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वर्णों और जातियों में बंटे समाज पर एक कविता

caste system

caste system

ना हिंदू बनाया, ना मुसलमान बनाया

 ना सिख बनाया, ना ईसाई बनाया

ना बौद्ध बनाया और ना जैन बनाया

इस सृष्टि ने सिर्फ और सिर्फ इंसान बनाया…!

 

जब तू इस सृष्टि में आया

ना ऊंच-नीच था ना भेदभाव ना ही अत्याचार

मिलजुल कर सब रहते थे खुशहाल…!!

 लेकिन समाज के कुछ तथाकथित लोगों ने

बांटा इस समाज को वर्णों और जातियों में

फिर किया तुमने इस समाज में

 ऊंच-नीच का बीजा-रोपण

किसी को ऊपर किसी को नीचे बिठाया

किया तुमने जी भर के उनका शोषण

बना दिया तुमने उनकी परछाई को भी अपृश्य…!

 

तुमने शिक्षा, स्वतंत्रता, अधिकारों से रखा

 सदियों तक हमें वंचित

दबता गया ये वंचित समाज

तुम्हारे शोषण के बोझ तले…!!

जब मिला महामानव के द्वारा

हमें संवैधानिक अधिकार

मिला दलितों और अछूतों को

सर उठाकर जीने का अधिकार…!

 

कर शिक्षा का सोपान

बने डॉक्टर बने मिनिस्टर

बने प्रोफेसर बने क्लेक्टर

 कर दिखाया हमने भी ज़माने को

है हममें भी वो हौसला वो हिम्मत वो ताकत

   चलें मिलाकर कदम समाज के हर तबके से

रोक ना सका कोई हमें

सफलता की उड़ान भरने से…!!


नोट: इस कविता के ज़रिये मैं समाज में व्याप्त ऊंच-नीच का भेदभाव, जातीय अत्याचार, शोषण, अधिकारों से वंचित रखा गया तबका और मानव को धर्मों के आधार पर तमाम सारे वर्णों और जातियों में बांटने वाली मानसिकता की ओर आपका ध्यान आकर्षित करना चाहती हूं। दूसरा पहलू यह भी है कि जब कोई विपदा आती है या कोई बीमार होता है, उस दौरान अगर किसी को खून की ज़रूरत होती है, तो वहां पर सिर्फ इंसानियत ही काम आती है। जिसको हम सभी को अपने व्यवहार में अपनाना चाहिए।

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