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AMU में PM का “मिनी इंडिया” संदेश या बड़ा सियासी संकेत?

प्रधानमंत्री मोदी का अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के शताब्दी वर्ष में शामिल होना किस ओर संकेत देता है। मिनी पाकिस्तान कहे जाने वाले AMU को प्रधानमंत्री द्वारा मिनी इंडिया कहा जाना किस बात का डैमेज कंट्रोल है? याद कीजिए 2019 के दिसंबर को, अलीगढ़ में प्रोटेस्ट करने वाले छात्रों के साथ क्या-क्या हुआ था?

प्रधानमंत्री के इस कदम से सोशल मीडिया पर आग लग जानी चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। न ट्रेंडिग टॉपिक्स में AMU दौरा टॉप पर है और न ही कर्कश बहस की बात दिखी। ऐसा शायद इसलिए है क्योंकि प्रधानमंत्री के इस कदम को अभी उनके समर्थक, आलोचक या निष्पक्ष लोग समझने की कोशिश ही कर रहे हैं कि आखिर किया क्या गया है।

पीएम मोदी के AMU  जाने का आखिर संदर्भ क्या है?

संदर्भ यह है कि बीजेपी और उनके समर्थकों ने 6 साल में हर चुनाव के वक्त लगातार हिंदू-मुसलमान, भारत-पाकिस्तान का नैरेटिव चलाया। यही नहीं यूपी में लव -जिहाद, गोरक्षा के नाम पर जो कुछ भी घटित हुआ, उसने मुसलमानों को डिफेंसिव बनाने जैसा ट्रेंड चलाया। फिलहाल लव-जिहाद के शोलों से यूपी दहक रहा है, इसी बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एएमयू के छात्रों को संबोधित करने का फैसला ले लिया।

अलीगढ़ में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा,“ अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी ‘मिनी इंडिया’ है, भारत का गौरव है, गौरवशाली इतिहास है। सर सैय्यद अहमद खान ने देश की बहुत सेवा की है, यहां मॉर्डन तालीम होती है, दुनियाभर में इस यूनिवर्सिटी के एलुमनी फैले हुए हैं, वो एक तरह से हमारे ग्लोबल एंबेसडर हैं।”

बड़ा सवाल क्या मोदी के बयान से हिंदुत्ववादी संगठन के व्यवहार में बदलाव आएगा? क्या बीजेपी आरएसएस या हिंदुत्वाद का झंडा बुलंद करने वाले मुस्लिमों के खिलाफ चल रहे नकारात्मक ट्रेंड को अब रोक देंगे? शायद, ऐसी आशा करना जल्दीबाज़ी होगी।

PM मोदी का यह कदम बंगाल चुनाव से ठीक पहले क्यों उठा?

बंगाल के चुनाव से पहले प्रधानमंत्री मोदी द्वारा उठाया गया यह कदम कितना सार्थक है? वैसे पीएम मोदी इससे पहले भी कई विश्वविद्यालयों में अपनी मौजूदगी से सुर्खियां बटोरते रहे हैं। लेकिन कट्टर हिंदुत्व वाले एलीमेंट का सबसे पसंदीदा टारगेट तो एएमयू रहा है। इसलिए मोदी का यह कदम चौंकाता है।

उसके बाद पीएम मोदी द्वारा कही गई बातें भी चौंकाती हैं। दरअसल CAA-NRC को लेकर एक साल से चल रहे विरोध के कारण असम के बाद पश्चिम बंगाल ही निशाने पर दिखाई दे रहा है। हाल ही में भाजपा नेता अमित शाह ने बतौर गृह मंत्री इस कानून के तहत सख्त बयान दिये।

ऐसे में सवाल उठना लाज़मी है कि गृहमंत्री हार्ड हिंदुत्व पर फोकस्ड हैं तो वहीं मोदी सॉफ्ट हिंदुत्व पर पश्चिम बंगाल में अपनी चुनावी नाव खेना चाहते हैं। यदि ऐसा है तो क्या भाजपा को बंगाल फतह के लिए अमित शाह के द्वारा चलाए जा रहे अभियान कमज़ोर हैं? उस कमज़ोरी को दूर करने के लिए मोदी मुस्लिम वोटों में सेंध लगाना चाहते हैं।

यदि ऐसा है तो मोदी का बंगाल चुनाव से पूर्व उठने वाला अगला कदम फिर एक बार डैमेज कंट्रोल का संकेत होगा? यदि होगा तो क्या भारत का मुसलमान जो खुद को असुरक्षित महसूस कर रहा है उसका खौफ कम होगा, वह पिघल कर भाजपा को अपने वोट देगा?

बहरहाल इस बात पर गौर कीजिए कि एएमयू पहुंचकर पीएम ने क्या कहा,“ मैं बिल्कुल वैचारिक मतभेद से आगे बढ़कर देश बनाने की बात करता हूं, आप लोग भी उसमें योगदान दीजिए। आपका भी कर्तव्य है, मैं ये बताना चाहता हूं कि मुस्लिम बेटियों के लिए मेरी सरकार ने कितना काम किया है।” 

तो क्या एएमयू के ज़रिए यह एक तरह का सबसे बड़ा वोटर आउटरीच था?

अभी तक मोदी ऐसे आउटरीच दूसरे तरीकों से करते रहे हैं। मसलन दाउदी वोहरा समुदाय के ज़रिए या UAE में जाकर मस्जिद का एक दौरा करने के ज़रिए। कहने का अर्थ है कि इस तरह के संकेत मोदी हमेशा से देते रहे हैं लेकिन सवाल यह है कि AMU वाला कदम उनके लिए बहुत सारे पॉलिटिकल मतलब निकाल सकता है।

प्रधानमंत्री मोदी के करीबी रहे ज़फर सरेशवाला इस कदम पर कहते हैं,“ यह तमाचा लेफ्ट, लिबरल, सेक्युलर लोगों के लिए नहीं है ये तमाचा उग्र हिंदुत्व वाले तत्वों के लिए है जो लगातार मुस्लिम बैशिंग करते रहे हैं। अब वो क्या कहेंगे, पीएम मोदी के एएमयू में चले जाने के बाद, इस तरह के शिक्षण संस्थानों पर हमले चल रहे थे, क्या इनमें अब कोई बदलाव आएगा।” 

ज़फर सरेशवाला के इस बयान से मुस्लिम किस हद तक मुतमइन होंगे, यह भी एक सवाल है। यदि अलीगढ़ के AMU का दौरा लिटमस टेस्ट है जिससे पीएम मोदी अपने राजनीतिक विमर्श को बदलना चाहते हैं तो ध्यान देने वाली बात यह होगी कि एएमयू की एक शाखा केरल, बंगाल और बिहार में है, ऐसे में क्या उनका कदम चुनावी घमासान को नरम करेगा या और कर्कश बनाएंगे?

बंगाल में जिस तरह की बातें हो रही हैं उसे देखकर लगता नहीं है कि कर्कशता कम होगी।  

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