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क्यों आज भी घरेलु हिंसा की अनदेखी कर रहा है समाज?

domestic violence

कोरोना वायरस की वजह से हुए लॉकडाउन में महिलाओं पर होने वाली घरेलु हिंसा में बढ़ोतरी होने की खबरें आती रही हैं। सवाल यह उठता है कि सच्चाई यह है कि घरेलु हिंसा के जितने केस दर्ज किये गए। उससे कहीं ज़्यादा घरेलु हिंसा की शिकार महिलाएं बन चुकी है। बहुत सारी महिलाएं शिकायत दर्ज नहीं करती।

अधिकतर महिलाओं को शिकायत दर्ज कराने से रोका जाता है। हमारे देश में महिलासुरक्षा के लिए कायदे और कानून तो बनाए गए। उसका इस्तेमाल करने की प्रोसेस और एजुकेशन महिलाओं को नहीं दिया गया। आज भी हमारे देश में घरेलु हिंसा की अनदेखी कर रहा हमारा समाज और उसको जायज़ साबित करने की कोशिश कर रहा है।

तू औरत है तुझे समझना चाहिए वह तो पुरुष है उसका क्या?

घरेलू हिंसा की सबसे बड़ी वजह है हमारे समाज का महिलाओं को देखने का। उन्हें समझने का नज़रिया और मानसिकता। तू लड़की है, तू महिला है, तू औरत है तुझे समझना चाहिए वह तो पुरुष है उसका क्या? महिलाओं को  उनका कर्त्तव्य समझाया   जाता है। उसके पति के लिए उसका कर्त्तव्य क्या है? उसके सास-ससुर के लिए उसके कर्त्तव्य क्या हैं? हर कोई उसे उसके कर्त्तव्य समझाता है परंतु कोई उसके अधिकार उसको नहीं समझाता है। यह समाज आज भी यह मानता है कि उसके कोई अधिकार हैं ही नहीं। 

घरेलू हिंसा को सहेने की सलाह, उसे बर्दाश्त करने की सलाह यह समाज उसे देता है। अपनों के खिलाफ अपने पति के खिलाफ शिकायत करके तुझे क्या मिलेगा? लोग क्या कहेंगे? अपनी इज़्ज़त के बारे में सोचलो, अपने बच्चे और  संसार के बारे में सोचलो, बाद में क्या करोगी? उसका क्या वह तो पुरुष है तुम्हें समझना है कि तुम महिला हो और तुम्हारा कर्त्तव्य है इन सब चीज़ों को समझना। 

समाज में यह कैसा माहौल बन गया?

महिलाएं घरेलु हिंसा के खिलाफ आवाज़ नहीं उठाती और न ही उसकी शिकायत करती है। हमारा समाज कहता कुछ है और करता कुछ है। शर्म आनी चाहिए ऐसे समाज को जो आज भी महिलाओं को नहीं समझता है। वह तो घरेलु हिंसा का समर्थन करता है। उनके कर्त्तव्य की बात करता है परंतु उसके अधिकार की बात नहीं करता। हम लोग महिला सशक्तिकरण की, महिला सुरक्षा की कितनी भी बड़ी-बड़ी बातें करें परंतु सच्चाई यह है कि हमारे देश की आज़ादी के 70 साल बाद भी हमारे देश की महिलाएं आज़ाद नहीं हैं। 

समाज द्वारा बनाई गई झूठी और खोखली इज़्ज़त ने उसे जकड़ कर रख दिया है। जो भी   महिला समाज की इस घिलौनी मानसिकता का विरोध करेगी, उसके उपर सवाल उठाएगी, अपने अधिकार की बात करेगी, अपने वजूद अपने अस्तित्व की बात करेगी, अपने स्वाभिमान की बात करेगी उसपर ही यह समाज सवाल उठाएगा।

लॉक डाउन में घरेलु हिंसा में जो बढ़ोतरी हुई है यह हमारे समाज की मानसिकता और घिलौनी सोच को दर्शाता है। लॉक डाउन में सबके काम बंद हो चुके थे परंतु महिलाओं के घर का काम दोगुना बढ़ गया था। इसमें भी लॉक डाउन में महिलाओं को घरेलु हिंसा का शिकार बनना पड़ा। लॉकडाउन में हुई घरेलु हिंसा की बढ़ोतरी से यह साबित होता है कि हमारे समाज में महिलाओं के लिए वह सपोर्ट सिस्टम नहीं है, जो उनकी सुरक्षा करें।

यहां पर तो ऐसा सिस्टम है कि आपका जो भी गुस्सा है, जो भी फ़्रस्ट्रेशन है वह घर की महिला पर निकालो और उस महिला को ही समझना है कि पुरुष ऐसे क्यों कर रहा है, घर में उसके रवैये को जायज़ ठहराने की कोशिश की जाती है परंतु कोई यह नहीं कहता कि तुम्हारे गुस्से उनकी, फ़्रस्ट्रेशन की जो भी  वजह  है उसमें इस महिला की गलती क्या है? जो गुस्सा और  फ्रस्ट्रेशन उस महिला में भी है वह किस पर निकालें? उस महिला के स्ट्रेस के बारे में कौन बात करेगा। हमारे समाज में ऐसी मानसिकता और ऐसा सिस्टम बनाया गया है कि चाहे जो भी वजह हो आखिर में महिला को ही समझना है। उसे ही सहना है।

उसे ही अपनी ज़िंदगी के साथ समझौता करना है

घर टूटने की वजह से और समाज के डर से बहुत सारी महिलाएं घरेलु हिंसा की शिकायत दर्ज  नहीं करतीं। उन्हें ऐसा करने के लिए जो सपोर्ट सिस्टम चाहिए वह हमारी सरकार और हमारी न्याय व्यवस्था अभी तक बना नहीं पाई है।

महिलाओं को उनके ऊपर होनेवाली घरेलु हिंसा को रोकने केलिए शिक्षित करने की और महिलाओं की सुरक्षा के लिए जो कानून बनाये गए है उसका उपयोग करने केलिए अवेयरनेस लाने की ज़रूरत है। इसके लिए हमारी सरकार को प्रयास करने की ज़रूरत है। हमारे देश में महिला सुरक्षा के लिए सख्त कानून बनाए गए हैं। महिलाओं को इसका उपयोग करने की ज़रूरत है। तब जाकर समाज की मानसिकता को हम बदल सकते हैं। 

तापसी पन्नू की थप्पड़ मूवी में जो कहा गया है कि ‘एक थप्पड़ ही तो है लेकिन नहीं मार सकता’। ऐसा हमारी सभी महिलाओंबको कहना चाहिए और ऐसी सोच से ही घरेलु हिंसा को हम रोक सकते हैं।

आज बहुत सारी महिलाएं अपने अधिकार की बात कर रही हैं। अपने ऊपर होनेवाले अन्याय और हिंसा के खिलाफ आवाज़ उठा रही है। शिकायत भी दर्ज कर रही है परंतु ऐसी महिलाओं में और बढ़ोतरी होनी चाहिए। ज़िंदगी एक ही मिली है उसे अपने हिसाब से जीने की कोशिश करनी चाहिए उसे किसी के दबाव में, समाज ने फैलाये डर से, समाज ने बनाई झूटी इज़्ज़त से, सालों से चले आ रहे महिला और पुरुष में भेदभाव करनेवाले तौर तरीको से नहीं जीना चाहिए। 

महिलाओं को खुद तय करना चाहिए की उसे अपनी ज़िंदगी कैसे जिनी है। आज बहुत सारी महिलाएं अपनी ज़िंदगी अपने हिसाब से जीने की कोशिश कर रही हैं। इसे हम बदलाव की शुरुआत कह सकते हैं। अभी मैंने सोशल मीडिया पर  एक कोट पढ़ा था, “Everybody Is Busy In Empowering Women. Who Is Preparing Men For These Empowered Women?”

यह हमारे समाज की आज की सच्चाई है। जो महिलाएं सशक्त बन रही हैं ऐसी महिलों के लिए क्या हम ऐसा माहौल तैयार कर रहे हैं जिसमें हम पुरुषों की महिलाओं के लिए सोच और मानसिकता बदल रहे हैं?

जो महिलाएं जॉब करती है उन महिलाओं को घरवालों से बताया जाता है कि उन्हें कैसे रहना है। जो महिलाएं इनके नियमों के मुताबिक नहीं रहतीं उनको भी घरेलु हिंसा का शिकार बनना पड़ता है। बहुत सारी महिलाओं को जॉब छोड़ना भी पड़ता है। इसका मतलब यह है कि सशक्त महिलाएं जो अपने पैरो पर खड़ी हैं वह भी घरेलु हिंसा का शिकार बनती हैं।

कानून बनने के बावजूद आज भी दहेज दिया और लिया जाता है

शादी  के बाद भी अलग-अलग तरह की मांगे होती है उसे पूरा न करने से भी महिलाएं घरेलु हिंसा का शिकार बनती हैं। अगर शादी के बाद महिला बीमार पड़ती हैं तो आज भी उसे मायके छोड़ा जाता है। लड़की वालों को लड़के वालों के सामने झुककर रहना चाहिए यह नियम आज भी बहुत सारी जगहों पर चल रहा है।

बच्चे की डिलीवरी का खर्चा आज भी मायके वालों से एक हक की तरह लिया जाता है। तेरी मां ने यही सिखाया है क्या? यह  सवाल ससुराल में बहुत सारी महिलाओं को आज भी सुनना पड़ता है। जिन महिलाओं को बेटा नहीं होता उसे आज भी घरेलु हिंसा का शिकार बनना पड़ता है। आज भी बात-बात पर महिलाओं के संस्कार सिखाए जाते हैं। 

हमारे समाज में आज भी महिलाओं के अस्तित्व, उनकी अपनी पहचान, उनकी आज़ादी को नकारा जाता है। उसे वह स्थान नहीं दिया जाता जो उसका हक है, जो उसका अधिकार है। अगर हमें घरेलु हिंसा को रोकना है तो हमारे समाज की मानसिकता और सोच को बदलना चाहिए।

घरेलु हिंसा को निजी बात समझना गलतवहै। घरेलु हिंसा जहां भी हो रही है उसका विरोध करें और उसे रोकने की कोशिश करें। घरेलु हिंसा करने वाले लोगों के खिलाफ आवाज़ उठानी चाहिए। जिसके साथ भी घरेलु हिंसा हो रही है उसका साथ ददिया जाना चाहिए। इसे उनके घर की बात और उनका निजी मुद्दा  है कह कर उसकी अनदेखी मत कीजिए। घरेलु हिंसा रोकने के लिए महिलाओं को और समाज को सपोर्ट सिस्टम बनने की ज़रूरत है। 

अगर आप घरेलु हिंसा के खिलाफ आवाज़ नहीं उठाएंगे, उसे रोकने की कोशिश नहीं करेंगे, बस देखते रहेंगे तो समझ लीजिये कि आप भी उतने ही गुनहगार हैं। किसी भी तरह की घरेलु हिंसा मानवाधिकार का उल्लंघन है। यह अमानवीय और शर्मनाक है हम सभी को इसके खिलाफ आवाज़ उठाने की ज़रूरत है।

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