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यह सोचकर भी रह सकते हैं हम,मोटीवेटेड।

अंधेरा – जहाँ कुछ भी नहीं दिखता , एक कालापन जो आँखों को बिल्कुल भी पसन्द नहीं है। जब बचपन था तो इससे डर लगता था पर आज हम जब बड़े हो गए हैं तो हम घबरा जाते हैं और कहीं रुक जाते हैं। अगर तलाश होती है या इंतजार होता है तो सिर्फ रोशनी का, जो राह दिखा सके और हमारे चिंताओं को सुकून में बदल सके।

अंधेरे, रोशनी, राह, जिंदगी जैसे शब्दों के अर्थ आज हम अच्छे से समझने लगे हैं, गहराई से महसूस करने लगे हैं। हमें पता भी है कि यह तो जिंदगी का हिस्सा है तो फिर क्यूँ हम मुश्किलें और दुख देख मायूस हो जाते हैं, कभी खुद को अकेला और टूटा हुआ देखकर तो कभी अपनों को परेशान देखकर , जवाब यह है कि भावों ( इमोशंस) को कंट्रोल करना किसी के लिए मुमकिन नहीं होता यह तो एक नदी या झरने के बहाव ( फ्लो ) की तरह है जो रोका नहीं जा सकता और ना रोकना चाहिए क्योंकि इससे आत्मा का शुद्धीकरण होता है पर सवाल यह है कि उस वक़्त हम खुद को कैसे सेल्फ-मोटीवेट करें?

अंधेरा किस पर नहीं छाता है? एक सूरज जो सकरात्मक ( पॉजिटिव ) एनर्जी ,लाइट और प्रेरणा का सबसे बड़ा सोर्स है पर जब ग्रहण उस पर भी पड़ता है, अंधेरा तब भी होता है तकलीफें उसे भी होती है पर उनसे निपटकर वो दोबारा चमक कर मुस्कुराता है,और जिंदगी कैसे जी जाती है यह हम सबको सिखाता है। तो सूरज की इस क्वालिटी को अगर हम खुद मे ले आये तो अपने साथ-साथ हम आसपास के लोगों की जिंदगी से भी अंधेरा मिटाने का जरिया बन सकेंगे।

 

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