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“मेरे पापा ऑटो चलाते हैं, इसलिए लड़की वालों ने मेरा रिश्ता कैंसल कर दिया”

आपने ऐसी कहानियां सुनी होंगी या खबरों में पढा होगा कि रिक्शे वाले या ऑटो वाले का बेटे या बेटी सीए बन गया या बन गई या यूपीएससी (सिविल सर्विसेज़) की परीक्षा पास कर ली।

शायद आपने रिन साबुन का वह ऐड देखा होगा जिसमें एक लड़की ऑटो में बैठकर ऑफिस पहुंचती है और उसके बॉस उसे कहते हैं, “इन कपड़ों में तुम 100%  बैंकर लग रही हो लेकिन ऑटो में क्यों?”

इस पर लड़की कहती है, “ये मेरे पापा हैं।” इसके बाद लड़की का बॉस खुद जाकर अच्छे से लड़की के पिता से मिलते हैं।

मेरी सफलता बताती मेरी कहानी

मेरे तो अपने घर में ही ऐसी कहानी है। जी हां, मेरे पापा ऑटो रिक्शा चलाते (रहे) हैं (लॉकडाउन के बाद से नहीं चला रहे) और मेरा भाई एक चार्टर्ड अकाउंटेंट है। और मैं? मैं कुछ खास तो नहीं लेकिन देश के सबसे प्रतिष्ठित मीडिया संस्थान आईआईएमसी से जर्नलिज़्म की पढ़ाई करने का मौका ज़रूर मिला। आईआईएमसी मेरी ज़िंदगी का एक अहम हिस्सा बना जिसने मेरा नज़रिया बदला और मेरी ज़िंदगी का रास्ता तय करने वाला साबित हुआ।

अब तो मीडिया इंडस्ट्री में काम करते हुए 7 साल से ज़्यादा हो चुके हैं। दो न्यूज़ चैनल्स में काम करने के बाद पिछले 5 साल से जिस न्यूज़ एप्प के साथ काम कर रहा हूं, वहां मुझे प्रॉफेशनली और फाइनेंशियली आगे बढ़ने का मौका मिला है। वैसे मेरा नज़रिया तो बदला, जो समय के साथ बदलता भी रहता है लेकिन समाज तो अपनी जगह है, जिसके लिए मैंने या मेरे भाई ने क्या हासिल किया है, वह मायने नहीं रखता है, बल्कि यह ज़्यादा मायने रखता है कि मेरे पापा ऑटो रिक्शा चलाते हैं।

जबकि उन्होंने वही ऑटो चलाकर हमें पढ़ाया और वो बनने का मौका दिया जो आज हम हैं। उनके लिए यह मायने नहीं रखता कि किस तरह हम यहां तक पहुंचे हैं और हमने क्या हासिल किया है, बल्कि यह ज़्यादा मायने रखता है कि हमारा घर कितना बड़ा है, हमारा पैकेज कितना है, शादी के बाद घर का खर्च कैसे मैनेज होगा वगैरह-वगैरह।

मेरी शादी की बात और पापा का काम

मेरे पैरेंट्स को लगता है कि मेरी शादी की उम्र है (जो बेशक है) और जब आपके जीवन में कोई ना हो तो मैट्रिमोनियल एप्स जैसे ऑप्शन्स का सहारा रहता है। इसलिए सबके कहने पर मैंने इन एप्स का रास्ता चुना।

यह वाकिया मेरे साथ कुछ दिन पहले हुआ। एक मैट्रिमोनियल एप्प के ज़रिये एक लड़की के पापा से मेरी बातचीत हुई, जो वो एक बिज़नेसमैन हैं। मैंने उन्हें अप्रोच किया था और पहले मेरी बात लड़की के भाई से हुई जिसने अपने पापा से मेरी बात करवाई। पहले उन्होंने मुझे कहा कि मैं अपने पापा से उनकी बेटी के प्रोफाइल के बारे में बात कर लूं।

मैंने उन्हें कहा कि मेरे पैरेंट्स उस रिश्ते को आराम से ऐक्सेप्ट कर लेंगे, जो मुझे सही लगेगा। उसके बाद उन्होंने मुझसे पूछा कि मेरे पापा क्या करते हैं? तो मैंने उन्हें बताया कि मेरे पापा ऑटो चलाते हैं और जैसे ही मैंने उन्हें ये बताया कि उनका टोन बदल गया। उन्होंने कहा कि वह अभी एनसीआर से बाहर हैं और बाद में बात करेंगे।

ज़िन्दगी या महज़ एक खुला बाज़ार

खैर! यह पहला मौका नहीं था जब मुझे ऐसा एक्सपीरिएंस हुआ हो। ऐसा पहले भी हुआ है लेकिन इस अनुभव के बाद मेरे मन में लिखने का विचार आया कि जिस समाज में हम रहते हैं, उसकी सोच कितनी हल्की है। हालांकि मैं ये नहीं कहना चाहता कि सभी ऐसे हैं लेकिन एक बड़ा हिस्सा ऐसा ही है।

मैं इसे एक मार्केट ही मानता हूं।  खुद को एक प्रोडक्ट मानने लगा हूं (चाहे मैं इस बात से इत्तेफाक ना रखूं)। इस मार्केट के लिहाज़ से मैंने बहुद से बदलाव किए हैं जो फिर कभी साझा करूंगा। लेकिन सच कहूं तो फिलहाल इस बाज़ार में मेरी कीमत कुछ भी नहीं है। बेशक मैं एक अच्छे इंस्टीट्यूट से पढ़ा हूं, एक अच्छी खासी कंपनी में काम रहा हूं। आज की तारीख में लोगों को नौकरी पर रखने के लिए इंटरव्यू करता हूं लेकिन इन सब के बावजूद इस बाज़ार में मैं खुद को एक ‘लूज़र’ ही देखता हूं।

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