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घुमंतू समुदाय की सोहिना जिसने लड़कियों को शिक्षा की मुख्यधारा से जोड़ा

पिछले महीने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के शताब्दी समारोह को संबोधित किया। उनका कहना था कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान देश में मुस्लिम बालिका शिक्षा की दर में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है।

पहले की अपेक्षा स्कूल जाने वाली मुस्लिम बालिकाओं की संख्या बढ़ी है। स्कूलों में लड़कियों के लिए शौचालय का निर्माण और अन्य योजनाओं के कारण यह परिवर्तन संभव हुआ है। एक तरफ जहां सरकार इस दिशा में गंभीर है, वहीं मुस्लिम समाज में भी बालिका शिक्षा के प्रति जागरूकता इस दिशा में अहम कड़ी साबित हुई है। 

पहले की तुलना में अब, इस समाज में लड़कियों को केवल धार्मिक शिक्षा तक सीमित नहीं रखा जाता बल्कि लड़कों के समान ही उन्हें भी बराबरी का मौका दिया जा रहा है।

जागरूकता अभाव का उदाहरण घुमंतू समुदाय

वैसे देश के कई राज्यों में बालिका शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए विशेष छात्रवृति और स्कूल आने जाने के लिए साइकिल जैसी सुविधा भी प्रदान की जा रही है। हालांकि, अभी भी कुछ क्षेत्रों में जागरूकता की कमी के कारण इस समुदाय की लड़कियों में शिक्षा का प्रतिशत दयनीय है,

इन्हीं में एक राजस्थान का घुमंतु मुस्लिम बंजारा समुदाय है, जो महिलाओं और बालिकाओं के हक व अधिकारों के मुद्दे पर बिलकुल चुप्पी साधकर बैठा है। 

दूसरे शब्दों में कहा जाए तब, इस समुदाय को इन महत्वपूर्ण विषय पर बात करना ही गवारा नही। आज भी यह समुदाय महिलाओं व बालिकाओं को चारदीवारी के अंदर रखकर सिर्फ पितृसत्तात्मक नियमों का पालन करने पर ज़ोर देता है।

एक उम्मीद की किरण जैसी ‘सोहिना’

कुछ स्थानीय स्वयंसेवी संस्थाओं के प्रयासों से इस समुदाय में शिक्षा की चेतना जागरूक करने की कोशिश हो रही है, बल्कि सोहिना जैसी कुछ लड़कियां आगे बढ़कर अपने ही समुदाय में अशिक्षा और बाल विवाह जैसी कुरीतियों के खिलाफ अलख भी जगा रही हैं।

राज्य के टोंक जिला स्थित, निवाई ब्लॉक के अंतर्गत आने वाले खिड़गी गांव में ‘सरपंच की ढ़ाणी’ नामक बस्ती के रहने वाले मुस्लिम बंजारा समुदाय की बालिकाएं और महिलाएं इसका प्रत्यक्ष उदाहरण हैं, जहां इस समुदाय के करीब 250 परिवार रहते हैं।

मुस्लिम बंजारा समुदाय और ढाणी

2011 की जनगणना के अनुसार खिड़गी गांव की कुल जनसंख्या 2257 है, जिसमें महिलाओं की संख्या 1159 है। 

सामाजिक कार्यकर्ता पिंकी खंगार के अनुसार, इस समुदाय का मुख्य व्यवसाय देश के कई शहरों में जाकर कंबल बेचना है। इसके अतिरिक्त कई परिवार मवेशी खरीदने और बेचने का भी व्यवसाय करते हैं, जिसके चलते इस समुदाय के अधिकतर पुरूष साल के आधे से अधिक महीनों तक घर से बाहर ही रहते हैं।

स्थानीय भाषा में ढ़ाणी उस क्षेत्र को कहते हैं जो गांव के बाहर कुछ परिवारों द्वारा बस्ती बसाई जाती है। 

ऐसे में इनमें शिक्षा के प्रति अधिक जागरूकता नहीं है। लड़कियों को न केवल स्कूली शिक्षा से वंचित रखा जाता है बल्कि कम उम्र में ही उनकी शादी भी कर दी जाती है।

समुदाय के लिए मिसाल कायम करती सोहिना

गांव के बुज़ुर्ग व पंच जिनमें से ही एक इस्लाम खान हैं, उनके अनुसार, सोहिना में बचपन से ही लोगों की मदद और लड़कियों को आगे बढ़ाने का जज़्बा था। लड़कियों की शिक्षा और उनके आत्मविश्वास को बढ़ाने में उसने जो भूमिका निभाई है वह क़ाबिले तारीफ है, वो कहते हैं कि पहले मैं सोहिना को गलत लड़की मानता था।

पिंकी कहती हैं, “इसी समुदाय में सोहिना जैसी लड़की भी है, जो सभी तरह की चुनौतियों और कठिनाइयों का सामना करते हुए न केवल स्वयं शिक्षा प्राप्त कर रही है, बल्कि अपने समुदाय की अन्य लड़कियों और महिलाओं को भी शिक्षा प्राप्त करने के लिए जागरूक बना रही है मगर जब इसने हम जैसे लोगों की मदद तो अब इसके प्रति मेरी धारणा बिलकुल बदल गई है।”

50 से ज़्यादा बालिकाओं को मुख्यधारा (शिक्षा) से जोड़ा

ढ़ाणी के प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक मोहनलाल तथा खिडगी माध्यमिक विद्यालय के प्रधानाध्यापक महेन्द्र जैन भी उसके  हौसले की तारीफ करते हैं, वह कहते हैं कि यह बालिका न केवल स्वयं शिक्षा की मुख्यधारा से जुड़ी! बल्कि, आस-पास भी 3 ढाणियां श्यांपुरा ढाणी, घाटा पट्टी ढाणी और अमरपुरा ढाणी की 50 बालिकाओं को भी शिक्षा की मुख्यधारा से जोड़ा है।

पहले मुस्लिम बंजारा समुदाय के लोगों और इनकी बालिकाओं में शिक्षा के प्रति हमारी सोंच नकारात्मक थी, परन्तु सोहिना के आत्मविश्वास और हौसलों ने हमारी सोच को बदल दिया है।

वृद्धाओं से विधवाओं तक सबकी मदद की 

पंचायत  के कनिष्ठ सहायक कमलेश भी सोहिना की प्रशंसा करते हुए कहते हैं कि किशोरी मंच के कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर इस बालिका ने बस्ती के लोगों को सरकारी योजनाओं का लाभ दिलवाने में काफी सहायता पहुंचाई, इसके लिए उसे पंचायत द्वारा सम्मानित भी किया गया है।

वहीं किशोरी मंच के सदस्यों ने बताया कि अब तक सोहिना के नेतृत्व में हमने 150 वृद्धा पेंशन के फार्म भरवाकर लोगों को लाभ दिलवाया है। जबकि 10 विधवा महिलाओं को विधवा पेंशन से जोड़ा है।

बालिकाओं को रोज़गार से नर्सिंग ट्रेनिंग तक

वहीं बालिकाओं में आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए कई लड़कियों को रोज़गार परक ट्रेनिंग भी दिलवा कर उन्हें नरेगा मेंट के कार्यों से जोड़ा है। इसके अतिरिक्त 15 बालिकाएं प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के अंतर्गत कंप्यूटर की ट्रेनिंग और सिलाई-बुनाई का प्रशिक्षण प्राप्त कर रही हैं, जो सोहिना के बगैर मुमकिन नहीं था।

इतना ही नहीं सोहिना ने अपने साथ-साथ बस्ती की 10 लड़कियों को भी नर्सिंग की ट्रेनिंग से जोड़ा है और अब सभी अस्पताल में प्राइवेट नर्सिंग का कार्य सीख रही हैं।

माता-पिता के साथ समाज की भी बदली सोच

इस संबंध में सोहिना के माता-पिता का कहना है कि हम पहले इसे घर से भी बाहर नहीं जाने देते थे, परन्तु सामाजिक कार्यकर्ता गिरिराज शर्मा द्वारा बार-बार हमे समझाया गया। जिसके बाद हम इसे उनके साथ बैठकों और प्रशिक्षणों में भेजने लगे।

वो आगे बताते हैं कि  जब वहां से सीख कर आती थी और हमें  बताती थी तब हमें लगा कि यह कुछ कर सकती है। लोगों के लिये इसके दिल में कुछ करने का ज़ज़्बा है, तब फिर हर बार हमने इसका सहयोग किया।

लड़के-लड़कियों को बराबर मानती हैं सोहिना

वह आगे कहते हैं कि कई बार आर्थिक परेशानी भी आई मगर सोहिना ने हिम्मत से काम लिया और अन्य लड़कियों में जागरूकता का काम करती रही। आज न सिर्फ हमें बल्कि बस्ती के सभी लोगों को सोहिना पर गर्व होता है।

वहीं, सोहिना का कहना है कि उसे कभी इस बात का एहसास नहीं हुआ कि लड़कों की तुलना में लड़कियां किसी प्रकार से कमज़ोर हैं। यदि लड़कों की तरह लड़कियों को भी समाज के सभी क्षेत्रों में बराबरी का अवसर मिले तो परिवर्तन संभव है।

फिलहाल 10 प्रतिशत ही शिक्षित हैं यहां

इसके लिए लड़कियों का शिक्षित होना आवश्यक है लेकिन चिंता की बात यह है कि इस ढाणी में अब भी बालिकाओं की साक्षरता मात्र 10 प्रतिशत है। यानि 10 प्रतिशत बालिकाएं और महिलाएं ही साक्षर हैं। वहीं, गांव में 0-6 वर्ष की किशोरी बालिका, गर्भवती व धात्री महिलाओं के स्वास्थ्य व सुरक्षा पोषण का कोई अता-पता नही है, क्योंकि ढाणी में आंगनबाडी सेंटर ही नही है।

बहरहाल एक अत्यंत पिछड़े क्षेत्र और समुदाय की रहने वाली सोहिना ने अपने क्षेत्र के लोगों की सोंच में परिवर्तन किया, जो यह साबित करता है कि बालिका शिक्षा के प्रति यदि समाज के दृष्टिकोण में परिवर्तन आ जाए तब, लड़कियां भी अपने हौसले और हुनर से आसमान पर अपना नाम लिखने का हौसला रखती हैं। बस ज़रूरत है उनके हौसले को मज़बूत उड़ान देने की।


नोट: यह आलेख टोंक, राजस्थान से रमा शर्मा ने संजॉय घोष मीडिया अवॉर्ड 2020 के अंतर्गत लिखा है।

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