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हिमालय के वादियों से प्यार का पैगाम लाया’बेगटेल’

 

प्राकृतिक रूप से हमारा देश विविधताओं से भरा है। तभी तो हमारे देश के अलग-अलग हिस्सों में एक साथ सभी प्रकार के मौसम देखने को मिलता है। सामान्यतः: नवंबर-दिसंबर में पूर्वोत्तर और मध्य भारत के क्षेत्रों में शीत ऋतु की दस्तक हो जाती है। इस वर्ष तो अभी से ही दिल्ली, उत्तर प्रदेश और बिहार में अभी से ही अच्छी ठंडी पड़ रही है। इस ठंड के कारण हमारे हमारे उत्तर बिहार और नेपाल के तराई इलाकों में एक छोटा, पतला-सा पक्षी का आगमन होता है। जिसका पेट सफेद और उनका ऊपरी सिरा काला होता है जो दिखाई पड़ने लगा है। इस वेगटेल बर्ड को पहचानने का सबसे आसान तरीका है यह जहां भी बैठती है अपनी पूंछ को हमेशा ऊपर-नचे करती नजर आती है। इसलिए इनका अंग्रेजी नाम ‘बेगटेल'(wegtail) शब्द का प्रयोग किया जाता है। जिसका अर्थ होता है लगातार अपनी पूंछ ऊपर-नीचे कर हिलाने वाली चिड़िया। जिसे हिंदी के शब्दों में ‘खंजन चिड़िया’ के नाम से जानते हैं।

 

यह खंजन चिड़िया केवल शीत ऋतु में ही हमारे इलाकों में नजर आती है। और ग्रीष्म ऋतु के आगमन के साथ ही अपने प्रदेश को वापस लौट जाती है। इसलिए तीन-चार माह हमारे यहां मेहमान के रूप में रहती हैं। जबकि इन चिड़ियों का मूल निवास स्थान 2000 से 2500 किलोमीटर दूर कश्मीर और पश्चिमी पाकिस्तान है। जो हिमालय के वादियों को पार कर समूह में प्यार का पैगाम लेकर आती है।

 

खंजन चिड़िया का हमारे पर्यावरण में खास महत्व है क्योंकि इसका मुख्य भोजन कीड़े-मकोड़े है तो यह भोजन की तलाश में दौड़-दौड़ कर खेत-खलियन, आंगन,घर की छत, नदी, तालाब के पास अपने भोजन को तलास में कीड़े मकोड़े को पकड़कर खाती है। इसकी लंबी प्रवास को लेकर पक्षी वैज्ञानिकों में बड़े समय से अनसुलझे रहस्य बना हुआ है। जिस पर सभी पक्षी वैज्ञानिकों का अपना अलग-अलग मत है।

 

‘वसुधैव कुटुंबकम’ के परंपरा वाले भारत में बेगटेल चिड़िया का स्वागत है..!

 

 

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