रिप्रोडक्टिव हेल्थ के बारे में कुछ भी लिखने से पहले मैं आपको अपनी आंखों देखी एक घटना बता रही हूं-
करीब दो वर्ष पूर्व मैं अपनी किसी शारीरिक समस्या की वजह से बिहार की राजधानी पटना स्थित एक लेडी डॉक्टर के क्लिनिक पर गई। वह डॉक्टर साहिबा राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त गायनोकोलॉजिस्ट हैं, मेरे साथ ही उनके केबिन में कुछ महिलाएं और भी बैठी हुई थीं।
असिस्टेंट डॉक्टर सभी महिलाओं का एक-एक का चेकअप कर डॉक्टर साहिबा को बता रही थीं और वह उन्हें प्रेस्क्रिप्शन लिखकर दे रही थीं।इसी बीच जब एक महिला उनके सामने आकर बैठी तो उन्होंने पूछा, ”क्या परेशानी है?” महिला ने कहा- ”मैडम, चार महीने का गर्भ है एबॉर्शन करवाना चाहती हूं।”
डॉक्टर ने जब इसकी वजह पूछी तो पता चला कि उसकी ऑलरेडी दो बेटियां हैं, अब उसके पति और ससुराल वाले बेटी नहीं चाहते इसलिए वह अबॉर्ट करवाना चाहती है।
इतने में डॉक्टर साहिबा की एक असिस्टेंट ने उस महिला को शायद पहचान लिया और उसने महिला से पूछा- ”तुम पिछले साल भी आई थी ना?” यह सुनते ही महिला थोड़ा सकुचायी फिर आंखें नीची करके कहा, ”जी हां।”
यह जानकर हेड डॉक्टर हैरान हो गईं। उन्होंने पूछा, ”अब तक कितनी बार अबॉर्शन करवा चुकी हो तुम?” इस बात पर महिला की आंखें भर आईं।
तेरह साल में सात बार अबॉर्शन
उसने बताया कि उसकी शादी को तेरह साल हो गए हैं और तब से लेकर अब तक वह सात बार अबॉर्शन करवा चुकी हैं। यह सुनकर डॉक्टर सहित उस केबिन में बैठे हम सभी लोगों की आंखें फटी की फटी रह गईं। डॉक्टर से उस महिला के साथ आए उसके पति को फौरन केबिन में बुलाया और जम कर फटकार लगाई और महिला का अबॉर्शन करने से मना कर दिया।
इसके बावजूद उसका पति अपनी ज़िद पर अड़ा रहा और कहा, ”अगर आप नहीं करेंगी तो कहीं और से करवाना पड़ेगा।” यह कहकर वह अपनी पत्नी को साथ ले चलता बना।”
बस इसी से समझ लीजिए हमारे देश में महिलाओं के रिप्रोडक्टिव हेल्थ की स्थिति। ऐसा नहीं कि यह स्थिति केवल गरीब या पिछड़े समुदायों में ही है, यहां जिस घटना की चर्चा मैंने की है, उसमें पति और पत्नी दोनों पढ़े-लिखे थे। पति किसी प्राइवेट कंपनी में अच्छी पोस्ट पर कार्यरत था (डॉक्टर द्वारा पूछी गई जानकारी के अनुसार) फिर भी उसने अपनी पत्नी को महिला मानने के बजाय शायद बच्चे पैदा करने वाली मशीन मान रखा था।
तेज़ी से बढ़ रहे हैं देश में गर्भपात के मामले
हमारे देश में गर्भपात के मामलों में पिछले सालों में तेज़ी से इज़ाफ़ा हुआ है। 16 मई 2016 को टाइम्स ऑफ इंडिया में छपे आंकड़े के मुताबिक, साल 2015-16 में भारत में 34, 790 महिलाओं ने गर्भपात कराया जबकि साल 2014-2015 में गर्भपात के 13 प्रतशित कम यानि 30, 742 मामले सामने आए थे।
इनमें बड़ी संख्या वैसी महिलओं की होती है जो इंटरनेट आदि से पढ़कर खुद दवाएं लेती हैं, यानि गूगल वाली दाइ की सलाह लेती हैं, जो कि उनके शारीरिक स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक साबित हो रहा है। ऐसा अनुमान है कि पूरे विश्व में प्रति वर्ष लगभग 20 करोड़ महिलाएं गर्भधारण करती हैं। इनमें से लगभग एक तिहाई गर्भ अनैच्छिक होते हैं और लगभग हर पांचवें गर्भ का जबरन अबॉर्ट करवा दिया जाता है।
इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ‘दि गुटमाकर‘ और ‘इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पापुलेशन साइंसेज’ की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में अनचाहे गर्भ से छुटकारा पाने के लिए प्रतिवर्ष गर्भपात कराने वाली 1.50 करोड़ महिलाओं में से करीब 13 प्रतिशत यानी 20 लाख महिलाओं की मौत हो जाती है। रिपोर्ट में इसकी प्रमुख वजह गर्भ नियोजन के साधनों की कमी और इस बारे में जागरूकता का अभाव बताया गया है।
अबॉर्शन के साइड इफेक्ट्स
- पेट में दर्द की शिकायत, उबकाई आना, उल्टी होना, डायरिया, स्पॉटिंग या ब्लीडिंग
- गर्भपात के बाद महिला डिप्रेशन, मनोबल में कमी, सिर में दर्द, मूड स्विंग्स
- महिलाओं को ब्रेस्ट कैंसर होने की संभावना में बढ़ोतरी
- एक बार गर्भपात करवाने से सर्वाइकल कैंसर का रिस्क ढाइ गुना तक बढ़ जाता है, दो या उससे अधिक गर्भपात कराने पर यह खतरा चार गुना बढ़ जाता है।
- बार-बार गर्भपात करवाने पर विकलांग बच्चे के पैदा होने की संभावना बढ़ जाती है
- गर्भपात के समय इन्फेक्शन होने पर पीआइडी यानी पेल्विक इनफ्लेमेटरी डिजीज नामक जानलेवा बीमारी की संभावना बढ़ जाती है
- फेलोपियन ट्यूब के क्षतिग्रस्त या इंफेक्टेड होने की संभावना बढ़ जाती है, जिससे महिला का भविष्य में मां बनना मुश्किल हो जाता है
अबॉर्शन के लिए महिला की सहमति है ज़रूरी
सामान्य परिस्थिति में किसी महिला की सहमति के बिना उसका अबॉर्शन नहीं कराया जा सकता है। अबॉर्शन के लिए उक्त महिला की सहमति लेना अनिवार्य है। भारत में वर्ष 1971 में पारित मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट के अनुसार, निम्न परिस्थितियों में ही महिला के अबॉर्शन की इजाजत दी गई है-
- कानूनी तौर पर 20 हफ्ते से ज़्यादा के भ्रूण का गर्भपात करने की इजाज़त नहीं है
- अगर गर्भ के कारण महिला की जान खतरे में हो
- शारीरिक या मानिसक रूप से गर्भ में पल रहा बच्चा विकलांग हो या उसके विकलांगता की आशंका हो
- अगर महिला मानसिक या शारीरिक रूप से बच्चे को जन्म देने में सक्षम न हो
- अगर महिला के साथ रेप हुआ हो और वह गर्भवती हो गई हो
- महिला के साथ ऐसे रिश्तेदार ने संबंध बनाए हों, जो वर्जित संबंध में आते हों और इस वजह से महिला गर्भवती हो गई हो
- 18 वर्ष या उससे अधिक की महिलाओं से अबॉर्शन के लिए सहमति लेना अनिवार्य है
- लड़की के नाबालिग होने की स्थिति में माता-पिता से कानुनी तौर से सलाह-मशविरा किया जाना ज़रूरी है
इस कानून में डॉक्टरों तथा मेडिकल संस्थानों के लिए भी कुछ नियम निर्धारित हैं
- जिस संस्थान में गर्भपात किया जा रहा हो, वह एमटीपी एक्ट के तहत सीएमओ ऑफिस में रजिसटर्ड हो
- जो डॉक्टर अबॉर्शन कर रहा हो, वह एमटीपी एक्ट (मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी) के तहत डीओजी या एमडी हो और उसे सरकारी अस्पताल में कम-से-कम 24 गर्भपात करने का अनुभव प्राप्त हो
- 12 हफ्ते के अंदर के गर्भ को अबॉर्ट करवाने के लिए एक और इससे ऊपर के लिए दो डॉक्टरों की राय ज़रूरी है
- अबॉर्शन की पूरी प्रक्रिया गुप्त होती है, ज़रूरत पड़ने पर सिर्फ कोर्ट में ही डॉक्यूमेंट्स दिखाए जा सकते हैं
यह तो हुआ रिप्रोडक्टिव हेल्थ से जुड़ी तस्वीर का सिर्फ एक पहलू। इसके अलावा भारत में सेक्स एजुकेशन की स्थिति, लड़कियों की माहवारी के विषय में जागरूकता, गर्भ निरोध के तरीकों की जानकारी, महिला स्वास्थ की स्थिति तथा सबसे बढ़ कर इन सबके बारे में जानने-समझने की सामाजिक इच्छाशक्ति की स्थिति क्या है, अगर इन सबका आंकड़ा पेश किया जाए तो पता चलेगा कि हम आज भी अपने लक्ष्य से कितने दूर हैं।
गाँवों की तो बात ही छोड़ दीजिए, शहरों में भी अब तक वैसी लड़कियों, महिलाओं, पुरुषों या अभिभावकों की संख्या करोड़ो में हैं जो इस बारे में बात करने से कतराते हैं। ऐसे में महिला स्वास्थ्य की स्थिति में बदलाव करने की दिशा में सबसे पहले इन तमाम मुद्दों के बारे में लोगों को प्रोत्साहित करना ही बदलाव की दिशा में सबसे महत्वपूर्ण कदम होगा