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छत्तीसगढ़ के आदिवासी कैसे करते हैं अपने नाश्ते का इंतज़ाम

आदिवासियों के ज़्यादातर गाँव जंगल और पहाड़ी क्षेत्रों में बसे होते हैं। इनमें से कई गाँव के आदिवासी अपनी संस्कृति और परंपरा को निभाते हुऐ संघर्ष रुपी जीवन जीते हैं। ऐसे ही एक गाँव छत्तीसगढ़ के कोरिया ज़िले में भी है।

यह गाँव जंगल के पहाड़ के नीचे बसा है, जहां 20-22 आदिवासी घर हैं। सरकार ने इन घरों के नज़दीक एक बड़े बांध का निर्माण किया है, जिसका नाम मकरादुवारी है। इस बांध की वजह से बरसात के समय आदिवासियों की आधी ज़मीन डूब जाती है।

इसके कारण फसल बहुत नहीं हो पाती है। फसल ना होने के कारण इस गाँव के आदिवासियों को साल-भर इनके परिवारों को चलाना और उनका भरण-पोषण करना मुश्किल हो जाता है। 

ऐसे समय में खाना जंगल से ही मिलता है। अपने नाश्ते के लिए आदिवासी फिर जंगल से कंद-मूल की व्यवस्था कर लेते हैं। हमारे पूर्वज कंद-मूल खाकर ही अपना पेट पालते थे। आज भी आदिवासी इस कंद-मूल को नहीं भूले हैं। 

यह पिठारू कांदा (Dioscorea belophylla/ Spear-Leaved Yam) निकालने के लिए घर में कई औजार होते हैं जैसे फावड़ा, साबर, गैती आदि। कांदे को निकालने के लिए यह सब ज़रूरी है, क्योंकि कांदे को ज़मीन के अंदर से निकालना पड़ता है।

ज़मीन में कई प्रकार की चीजें दबी हुई रहती है जैसे पत्थर और पेड़ो के लिपटे हुए जड़ आदि। यह पिठारू कांदा ज़मीन के लगभग 2-3 फूट अंदर पाया जाता है और इसके पत्तों से लोग पहचानते है की कांदा कहां मिलेगा। इसे खोदते समय पेड़ के मूल से थोड़ा दूर खोदा जाता है।  यह कांदे कई प्रकार के होते हैं- कुंदरूकांदा, पुतलुकांदा, सियोकांदा और बैजांडकांदा। 

पिठारू कांदा के पत्ते, Pic Credit- Himalayan Wild Food Plants

पिठारू कांदा निकालने के बाद घर ले आते हैं और उसे बर्तन में रखकर एक घंटा पानी में रखा जाता है, ताकि उसके ऊपर जो मिट्टी चिपकी हो, यह निकल जाए। एक घंटे के बाद कांदे को दोबारा पानी से धोया जाता है, यह करने से वह पूरा साफ हो जाता है।

इसके पश्चात कांदा को बर्तन में रखकर उसमे थोड़ा नमक डाल देते है, ताकि उसका स्वाद अच्छा लगे। फिर इसे एक घंटे तक पकाया जाता है।पकने के बाद कांदे को ठंडा कर लिया जाता हैं और यह खाने के लिए तैयार हो जाता है! इसका छिलका पतला होता है। आदिवासी पिठारू कांदा की सब्ज़ी बनाकर या चोखा बनाकर भी खाते है। 

पिठारू कांदा, Pic Credit- Himalayan Wild Food Plants

लेखिका के बारे में- संतोषी छत्तीसगढ़ के कोरिया ज़िले की निवासी हैं। यह अभी B.A. की पढ़ाई कर रही हैं। वह दुनिया के बारे में जानकारी रखना पसंद करती हैं और नाचना इनकी रुचि है। वह शिक्षिका बनना चाहती है। गणित और हिंदी विषय पढ़ाना चाहती हैं।

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