आईपीसी की धारा 375 के अनुसार जब कोई पुरुष किसी महिला के साथ उसकी इच्छा के विरुद्ध संभोग करता है, तो उसे बलात्कार कहते हैं।
बलात्कार को और बड़े संदर्भ में समझने की ज़रूरत है। हमारा समाज पुरुष प्रधान समाज है, जहां स्त्री को बहुत ही सीमित अधिकार दिए गए हैं। आज भी इस पुरुष प्रधान समाज का एक बड़ा तबका महिलाओं को शिक्षा से वंचित रखने के पक्ष में है और ना ही संपत्ति का अधिकार देने को तैयार होता है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इन्हें अपना जीवन साथी चुनने का भी कोई हक नहीं होता है। पिता अपनी पुत्री का विवाह करके ऐसा महसूस करते हैं, जैसे इन्होंने कितना बड़ा कर्ज़ उतार दिया हो।
जिस विवाह से वह स्त्री खुश नहीं है, क्या वह संभोग के लिए तैयार होगी?
इसका जवाब है नहीं, अगर किसी स्त्री का विवाह उसकी मर्ज़ी के बिना होता है तो विवाह के बाद निश्चित है कि उनके बीच संभोग होगा और इन अधिकतर मामलों में संभोग के वक्त वह लड़की मानसिक रूप से तैयार नहीं होती है परन्तु उसके साथ संभोग किया जाता है।
उपरोक्त आईपीसी की धारा के अनुसार अगर किसी स्त्री के मर्ज़ी के बिना संभोग किया जाता है तो उसे बलात्कार की श्रेणी में रखा जाता है। पति-पत्नी के बीच होने वाले इस संभोग को समाज बलात्कार नहीं समझता पर यह बलात्कार है, अपराध है।
अपराध करने वाला और अपराध में मदद करने वाले सभी अपराधी होते हैं। उस लड़की के पति के साथ ही उसके पिता, उसका भाई, उसकी मॉं और तमाम लोग जिन्होंने उस लड़की की जबरन शादी करवाई है, सभी बलात्कारी हैं। सिर्फ इतने ही बलात्कारी नहीं हैं, वह सभी व्यक्ति बलात्कारी हैं, जो इस विवाह में शामिल होंगे।
क्या है कानूनी प्रावधान
मैरिटल रेप से संबंधित अगर कानून पर नज़र डाले तो भारतीय दंड संहिता के अनुसार, 12 से 15 साल की उम्र की पत्नी के साथ ज़बरदस्ती संबंध बनाने को अपराध की श्रेणी में रखा गया है। ऐसा करने पर पति को 2 साल की जेल या जु़र्माना या फिर दोनों की सज़ा हो सकती है।
लेकिन यहां एक अजीब सा एंगल देखने को मिलता है अगर पत्नी की उम्र 15 साल से ऊपर है और पति उसके साथ ज़बरदस्ती संबंध बनाता है यानी उसका रेप करता है तो वहां इसे अपराध नहीं माना जाएगा।
अब देखिए यहां लड़कियों की शादी की उम्र सीमा ही 18 साल है, तो फिर 16-17 साल की लड़कियों (जिनका बाल विवाह हुआ है) के साथ पति द्वारा किए गए बलात्कार को बलात्कार माना ही नहीं जाएगा। 2005 में घरेलू हिंसा कानून के अंदर भी मैरिटल रेप को घरेलू हिंसा की श्रेणी में नहीं रखा गया है।
स्त्रियों को अपना जीवन जीने दें, उनके बलात्कार का कारण आप ना बनें। स्त्री के ना का मतलब सिर्फ और सिर्फ ना होता है और कुछ भी नहीं। पुरुष वर्ग को यह बात जितनी जल्दी हो सीख लेनी चाहिए।