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प्रेम का आधार धर्म और जाति कैसे हो सकता है?

जाति

प्रिय अल्लाह, भगवान जो भी हैं,

कई रात और कई दिन से कुछ सवाल मेरे मन को कचोट रहे हैं, उसका जवाब नहीं मिल रहा हमको। तो सोचे आपसे ही कहते हैं। आप तो सबकी सुनते हैं ना, सारे सवालों के जवाब हैं आपके पास।

सारी दुनिया आपने ही बनाई है ना, यहां जो कुछ भी है सब आपका ही है ना। ये इतने सारे धर्म, जाति क्यों बनी? लोग इतने डिवाइड क्यों हो गए? सारे धार्मिक ग्रन्थों के माध्यम से आप कहते है ना कि सबसे प्यार करो। आप ही बताए, ऐसा होता है क्या? अगर नहीं होता है तो क्यों नहीं होता? आप ऐसे लोगों को सज़ा क्यों नहीं देते, जो आपको टुकड़ों में बांट रहे हैं।

धर्म के नाम पर प्यार छोड़कर सबकुछ होता है। धर्म का काम है जोड़ना और यहां धर्म के नाम पर लोग मारे जा रहे हैं, नफरतें फैलायी जा रही हैं। लोग एक-दूसरे में इंसानियत नहीं, बल्कि धर्म और जाति के आधार पर दुश्मन देख रहे हैं। दो प्यार करने वालों को जान से मार दिया जा रहा है, धर्म और जाति के नाम पर। क्या आपने इसलिए ही धर्म बनाया था? या इसलिए कि लोग एक दूसरे के करीब आएं।

लोग आजकल एक-दूसरे को उसके विचारों और इंसानियत से नहीं बल्कि जाति और धर्म देखकर पसन्द कर रहे हैं। आपकी नज़र में यही प्यार है क्या? प्रेम, इंसानियत, करुणा इन सबका कोई मतलब नहीं है क्या? अच्छा मुस्लिम और अच्छा हिन्दू होना एक अच्छे इंसान होने से ऊपर क्यों है? आप तो दुनिया है ना तो बताये हमें, मेरा छोटा सा दिमाग और दिल इस बात को नहीं समझ पा रहा है कि हम एक अच्छा इंसान बने या एक अच्छा मुस्लिम या हिंदू।

हम सबसे प्यार करने चाहते हैं, हम बंटना नहीं चाहते टुकड़ों में, जैसे आप एक हैं, क्या पूरी मानव जाति एक नहीं हो सकती। प्रेम का आधार धर्म और जाति कैसे हो सकता है? जो जाति और धर्म देखकर प्रेम हो, क्या उस प्रेम को आप प्रेम कहेंगे। बतायें हमें।

इस समाज में, अपराधियों को, चोरों को, अनैतिक लोगों को सम्मान मिल रहा है और प्यार करने वालों को मार दिया जा रहा है, जब आपने मानव जाति बनाया था तो आपने ऐसे ही समाज की कल्पना की थी क्या? मेरा मन शांत नहीं रहता, यह सब सवाल हमें परेशान करते हैं।

हम आज़ाद नहीं हैं, बंधे हुए हैं हम, हम गुलाम हो गए हैं, सामाजिक बंधनों के जो निश्चित तौर पर आपने नहीं बनाया है। आप किसी को प्रेम करने से क्यों रोकेंगे। आपके लिए तो सारी दुनिया और सभी जीव एक है ना। फिर हम आपके प्रेम के नियम को माने या इस झूठी शान के लिए बनाये गए नियमों को। हमें इतनी भी आज़ादी नहीं है कि हम जिससे चाहें उससे प्रेम कर सकें, उसके साथ अपना जीवन बिता सकें। हमें जीवनसाथी चुनने के लिए भी ऑप्शन दिए जा रहे हैं। हमारे मन को संकीर्ण नियमों से बांध दिया गया है।

हम लोगों से मिलने पर, उसका नाम जानने से पहले उसका धर्म और जाति ढूंढ रहे हैं। हमारे लिए उसका अच्छा इंसान होना उतना मायने नहीं रखता, जितना उसका हिन्दू या मुस्लिम होना रखता है। क्या यह दुनिया सच में आपको मान रही है? जो इंसान आपसे प्रेम करता है वह किसी और को प्रेम करने से क्यों रोकेगा? अगर वह रोक रहा है, तो क्या सच में वह आपसे प्रेम करता है।

हम किससे प्रेम करें यह कोई और निर्धारित कर रहा है। क्या आप इस बात से सहमत हैं? मुझे ऐसा लगता है शायद आप ऐसी दुनिया नहीं चाहते होंगे, जहां प्रेम पर पाबंदी हो और नफरत करने वालों को इज्ज़त दी जा रही हो। धर्म और जाति के नाम पर अपने बच्चों को मारने वाले को समाज में सम्मान दिया जा रहा हो, प्रेम करने की सज़ा मौत हो। मुझे लगता है कि अल्लाह ईश्वर जो भी नाम हो आपका, आप कम-से-कम ऐसी दुनिया तो नहीं चाहते होंगे।

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