मोबाइल पर हिन्दी टाइपिंग जैसी सुविधा गूगल ने दी है, भारतीय भाषाओं को वैसा महत्व कोई नहीं दे पाया। देश में कुछ लोगों ने हिन्दी और कंप्यूटिंग की दूरी मिटाने के व्यक्तिगत प्रयास ज़रूर किये हैं, जो अपने आप में बेमिसाल हैं। आज भी टाइपिंग या फॉन्ट में अटकता हूं तो रवि रतलामी के ब्लॉग से मदद मिलती है। ऐसे ही कुछ और लोग हैं, जिन्होंने कंप्यूटर पर हिन्दी की गरिमामयी उपस्थिति दर्ज कराने में अपने अथक प्रयास किए हैं।
बहरहाल हिन्दी दिवस हर साल आता है और चला जाता है, जिस पर राष्ट्र एवं हिन्दी भाषी लोग गर्व करते हैं, लेकिन सरकार और संस्थाओं के स्तर पर भाषाई कंप्यूटिंग के क्षेत्र में कुछ उल्लेखनीय कहीं हुआ हो तो मुझे नहीं दिखा।
गूगल और माइक्रोसॉफ्ट जैसी दिग्गज़ मल्टी नेशनल कंपनियों ने कंप्यूटर हिन्दी फॉन्ट, टाइपिंग और अनुवाद को सरल बनाया
देश में केंद्र सरकार के राजभाषा विभाग और राज्यों के अपने भाषा व संस्कृति विभाग भी हैं। इनके अलावा सी-डेक जैसी संस्थाएं भी हैं लेकिन यह पूरा तंत्र हिन्दी में राजकीय स्तर पर सरल भाषा में काम के शब्दकोश, ऑनलाइन अनुवादक, टाइपिंग टूल्स या मानक फॉन्ट विकसित नहीं कर पाये।
वह तो भला हो माइक्रोसॉफ्ट और गूगल जैसी कंपनियों का, जिन्होंने कंप्यूटर और मोबाइल पर हिन्दी फॉन्ट, टाइपिंग और अनुवाद को सरल बना दिया। इतना सरल कि जिन्होंने हिन्दी टाइपिंग नहीं सीखी है, वह भी हिन्दी टाइप कर सकें, वह सिर्फ बोलकर भी लिख सकते हैं। गूगल के इस टूल को जब मैंने पहली बार देखा था, तब मैं आश्चर्यचकित रह गया था।
दरअसल, अपने यहां भाषा और संस्कृति पर राजनीति कितनी भी हो लेकिन इन प्रक्रमों पर कुछ ठोस करने की बारी आती है तो मामला गर्व से आगे ही नहीं बढ़ पता है
हर मर्ज़ की एक ही दवा है गर्व करो, भले ही कुछ मत करो। बाकी करने के नाम पर हिंदी लिखें या हिन्दी यह बहस अगले 100 वर्षों के लिए काफी है। हिंदी का मानक रूप कैसा हो, केंद्रीय हिन्दी निदेशालय द्वारा निर्धारित मानक वर्तनी के नियम भी इस सवाल को हल करने में नाकाम रहे हैं। हिन्दी में नुक्ता लगना चाहिए या नहीं, चंद्र बिंदु लगायें या सिर्फ बिंदु, ज़रिये लिखें या ज़रिए, गये ठीक है या गए। हिंदी वर्तनी के साथ इस तरह की दुविधा हिन्दी भाषा के इतिहास जितनी ही पुरानी है।
इंटरनेट, मोबाइल और सोशल मीडिया ने ज़रूर संचार और संवाद की दुनिया को बदलकर रख दिया है, चूंकि हिन्दी 135 करोड़ भारतीयों के बाज़ार की प्रमुख भाषा है। इसलिए गूगल और माइक्रोसॉफ्ट जैसी दिग्गज़ कंपनियों ने हिन्दी और भारतीय भाषाओं में कंप्यूटिंग को गंभीरता से लिया।
21वीं सदी में हिन्दी की प्रासंगिकता
आज कंप्यूटर और मोबाइल पर हिन्दी में लिखना काफी आसान हो गया है। वरना, पहले जिसे हिन्दी टाइपिंग आती है वह ही टाइप कर पाता था। अब रोमन में टाइप करें या फिर बोलकर हिन्दी में लिखना काफी आसान है। इस सहूलियत में हिन्दी की-बोर्ड साइडलाइन हो गए, वैसे फिल्मों और राजनीति में हिन्दी में भाषण या डायलॉग रोमन में लिखना काफी पहले से चला आ रहा है। तकनीक ने ज़रूर इसे स्थायी रूप दे दिया है।
हमारी सहूलियत और जीवन की आवश्यकताओं ने इसे अपना लिया जिसके चलते नुकसान देवनागरी लिपि का हुआ। हिन्दी लिखने के लिए हम रोमन वर्णमाला का इस्तेमाल करने को बाध्य हो गये। आज भी यूआरएल में हिन्दी शब्द जंक करेक्टर के रूप में दिखा देते हैं।
अब मेरे जैसा व्यक्ति भी जिसे हिन्दी टाइपिंग आती है, मोबाइल पर हिन्दी को अंग्रेज़ी में टाइप करने का अभ्यस्त हो चुका है, क्योंकि हिन्दी भाषा के तमाम की-बोर्ड यहां मौजूद हैं।
वैसे रेमिंग्टन की-बोर्ड से टाइपिंग की मुझे आदत थी, लेकिन नये कंप्यूटर सिस्टम उसे सपोर्ट नहीं करते हैं। मोबाइल पर तो मैंने आज तक किसी को हिन्दी की-बोर्ड से टाइप करते हुए नहीं देखा। कायदे से रोमन की तरह हिन्दी की-बोर्ड को भी मोबाइल के लिए सुगम बनाया जा सकता था लेकिन यह काम ना तो हिन्दी संस्थाओं की प्राथमिकता में था और ना ही राजभाषा विभागों ने इस तरफ ध्यान दिया। आईटी कंपनियों ने जो कुछ किया वह अपने नज़रिये, फायदे और सहूलियत के हिसाब से किया है, फिर भी हिन्दी को डिजिटल दुनिया से जोड़ने में गूगल और माइक्रोसॉफ्ट का बहुत बड़ा योगदान है।
हिन्दी का विस्तार क्षेत्र एवं आगामी संभावनाएं
बड़े बाजारों की वजह से आज डिजिटल दुनिया में हिन्दी का रुतबा लगातार बढ़ रहा है। इसी रफ्तार से हिन्दी कंटेंट और उसके यूज़र भी बढ़ रहे हैं। इसके पीछे गूगल इनपुट टूल्स, मशीन अनुवाद और वॉइस टू टेक्स्ट जैसे एप्लीकेशनस का बड़ा हाथ है। आज ज़्यादातर लोग मोबाइल पर रोमन में टाइप कर या फिर हिन्दी में बोलकर हिन्दी लिख रहे हैं। इस तरह के एक टूल्स ने डिजिटल दुनिया में हिन्दी के फलक को दीर्घ विस्तार दिया है, इसके लिए गूगल और माइक्रोसॉफ्ट को तहे दिल से शुक्रिया।
वरना जो हाल हिन्दी का उच्च शिक्षा, प्रशासन और बिज़नेस के क्षेत्र में है, वही हाल डिजिटल स्क्रीन पर भी होता। बहरहाल इससे भी बड़ा सवाल यह है कि सोशल मीडिया पर हिन्दी में दिखता क्या है? हिन्दी को हम ज्ञान-विज्ञान, नीति-निर्माण और रोज़गार की भाषा बनाना चाहते हैं या सिर्फ गाली-गलौज और मनोरंजन की ज़ुबान या फिर हम हिन्दी को इंग्लिश में टाइप कर ही संतुष्ट हैं।