गरीबी के आंकड़े कहते हैं कि पिछले पांच साल के दौरान देश में गरीबी 37.2 फीसदी से घटकर 29.8 फीसदी पर आ गई है। यानि अब शहर में 28 रुपए 65 पैसे प्रतिदिन और गाँवों में 22 रुपये 42 पैसे खर्च करने वाले को गरीब नहीं कहा जा सकता।
भारत में गरीबी विशाल स्तर पर फैली हुई है। स्वतंत्रता के समय से ही गरीबी एक प्रचलित चिंता का विषय है। यह 21वीं शताब्दी है और गरीबी आज भी देश में लगातार खतरा के रुप में बनी हुई है। भारत ऐसा देश है जहां अमीर और गरीब के बीच बहुत व्यापक असमानता है।
अशिक्षा है सारी समस्याओं का जड़
अशिक्षा वो स्थिति है जो राष्ट्र के विकास पर एक धब्बा बन गयी है। भारत बहुत बड़ी अशिक्षित जनसंख्या को धारण करता है। भारत में अशिक्षा वो समस्या है जो इससे जुड़े बहुत से जटिल परिणाम रखती है।
भारत में अशिक्षा लगभग देश में विद्यमान असमानताओं के विभिन्न रुपों के साथ संबंधित हैं। देश में व्याप्त असाक्षरता की दर को लिंग असन्तुलन, आय असंतुलन, राज्य असंतुलन, जाति असंतुलन और तकनीकी बाधाएं आदि आकार दे रही हैं।
कन्या भ्रूण हत्या दिखता है समाज की मानसिकता
21 शताब्दी में जहां लड़कियां अपने मेहनत और लगन से नए-नए इतिहास रच रहीं हैं, वहीं ऐसे बहुत से लोग हैं जो बेटी के पैदा होने से पहले ही मां के गर्भ में ही उसे मार दे रहे हैं और इसका मुख्य कारण है मानसिकता।
- आमतौर पर माता-पिता लड़की शिशु को टालते हैं क्योंकि उन्हें लड़की की शादी में दहेज़ के रुप में एक बड़ी कीमत चुकानी होती है।
- अभिवावक समझते हैं कि लड़का उनके लिये जीवन भर कमाएगा और उनका ध्यान देगा जबकि लड़की की शादी होगी और चली जाएगी।
- माता-पिता और दादा-दादी समझते हैं कि पुत्र होने में ही सम्मान है जबकि लड़की होना शर्म की बात है।
- माता-पिता और समाज एक लड़की को उनके ऊपर एक बोझ मानते हैं और समझते हैं कि लड़कियां उपभोक्ता होती हैं जबकि लड़के उत्पादक होते हैं।
अंधविश्वास कर रहा है समाज को कमज़ोर
आज 21वीं सदी में जहां एक तरफ विज्ञान तरक्की पर तरक्की कर रहा है और भारत के वैज्ञानिक चांद और मंगल ग्रह पर पहुंचने की कोशिश में लगे हुए हैं। ऐसे में अंधविश्वास बड़े स्तर पर नुकसान कर रहा है। यहां बहुत से लोग दुखी है और जब हर जगह से हार जाते है तो अंधविश्वास का सहारा लेते हैं।
ऐसे लोग अक्सर बाबाओ, साधुओं, तांत्रिकों के बहकावे में आकर अपना धन और स्वास्थ्य गवां बैठते हैं। देशभर में लोग अधिक अंधविश्वास का शिकार है। अधिकतर अभिभावक पुत्र और सन्तान पाने के लिए बाबाओं के चक्कर लगाते रहते हैं। ऐसे में लोग हमारे मन में भय पैदा करके अनुचित लाभ उठाते हैं।
आज भी देश में अनेक औरतों को ‘डायन’ बताकर मार दिया जाता है। आश्चर्य की बात यह है कि ऐसे अंधविश्वास में अनपढ़ के साथ-साथ पढ़े- लिखे लोग भी पड़ जाते हैं। इससे कोई लाभ नहीं होता सिर्फ समाज और व्यक्ति का नुकसान ही होता है।
इन मुद्दों के अलावा भ्रष्टाचार, भूखमरी, महिलाओं पर हिंसा, बाल-विवाह, बाल श्रम, दहेज प्रथा आदि ऐसे कई सामाजिक मुद्दें हैं जिनसे भारत को बहुत लंबी लड़ाई लड़नी है।