मुहब्बत के हरेक पड़ाव का अलग मुकाम होता है, मुहब्बत को दरअसल ज़िंदगी का एहसास कहा जाना चाहिए। इश्क का हर रंग ज़िंदगी में नया पहलू लाता है। युवा फिल्ममेकर आसिम कमर की पुरस्कृत शॉर्ट फिल्म ‘हमसफर’, मुहब्बत के पड़ावों का डॉक्यूमेंटेशन करती शॉर्ट फीचर फिल्म है।
अक्सर लोग जीने के मायने मुहब्बत में तलाश किया करते हैं। ज़िदगी में मुहब्बत की जुस्तजू सी हुआ करती है, उसका रोमांस कभी खत्म नहीं होता है। किन्हीं वजहों से अगर रिश्तों में कड़वाहट आ जाए, तो बेहतरी की उम्मीद नहीं खोनी चाहिए।
रिश्तों को एक दूसरा मौका देने की बात
रिश्तों को उम्र देने के लिए एक दूसरे को मौके मिलने चाहिए, क्योंकि रिश्तों का बिगड़ना बहुत आसान है लेकिन उन्हें हासिल करने में उम्र गुज़र जाती है। एहसास कभी नहीं मरता है, सिर्फ उसका हिस्सा घटा करता है। एहसास को पहचानकर रिश्तों को उम्रदराज़ किया जा सकता है, उन्हें लम्बी उम्र दी जा सकती है।
आसिम कमर ‘हमसफर’ के ज़रिए एहसास की अहमियत को बखूबी रेखांकित करते हैं। फिल्म की कथा किसी को हमसफर बनाने व बरकरार रखने की बात करती है। हम जब मुहब्बत के रिश्ते में दाखिल होते हैं, तो सुरमयी शाम का आगाज़ होता है। सुरमई शामें उजली सुबहों की ताबीर बनती हैं, खुशनुमा रंगों को खड़ा करती हैं।
आसिम रिश्तों के सफर में पड़ावों की बात करते हैं-
उन्हें एक दूसरे से जोड़कर उनकी अहमियत बताते हैं। मुहब्बत की दुनिया में यह मुकाम हर किसी को पेश आते हैं। फर्क सिर्फ इसकी समझ और गंभीरता का होता है। रिश्तों के दरम्यान पेश आए तज़ुर्बें ज़िंदगी को पूरी धूप-छांव को समझने का सलीका देते हैं।
प्यार के जज़्बात में दाखिल होकर मनमुटाव और दूरियों तक की कड़वाहट देखनी पड़ती है। इम्तिहान के दौर में रिश्तों में दूरियां हो जाना देखा जाता है लेकिन यह जल्दबाज़ी, समझ और सब्र की कमी है, दरअसल हम वक्त की चुनौती को नहीं समझ पाते हैं।
फिल्म में मुहब्बत के हरेक पड़ाव को रचा गया है-
मौजूदा फिल्म में मुहब्बत के हरेक पड़ाव को रचा गया है। यह हमें आकर्षित करते हुए ज़िंदगी के बहुत करीब ले जाती है। हमारी आपकी बात करती है, सिर्फ समस्या ही नहीं उपाय की ओर भी संकेत करती है।
प्रपोज़ल में लड़का, लड़की को उसकी ताज़ा तस्वीरें देकर जान-पहचान कायम करता है। किसी भी नए से दोस्ती करने का यह दिलचस्प तरीका था। छोटी मुलाकातों से शुरू हुआ सफर प्रपोज़ल व उसके कुबूल होने की रूमानी मंज़िल तक को जाता है। इस पड़ाव पर अक्सर आदमी को महसूस होता है कि अब तक गुज़री ज़िन्दगी बेसबब सी थी। ना कोई जीने का मतलब मालूम था, ना ही मायने समझ आए थे।
बस यूं ही बेसबब लुढ़कती जाती थी ज़िंदगी जाने किधर। ना कोई मकसद था इसका, ना कोई वजह-ए-सफर। ऐसे ही मोड़ पर मुहब्बत मिली तो लगा ज़िंदगी को मिल गया वह मकसद, वह वजह-ए-सफर जिसकी हमेशा से तलाश थी। काश बस वही बन जाती हमनवां, हमनज़र, हमकदम, हमसफर।
प्रस्ताव अथवा प्रपोज़ल से आगे बढ़ा सफर रोमांस की दहलीज़ को पाता है। प्यार के जहान में यह पड़ाव खुद में खूबसूरती और रूमानियत समेटे रहता है। मेहबूब के साथ गुज़री सुरमई शामें रोज़ाना के बेतरतीब दिनों मे लुत्फ का जादुई एहसास दिया करती हैं। रोमांस की मंज़िल पर हमसफर से रिश्ता जज़्बात का उरूज होता है।
एक मर्तबा जो खुशनुमा पल आ जाए, फिर फुर्सत भरे दिनों की बहुत ज़्यादा गरज नहीं रह जाती है। यह वक्त कूछ यूं गुज़रता चला जाता है, मानो सारे अहम कामों की कोई बिसात नहीं है। मुहब्बत पर ज़िंदगी वार देने से खुशनुमा पल हमें वार दिए जाते हैं। अपनी नीयत पर फक्र सा महसूस होने लगता है। जब वह हमदम हमसफर बन जाता है, सारे नज़ारे प्यारे हो जाते हैं। सब हाल हर सूरत खूबसूरत बन जाते हैं, आदमी इश्क की खूबसूरती में डूब जाता है।
ज़रूरी नहीं हर मुहब्बत को शादी का मुकाम हासिल हो-
रुमानी वक्त, लम्हों को मज़बूती देकर एंगेजमेंट और शादी तक ले जाते हैं लेकिन ज़रूरी नहीं कि हर मुहब्बत शादी के मुकाम को पाए। ज़िन्दगी के बड़े फैसले मामूली सी लगने वाली खुशियों की गारंटी नहीं समझे जाने चाहिए। हर पल बदलता वक्त रिश्तों का कड़ा इम्तिहान लिया करता है।
शक-गलतफहमी मिठास को कड़वाहट में तब्दील करने में वक्त नहीं लगाते। एक-दूसरे के जज्बातों को इज्ज़त देकर उन्हें सही तरह पहचान कर ही हम बेहतर दिनों को फिर से वापस ला सकते हैं। यह पहल दोनों तरफ से हो तो बेहतर होता है।
आसिम कमर की फिल्म रिश्तों को समझने, संवारने की नेक कोशिश है-
यह बात इसमें शिद्दत से उभरकर आती है कि इतिहास के तल्ख पलों को भूला दिया जाना चाहिए। यादगार लम्हों को ज़िन्दा करने की कोशिश दरअसल रिश्तों को उम्र दिया करती है।
फिल्म से गुज़रते हुए हमें मालूम होगा कि खूबसूरत पल दिल के मरासिम हुआ करते हैं। बड़ी शिद्दत से बनते, बड़ी नज़ाकत से इन्हें संभाला जाता है। बड़ी जतन, बड़ी हिफाज़त से मोती चुन-चुन कर पिरोना पड़ता है। अक्सर यह जज़्बे चांदी की छलनी में बिखर-बिखर जाते हैं, इसलिए इन्हें पलकों से लगाने की ज़रूरत होती है।
कड़वाहट रिश्तों से भरोसा हटाकर उसे बड़ा नुकसान पहुंचाती हैं। हमसफर जब रास्ते बदल ले, तो मंज़िल भी बदल जाया करती हैं, क्योंकि दोनों की जुस्तजू अब एक नहीं रहती है लेकिन सच पूछिए जो ख्वाब दोनों ने मिलकर देखे थे, उन्हीं की आंखों के सामने टूट-छूट जाएं तो आंसू निकल आते हैं जनाब।
रिश्तों के ताने-बाने पर खड़ी ‘हमसफर’ कह गई कि दूरियों के बाद भी अगर खुदा कभी दो बिछड़ों को मिलने का अवसर दे, ज़िन्दगी में फिर से साथ होने का मौका दे, तो निगाहों की दूरियां, वक्त की दूरियां फना कर अपने हमराह के साथ हो लेना चाहिए। ज़िन्दगी को दूसरा मौका दिया जाना चाहिए, क्योंकि दूसरा मौका बड़ी मुश्किल से मिला करता है। ज़िन्दगी रुकती नहीं कभी किसी मोड़ पर, बस एक मौका और चाहता है हर बशर। ज़िन्दगी को खुशनुमा बनाने की हमें हर मुमकिन पहल लेनी चाहिए।
फिल्म से गुज़रते हुए हमें महसूस होगा कि नैरेशन पक्ष काफी खूबसूरत है। प्यार के हर इक ज़रूरी पड़ाव को बुना गया है लेकिन सिर्फ वो ही नहीं कलाकार भी निराश नहीं करते हैं। नए चेहरों ने अपने किरदारों को बखूबी समझा है। बैकग्राउंड संगीत वक्त और हालात के उतार-चढ़ाव के मुताबिक रखा गया है। रिश्तों पर बारीकी नज़र के लिए ‘हमसफर’ एक सुंदर विकल्प है।