बिहार की शिक्षा व्यवस्था कैसी है, यह जगज़ाहिर है लेकिन इसी बीच कुछ ऐसे लोग भी मिलेंगे जो लगातार यह दावा करते हैं कि बिहार में शिक्षा व्यवस्था में बहुत सुधार हुआ है। सुधार हुआ है, बेशक हुआ है।
इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता है लेकिन सवाल यह है कि आज़ादी के 70 साल बीत जाने के बाद भी बिहार में शिक्षा का स्तर देश के बाकी राज्यों के मुकाबले काफी पिछड़ा हुआ क्यों है?
अगर आप वर्तमान सरकार द्वारा शिक्षा पर खर्च किए जाने वाले पैसों को देखेंगे तो शायद यह लगे कि सरकार की तरफ से कोशिश की गई है लेकिन ज़मीनी स्तर पर इसका कोई फायदा होता नहीं दिख रहा है। यह एक अलग चिंता की बात ज़रूर है।
शिक्षक संघ शिक्षा में सुधारों के लिए कोई आंदोलन क्यों नहीं करता?
शिक्षक संघ और राज्य के बहुत से शिक्षक अपने मानदेय बढ़ाने समेत अन्य मांगो को लेकर 2015 से आंदोलनरत हैं लेकिन क्या किसी शिक्षक संघ द्वारा बिहार में शिक्षा की दूरदर्शा के खिलाफ कोई आंदोलन किया गया है? सरकार से उसमें सुधार के लिए कोई मांग की है?
राज्य के आधे से ज़्यादा शिक्षक, जिनके ऊपर बिहार के भविष्य को संवारने की ज़िम्मेदारी है, वे अयोग्य हैं। क्या उनके खिलाफ कारवाई की बात की गई है? एक तरफ तो सरकार शिक्षा का बजट बढ़ाती है, नए स्कूल और शिक्षण संस्थानों के खुलवाने के दावा करती है, वहीं दूसरी ओर अयोग्य शिक्षकों को बहाल भी करती है।
इसका उदाहरण आय दिन हम सबको देखने को मिलता भी रहता है। ऐसे में सीधे तौर पर बिहार की खराब शिक्षा व्यवस्था के लिए बिहार सरकार की उदासीनता को ही ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है।
शिक्षकों की अनुपस्थिति और उनकी अयोग्यता विकास के रास्ते में बाधा
आधे से ज़्यादा शिक्षक योग्य नहीं नहीं हैं, तो वहीं हर रोज़ 28% शिक्षक रहते हैं अनुपस्थित। टाइम्ज़ ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, बिहार में सेकंडरी स्तर पर 45% शिक्षक पेशेवर तौर पर योग्य नहीं हैं। हायर सेकंडरी लेवल पर 60% शिक्षक RTE के मनकों पर खरे नहीं उतरते हैं। वहीं, बिहार में इस वक्त 37.3% शिक्षकों की कमी भी है।
ऐसे में सवाल ये उठता है कि जब शिक्षक ही योग्य नहीं हैं या शिक्षकों की इतनी कमी है, तो बच्चे कहां से सीखेंगे और जब शिक्षकों की इतनी कमी है, तो बहाली प्रक्रिया में तेज़ी क्यों नहीं लाई जा रही है? कुछ रिपोर्ट्स में यह भी देखा गया है कि बिहार के लगभग 28% शिक्षक हर रोज़ अनुपस्थित रहते हैं।
आधे से ज़्यादा स्कूल में पीने का साफ पानी व शौचालय नहीं है
UNICEF की रिपोर्ट के मुताबिक, 78,000 से ज़्यादा स्कूलों वाले बिहार राज्य के आधे से ज़्यादा स्कूलों में शौचालय और पीने का साफ पानी उपलब्ध नहीं है।
राज्य के लगभग आधे स्कूल में बाउंड्री दीवार नहीं है। वहीं, लगभग 20,000 स्कूलों में बच्चों के लिए प्ले-ग्राउंड नहीं है, तो 40,000 से ज़्यादा स्कूलों में किचन शेड नहीं है।
ड्रॉपआउट एक बड़ी समस्या है
अगर बात ड्रॉपआउट की हो तो बिहार में यह डरावने स्तर का है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, पहली क्लास में पढ़ रहे 24 लाख से अधिक छात्रों की तादाद 10वीं तक पहुंचते-पहुंचते 15 लाख तक पहुंच जाती है। वहीं, 12वीं तक पहुंचते-पहुंचते यह संख्या 6 लाख पहुंच जाती है। जबकि ग्रैजुएशन के पहले साल में सिर्फ 3-4 लाख बच्चे ही दाखिला ले पाते हैं।
लड़कियों में ड्रॉपआउट की समस्या लड़कों के मुकाबले थोड़ा और ज़्यादा है। क्लास 1 में दाखिला लेने वाली 11.52 लाख छात्राओं में से 12वीं तक सिर्फ 2,99,672 छात्रा ही पहुंच पाती हैं। NSSO के 2017-18 के डेटा के अनुसार, बिहार में ड्रॉपआउट की संख्या 30.5 % है।
सरकार के दावों में तेज़ी मगर धरातल पर मायूसी
2017-18 में सरकार ने राज्य में 1,457 नए क्लास रूम बनाए जाने को मंज़ूरी दी थी, जिनमें से अभी तक सिर्फ 18 क्लासरूम ही बनकर तैयार हो पाए हैं।
वहीं, 2018 में सरकार ने राज्य में 17 लैब बनाने को भी मंज़ूरी दी थी लेकिन अभी तक एक भी लैब नहीं बन सकी है। वैसे ही राज्य के तकरीबन 584 कस्तूरबा गाँधी स्कूल में 62,600 छात्राओं के रहने की व्यवस्था है, जिनमें से हर साल हज़ारों सीटें खाली रह जाती हैं।
शिक्षा के मंदिर की जर्जर होती हालत
60% स्कूल में आज भी बिजली नहीं है। एक तरफ जहां सरकार देश के हर घर में बिजली पहुंचाने के दावे करती है, वहीं दूसरी ओर बिहार के 60% स्कूलों में आज भी बिजली नहीं है। अगर बात देश में होने वाले UPSC परीक्षाओं में बिहार के छात्रों की कामयाबी की की जाए तो 1987-1996 के बीच कुल UPSC क्वालिफ़ाई करने वालों में बिहार के अभ्यार्थियों की संख्या 16.19% थी, वहीं 2007-2016 में ये संख्या घटकर मात्र 7.51 % रह गई है।
अगर बात हम बिहार में चलने वाली स्कूलों की करें तो एक बार फिर बिहार की हालत बहुत ही ज़्यादा खराब है। UNICEF की रिपोर्ट के अनुसार, RTE के मानकों को बिहार की सिर्फ 2% स्कूल्स ही पूरा कर रहे हैं।
बिहार में उच्च शिक्षण संस्थानों की है भारी कमी
बिहार में उच्च शिक्षण संस्थानों की भी बहुत ज़्यादा कमी है। राज्य में इस वक्त सिर्फ 22 यूनिवर्सिटी हैं। जबकि तकरीबन 800 से कुछ ज़्यादा कॉलेज हैं। अगर हम राष्ट्रीय स्तर पर शिक्षण संस्थानों में बिहार के हिस्सेदारी की बात करें तो देश की 8.5 प्रतिशत से ज़्यादा आबादी वाले इस राज्य में देश के कुल इंजीनियरिंग कॉलेज का सिर्फ 0.35% कॉलेज ही हैं।
देश के कुल मेडिकल कॉलेज में से सिर्फ 1.78% मेडिकल कॉलेज ही बिहार में हैं। देश के कुल पॉलिटेक्निक का 0.89% पॉलिटेक्निक कॉलेज ही बिहार में है। वहीं, सिर्फ 0.8 % मैनेजमेंट कॉलेज ही बिहार में स्थित हैं।
वहीं, अगर देश के टॉप 100 इंजीनियरिंग कॉलेज की बात की जाए तो उनमें राज्य की सिर्फ दो कॉलेज हैं, आईआईटी पटना और एनआईटी पटना। शिक्षण संस्थानों में बिहार में भले ही इज़ाफा ना हुआ हो लेकिन राज्य में कोचिंग का व्यापार खूब फल-फूल रहा है। इसका अंदाज़ा आप इस बात से भी लगा सकते हैं कि 800 कॉलेज वाले राज्य के सिर्फ एक शहर पटना में 2400 से ज़्यादा प्राइवेट कोचिंग सेंटर्स मौजूद हैं।