अमेज़ॉन प्राइम पर रिलीज हुई फिल्म शकुंतला देवी ‘मानव कंप्यूटर’ कही जाने वाली महान गणितज्ञ शकुंतला देवी की बायोपिक है। यह फिल्म अनु मेनन द्वारा लिखित और निर्देशित है।
कहानी में शकुंतला देवी को एक विलक्षण प्रतिभा की धनी महान गणितज्ञ, एक पत्नी और माँ के रूप में दिखाया गया है जो अपने जीवन में बचपन से ही बड़ा आदमी नहीं, बल्कि बड़ी औरत बनने का ख्वाब देखती थी। फिल्म ‘शकुंतला देवी’, गणितज्ञ शकुंतला देवी के संस्मरणों पर आधारित है जिसका वर्णन उनकी बेटी अनुपमा बनर्जी ने किया है।
क्या है फिल्म की कहानी?
कहानी शुरू होती है, अनुपमा बनर्जी (सान्या मल्होत्रा) से जो अपनी ही माँ शकुंतला देवी के खिलाफ आपराधिक मुकदमा दायर करने जा रही होती हैं। कहानी के आगे बढ़ने से पहले दृश्य बदलता है और फिल्म की कहानी बहुत साल पीछे चली जाती है, जहां एक पांच साल की छोटी बच्ची खेलते हुए अपने पड़ोसी के घनमूल के प्रश्न को हल कर देती है।
इसके बाद यह बात उसके घर वालों को पता चलती है। अब यह छोटी बच्ची (शकुंतला देवी) स्कूल तो जाती है लेकिन पढ़ने नहीं केवल मैथ शोज़ करने। जिसके बदले में उसके पिता को पैसे भी मिलते हैं। मैथ शोज़ करते-करते यह बच्ची बड़ी हो जाती है।
इसके बाद शकुंतला देवी (विद्या बालन) लंदन आ जाती हैं और यहां भी अपनी प्रतिभा से सभी को आश्चर्यचकित कर देती हैं। इसके बाद शकुंतला देवी मैथ शोज़ के लिए अनेक देशों में जाती हैं।
जब शकुंतला देवी गणित के सवालों को चुटकियों में हल कर देती हैं तब वहां मौज़ूद सभी लोगों के मन में एक ही सवाल होता है, “तुम यह कैसे कर लेती हो?” और वो भी हंसते हुए अपने अंदाज़ में जवाब देती हैं, “बस हो जाता है”।
इसके बाद ऐसा क्या होता है कि उनकी अपनी बेटी ही उनके खिलाफ केस दर्ज़ कर देती है। यह जानने के लिए तो आपको फिल्म देखनी पड़ेगी।
क्या है फिल्म की खूबसूरती?
फिल्म में शकुंतला रावत के किरदार को बखूबी दिखाया गया है। समाज में जहां गणित को लड़कियों का क्षेत्र ही नहीं माना जाता है या यूं कहें कि इस क्षेत्र में महिलाएं बहुत कम जा पाती हैं, तो शकुंतला देवी ऐसी लड़कियों के लिए एक बहुत बड़ी प्रेरणा हैं। उन्होंने अपने काम के ज़रिए यह बताया है कि लड़कियां किसी भी क्षेत्र में अपना नाम कमा सकती हैं। बशर्ते, परिवार और समाज का सहयोग होना चाहिए।
जहां आर्यभट्ट और श्रीनिवास रामानुजन जैसे गणितज्ञों ने गणित के क्षेत्र में भारत का गौरव बढ़ाया है वैसे ही एक महिला के रूप में शकुंतला देवी ने ना केवल इस तथ्य को गलत साबित किया है कि महिलाएं तो गणित में कमज़ोर ही होती हैं, बल्कि इस ओर भारत का मान भी बढ़ाया है।
फिल्म में शकुंतला देवी को एक आत्मविश्वास से लबरेज़ महिला के रूप भी दिखाया गया है जो स्त्री और पुरुष को एक मानती है। जो हमेशा अपने मन का करती है। खुलकर हंसती है। कभी स्कूल ना जाने वाली यह महिला गणित के सवालों को चुटकियों में हल कर देती है। इसके अलावा वो खेल-खेल में बच्चों को गणित भी सिखाती है।
फिल्म में शकुंतला देवी का एक मां के रूप में उनकी बेटी के साथ जो रिश्ता था उसे भी दिखाया गया है। शकुंतला देवी अपने शोज़ के साथ-साथ अपने माँ के कर्तव्य को भी पूरी तरह निभाती हैं। वे अपनी बेटी के लिए कुछ भी करने को तैयार रहती हैं। अपने जीवन में वो एक अच्छी मां बनना चाहती हैं। फिल्म में इनका यह रूप भी दर्शकों को काफी भावुक करता है।
इसके अलावा फिल्म में कुछ कमियां भी है। जैसे फिल्म की कहानी कहीं-कहीं पर ज़्यादा नाटकीय हो जाती है। साथ ही फिल्म में यदि थोड़ी और गहराई होती तो फिल्म ज़्यादा अच्छी हो सकती थी। इसके अलावा फिल्म की शुरुआत जितनी अच्छी होती है, अंत तक आते-आते फिल्म उतनी ही धुंधली पड़ जाती है।
अभिनय कला और संगीत
शकुंतला देवी के किरदार के रूप में विद्या बालन ने इस महान गणितज्ञ के साथ पूरी तरह से न्याय करने की कोशिश की है। एक बोल्ड लेडी के किरदार में विद्या बालन ने फिल्म में शानदार अभिनय किया है। फिल्म में शकुंतला देवी के पति परितोष बनर्जी (जीशू सेनगुप्ता) का किरदार भले ही छोटा हो लेकिन उन्होंने भी फिल्म में अच्छा अभिनय किया है।
फिल्म में शकुंतला देवी की बेटी के रूप में सान्या मल्होत्रा भी दर्शकों के बीच एक अलग ही अंदाज़ में नज़र आती हैं। साथ ही अन्य कलाकारों, जैसे अमित साध, टॉय हर्ली ने भी फिल्म में अपने अभिनय के ज़रिए एक अच्छी भूमिका निभाई है। इसके अलावा फिल्म के गाने भी लोगों के मन को छू लेने वाले हैं।