मैला आंचल में सड़कों का जाल क्या बिछा, हीरामन की टप्परगाड़ी ही विलुप्त होने पर आ गयी है। मखमल की झालर लगी टप्परों के कद्रदान अब नहीं रहे! वहीं अब हीरामन भी कमाने के लिए परदेश की राह पकड़ चुका है।
टप्पर गाड़ी में ही परवान चढ़ी हीराम व हीराबाई की प्रेम कथा
अमर कथा शिल्पी फणीश्वर नाथ रेणु ने अपनी प्रसिद्ध कहानी तीसरी कसम उर्फ मारे गए गुलफाम में टप्परगाड़ी को आंचलिकता के रूप में प्रयोग किया है। चंपानगर के मेले से नर्तकी हीरा बाई को लेकर फारबिसगंज के मेले में ला रहे हीरामन के बीच अघोषित प्रेम की बुनियाद टप्पर गाड़ी में ही पड़ती है।
और मेला तक आते-आते यह कहानी एक कालजयी रचना का स्वरूप ग्रहण कर अमर हो जाती है। इस कहानी पर बनी फिल्म में प्रसिद्ध शो मैन राज कपूर तथा अदाकारा वहीदा रहमान ने जिस तरह अपने किरदारों को जीवंत किया है। वह आधी सदी के बाद भी बरबस यह कहने को विवश कर देता है कि हीरामन! बहुत याद आती है तेरी टप्पर गाड़ी।
लुप्तप्राय से हो गए टप्पर चालक
जहां एक और इलाके के हर गांव में सड़कों का जाल बिछा है। फलत: यातायात का स्वरूप भी बदल गया है। टप्पर गाड़ी चलाने वाले बेकार हो गए और नए युवाओं ने टेंपू व ट्रैक्टर आदि चलाना शुरू कर दिया है। अब गांवों में टप्पर गाड़ी या बैलगाड़ी गाहे-बगाहे ही नज़र आती है।
गाड़ियों का स्वरूप भी बदल गया है। पहले की तरह लोहे की हाल वाले पहियों के स्थान पर अब सेकेंड हैंड टायर-ट्यूब का प्रयोग किया जा रहा है।
रेणु जी के चालक ने भी बदला रास्ता
बहरहाल सबसे बड़ा बदलाव यह नजर आता है कि सदियों से बहलवानी यानी बैलगाड़ी चालन कर अपनी आजीविका अर्जित करने वाले युवा अब रोज़ी-रोटी की तलाश में दिल्ली-पंजाब की ओर जाने लगे हैं।
अमर कथा शिल्पी फणीश्वर नाथ रेणु के बड़े पुत्र व पूर्व विधायक पदम पराग राय वेणु ने बताया कि बाबूजी को सिमराहा स्टेशन से लाने ले जाने वाला दिलीप मंडल भी कमाने के लिए बाहर चला गया है।
वहीं, टप्पर बनाने की कला से जुड़े हज़ारों हाथ भी बेकार हो गए हैं। सीमांचल के कारीगर बांस की खूबसूरत कमाचियों को रंग देकर जिस तरह के टप्परों में तब्दील कर देते थे, वह अब अतीत की बात हो गई है।
दरअसल, फिल्म तीसरी कसम में हीरामन व हीरा बाई के किरदार ने यहां की टप्पर व टप्परगाड़ी को एक खूबसूरत नॉस्टेलजिया (लालसा) में तब्दील कर दिया है।