क्या होता है जब आप रोज की तरह एक दिन खाना बनाने से इंकार कर देती हैं? क्या होता है जब आप घर में मां-बाप की या बड़ो की बात ना मानकर वो करती हैं जो आप चाहती हैं।
ज़ाहिर-सी बात है खुशी तो नहीं मिलती। आपको घरवालों की नाराज़गी झेलनी पड़ सकती है, गुस्सा झेलना पड़ सकता है। बातें इतनी बढ़ जाती है कि ना तो वह आपसे बात करना चाहते हैं और ना ही आप उनसे। अपने ही घर में हम कुछ समय के लिए ही सही बार-बार अलग हो जाते हैं।
लॉकडाउन में लड़कियों का परिवार से बिगड़ रहा है सामंजस्य
देशव्यापी लॉकडाउन के बाद से सबकी जीवन शैली में बदलाव आया है जिसे सकारात्मक और नकारात्मक रूप से कई मायनों में देखा जा सकता है। खासकर युवा महिलाओं की बात करें तो उन्होंने जो सामंजस्य अपने परिवार और करियर के बीच बनाया था लॉकडाउन के कारण वह काफी हद तक बिगड़ चुका है।
नेहा दिल्ली यूनिवर्सिटी के अंतिम वर्ष की छात्रा है जो बताती हैं,
“अपना ज़रूरी काम छोड़कर मुझे घर का काम करना पड़ता है, नहीं तो घर वालों को लगता है कि हम उनका अनादर कर रहे हैं। जितना वक्त मैं पहले अपने काम को दे पाती थी अब उसका आधा भी नहीं नहीं दे पाती, हालांकि मैं घर पर ही रहती हूं लेकिन घर के काम में इस तरह इन्वॉल्व हो गई हूं कि समय का पता ही नहीं चलता।”
वहीं दिल्ली यूनिवर्सिटी की ही छात्रा मुग्धा का कहना है,
“खाना बनाना शुरू में शौक था लेकिन अब यह डिप्रेसिंग काम लगता है। लॉकडाउन के कारण बहुत सारे काम मैं नहीं कर पाई। कॉलेज का आखिरी साल है। इस बीच मुझे आगे एंट्रेंस की तैयारी भी करनी होती है लेकिन समय ऐसे ही निकल जाता है। जिसकी वजह से इरिटेशन होती है घर में लड़ाई भी हो जाती है। कई बार अपनी स्थिति समझाना मुश्किल होता है लेकिन अब आदत पड़ गई है। घरवालों की उम्मीद ज़्यादा है जिसकी वजह से कई बार तनाव महसूस होता है।”
लॉकडाउन में पितृसत्तात्मक सोच ने जमाई है अपनी जड़ें
समाज में पितृसत्ता के कारण कई सारे ऐसे पहलू हैं जो जेंडर के आधार पर किए जाने वाले भेदभाव को दर्शाता हैं, जो कि समय के साथ बदलता रहता है। कई सारी महिलाएं और छात्राएं इस स्थिति से उबरने लिए एक माहौल तैयार करती है लेकिन लॉकडाउन में इस सोच ने अपनी जड़ें और गहराई से जमा ली हैं।
सकारात्मक बदलाव की बात करें तो सोनाक्षी जो अंतिम वर्ष के छात्र है, उनका कहना है कि वह खुश है कि उन्हें अपने परिवार के साथ अच्छा समय व्यतीत करने का मौका मिल रहा है। वह बताती हैं कि उसके पिता बिजनेसमैन है जिसके कारण बहुत समय से वह अपने पापा से बात भी नहीं कर पा रही थी।
वहीं, दूसरी ओर नेहा बताती हैं कि लॉकडाउन के कारण बाहर जाने का रूटीन पूरी तरह से खत्म हो गया जिसके चलते बॉडी मैं दर्द और वजन बढ़ गया हैं जिसका परिणाम यह है की अब काफी आलसी हो गई हैं और किसी काम को करने में काफी समय लग जाता है।
मोनिका बी.ए. अंतिम वर्ष की छात्रा है जो बातचीत के दौरान बताती हैं, “मैं पहले ज़्यादा पढ़ पाती थीं। खुद के लिए थोड़ा ज़्यादा टाइम निकाल पाती थीं लेकिन अब घर के छोटे-छोटे कामों की वजह से 1- 2 घंटे ही पढ़ पाती हूं।”
मोनिका और नेहा जैसी अन्य कई छात्राएं हैं जो लॉकडाउन होने के कारण अपने करियर और काम की तरफ ध्यान केंद्रित नहीं कर पा रही है। इसकी वजह से एक अलग तरह का मानसिक दवाब उत्पन्न हो रहा है।
घर के काम की ज़िम्मेदारी महिला की ही क्यों?
अधिकांश महिलाओं के साथ ऐसा इसलिए है, क्योंकि भारतीय समाज के हिसाब से घर का काम महिलाओं का है जिसमें पुरुष अगर सहयोग करता है तो वह बहु-चर्चित मुद्दे के रूप में शान की बात होती है या फिर बहुत शर्मनाक बात होती है।
यहां लगभग सभी घरों में महिलाओं और लड़कियों को काम करते देखा जा सकता है। मुग्धा बताती हैं, “मेरे घर में मेरा भाई वर्क फ्रॉम होम कर रहा है जिसके कारण कोई भी उसे किसी काम के लिए नहीं बोलता, बल्कि हमें पानी भी खुद जाकर उसे देना होता है। हालांकि वह बाहर का कुछ काम और बोतल में पानी भर देता है इसके अलावा कुछ नहीं।”
इस तरह की स्थिति में समस्या तब और बढ़ जाती है जब किसी महिला को घर का काम ना करने पर मानसिक तनाव और भावनात्मक दवाब झेलना पड़ता है और वह काम करने पर मज़बूर हो जाती है। कई ऐसी महिलाएं हैं जिन्होंने हाल ही में जॉब की शुरुआत की है जिसके कारण वर्क फ्रॉम होम के साथ-साथ घर के काम जो कि पहले के मुकाबले दोगुने हो गए हैं, वो उन्हें परेशान कर रहे हैं।
महिलाओं की इस समस्या पर कोई नहीं कर रहा है बात
इस तरह की समस्या से किस तरह उबरा जाए इस सवाल पर कोई बात नहीं कर रहा है। हालांकि कुछ गैर-सरकारी संगठन हैं जो निशुल्क कॉल की सेवाएं दे रहे हैं ताकि अगर आप परेशान हो तो उनसे बात कर सकें और कोई गलत फैसला ना लें।
मोनिका बताती हैं कि उन्हें परेशानी ना हो इसलिए वह पहले घर के सभी काम कर लेती हैं। उसके बाद बचे हुए वक्त में अपना काम करती हैं। इस वजह से वह अपना काम ठीक से नहीं कर पाती हैं। मोनिका अपना काम दोपहर में ही कर पाती हैं जब सभी लोग आराम कर रहे होते हैं।
क्लिनिकल साइकोलॉजी में मास्टर्स कर रही सलोनी बताती हैं कि इस तरह की समस्याएं से कोविड-19 के दौरान सामान्य हो चुकी हैं, जिनसे इस तरह से उबर सकतें हैं –
- आप रोजाना मेडिटेशन या इस प्रकार के व्यायाम कर सकते हैं जिनसे आपके शरीर में साफ हवा जाए और आप नई सुबह के साथ फ्रेश महसूस करें।
- आप रोजाना इस तरह का ड्रेसअप कर सकती हैं जिससे आप खुश महसूस करें, ब्राइट रंगो के कपड़े पहने ताकि एक सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह हो।
- अपनी सोशल मीडिया लाइफ को सीमित करें साथ ही कोरोना से जुड़े विषयों के बारे में अधिक चर्चा ना करें।
- कोरोना के कारण बहुत सारे लोगों से मेलजोल खत्म हो गया है। पहले के मुकाबले बात नहीं हो रही है। उस दूरी को कम करने के लिए ज़रूरी है कि आप अपने दोस्तों व परिवार से बातचीत करती रहें।
- अपने काम व करियर के लिए एक समय-सीमा तय कर लें।
इस प्रकार के कुछ छोटे-छोटे बदलावों से हम काफी हद तक बिना मानसिक दवाब के अपना काम कर सकते हैं।
जेंडर आधारित असमानता के खिलाफ उठानी होगी आवाज़
समाज ने लड़के और लड़कियों की परवरिश में शुरू से जेंडर के आधार पर उनकी क्रियाओं, खेल और सांस्कृतिक व सामाजिक भावना को तय कर दिया जाता है। उसी के अनुसार, वह अपना जीवन व्यतीत करते हैं।
इससे बाहर निकलने में समय लग सकता है, तो ज़रूरत है कि धीरे-धीरे बदलाव की और कदम बढ़ाया जाए और किसी एक जेंडर पर सामाजिक दवाब इस प्रकार हावी ना रहे जो उसकी पहचान व परवरिश तय करे।