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महिलाओं के जीवन पर पड़ने वाले कोविड-19 के प्रभाव

लॉक डाउन यानि कि कई लोगों के लिए घर पर आराम, मगर ऐसे में क्या हम सुनिश्चित कर रहे हैं कि हमारे घर की महिलाओं को भी आराम मिले?

पूरा विश्व इस समय एक दायरे में बंध गया है। हर जगह खालीपन और सूनापन हर एक जगह को घेरे हुए है।

लॉकडाउन का महिलाओं पर असर

घर में काम करने वाली आया या गृहणी और हम चर्चा कर सकते हैं, ऑफिस जाने वाली महिलाओं की भी। यह तीन वर्ग लिंग से और समानता से एक हैं, मगर इनके जीवन में बहुत अंतर है। कोई खाना पकाने के अलावा कुछ नहीं सीख पाई, कुछ ने घर को ही अपना संसार मान लिया और उनमें से कुछ ने जीवन को सुदृढ़ बनाने के लिए बाहर की दुनिया का रुख़ किया।

मौजूदा देश की स्तिथि में इन तीनों वर्ग की महिलाओं के सामने चुनौतियां हैं और समस्याएं भी। सरकार द्वारा लगाया गया देशव्यापी लॉक डाउन और उसकी गाइडलाइंस में हर तरह के करने और न करने के तथ्य हैं मगर कहीं भी घरेलू महिला या कामकाजी महिला के लिए एक कॉलम बनना तो ज़रूरी था, चाहे छोटा सा ही कोई नियम होता।

आज की चर्चा का विषय यही है कि इनकी जो आवाज़े हैं उनको कोई सुनेगा क्या? या हर बार, हर क्षेत्र में फिर से उनकी आवाज़ों को दबा दिया जाएगा? सोचने वाली बात है, विषय गम्भीर है और ग़ौर करने वाला भी। वैसे ही महिलाओं के वर्गों को कुचलने के लिए भारतीय समाज जिम्मेदार है।

इतिहास को पलट कर देख सकते हैं, सदियों से महिलाओं की दुर्दशा का इतिहास गवाह है। आज भी यही स्तिथि है, वर्तमान भारत में महिलाओं के साथ उत्पीड़न का मामला थमने का नाम नहीं लेता और उस पर नई मुसीबत का आना COVID-19 जिसने पूरे विश्व में मौत का तांडव मचा रखा है। इसी बीच ध्यान देने योग्य बात है, महिलाओं की क्या स्तिथि है?

तीन वर्गों में विभाजित महिलाएं

घरेलू आया/मेड- इस स्तिथि में सबसे दुःखद और पीड़ादायक स्तिथि घर की आया की है। वह गरीब है, लगभग असहाय है तभी तो आपके घर पर काम करने आ रही है अपनी जान को जोख़िम में डाल कर। उसका भी परिवार है, बच्चे हैं, पति है। मगर काम करवाने वाले कई मालिक उनकी समस्या की ओर ध्यान ही नहीं दे रहे।

उसको आया बनाने का श्रेय भी आपको जाता है, समाज को जाता है आज आपातकाल की स्तिथि में भी उसके साथ उत्पीड़न का मामला सामने आ रहा है। वह दासी नहीं जो स्वतंत्रता से पहले अंग्रेजो की ग़ुलामी किया करती थी। वह अपनी मेहनत से काम करती है और कमाती है। कुछ प्रमुख बिंदु हैं जिनका आजकल यह महिलायें सामना कर रहीं हैं जैसे :

काम से निकाल देना- आपको किसने सर्टिफिकेट दिया है या किसने हक़ दिया कि आप एक महामारी के कारण अपनी कामवाली को काम से निकाल रहे हैं? और कुछ दिन पहले आप उसी के हाथों का खाना भी खाते थे और घर के बर्तन और झाड़ू पोछा भी करवाते थे। अब क्या हुआ?

हम मानते हैं यह बहुत ही संवेदनशील स्तिथि है, मगर इसकी रोकथाम के लिए आप उससे, उसके काम बाद में भी करवा सकते हैं। आप ज़रा सोचिए ये 20 दिन वो क्या खाएगी और बच्चों को क्या खिलाएगी? क्या आप अपने घर की महिलाओं, जैसे पत्नी, मां, बहन या पुरूष को बाहर निकाल सकती हैं या सकते हैं? कभी नहीं।

एक बात शेयर करना चाहूंगा जो आज सुबह सुबह की है। मेरे घर के पड़ोस में ही एक सज्जन हैं। वे अक्सर सबकी मदद करते हैं उनके पास एक आज सुबह किसी मेड का फ़ोन आया और वह बोलीं,“ भाईसाहब, चावल या दाल मिल सकता है क्या? इस वक्त बिल्कुल भी पैसे नहीं हैं। मेरे हस्बैंड का ऑटो भी बंद करवा दिया सरकार ने, उसी से हम रोज़ खाने का इंतज़ाम करते थे। मैं पिछले पांच दिन से आपसे बात करना चाह रही थी मगर शर्म की वजह से कर नहीं पाई।”

उन सज्जन ने जो किया या नहीं मुझे इसका इल्म नहीं, मगर वह कितनी मजबूर होगी जो खाना मांगने पर विवश हुई। आप सब से यह बात साझा करने का उद्देश्य यही है कि आप भी आस पास ध्यान दें कि कहीं कोई भूखा तो नहीं सो रहा अपने घर में। उसकी बात का एक-एक शब्द बहुत दर्दनाक हैं, बस ज़रूरत है उसको महसूस करने की। बहरहाल बात करते हैं अन्य समस्या की।

घर में बंदी बनाकर रख लेने की स्थिति- मनुष्य के अंदर स्वार्थ का सागर इतना गहरा हो जाता है कि कभी-कभी के उसको मनुष्य कहना उचित नहीं लगता। शायद उनकी इंसानियत मर चुकी होती है। सुना है आजकल लोग अपने स्वार्थ के लिए काम वाली को क़ैद कर के रख रहे हैं। कुछ दिन तो आप उसकी जगह ख़ुद को रख कर देखिए। क्या आपको महसूस नहीं होगा कि आप कितना अन्याय करते आ रहे हैं और अब सारी हदें पार कर दीं?

उसका परिवार और उसके बच्चों का थोड़ा तो ख़्याल करना ज़रूरी है। लोग उनको बाहर नहीं जाने दे रहे और बोल रहे हैं कि यहीं रहकर कार्य करो वरना आप भी संक्रमित हो जाओगे। मुझे इस बात में कोई सकरात्मकता नहीं दिखी। सबका परिवार होता है और घर की जिम्मेदारियां भी। आप उसको भावनात्मक तौर पर तो प्रताड़ित कर रहे हैं साथ के साथ शारीरिक प्रताड़ना भी दे रहे हैं।

गृहणी/हाउस वाइफ- दूसरी तरफ बात आती है घर पर रहने वाली महिलाओं की। उनके लिए तो सब दिन बराबर। क्या वाकई में? या सब दिन बराबर नहीं? चलो, हम संडे की बात करते हैं। लगता नहीं आपको कि इस दिन गृहणियों पर कुछ ज़्यादा ही बोझ होता है। इधर से आवाज़ आएगी,“ आज ज़रा पकोड़े तल लो।” उधर से आवाज़ आएगी,“ मम्मी आज पास्ता बना लो प्लीज।”

औरत नहीं रोबोट- रही सही कसर घर की बुज़ुर्ग पूरी कर देते हैं,“ बेटी ज़रा हल्की सी खिचड़ी बना देना।” यह बहु, मां या पत्नी नहीं रोबोट है, हैं ना? जिसकी न संवेदनाएं हैं, न शरीर और एक क्षमता है काम करने की? सबके सब को अपने मन की बात मनवानी है।

सोचिए अगर लॉक डाउन हो और पूरे 21-22 दिन यही स्तिथि हो? फिर क्या हालत होगी? ऐसे में तो पति भी घर पर और बच्चे भी घर पर। ऐसे में अनेक उपाय हैं जिनके सहारे हम घर के माहौल में समानता का बीज बो सकते हैं और महिलाओं की मदद भी हो सकती है। उनको भी कुछ दिन आराम के मिल जाएंगे।

पुरुषों की भी ज़िम्मेदारी- क्या आप थोड़ा समय निकाल कर पत्नी और बच्चों के साथ मूवी देख सकते हैं और लूडो खेल सकते हैं? क्या ऐसा हो सकता है कि आप लोग सब मिल कर हफ़्ते में कुछ दिन खाना खुद बनाएं और अपनी पत्नी को आराम करने के लिए कहें। क्यों ना कपड़े धोने या घर की साफ सफाई में हाथ बटाएं जो हम साल में शायद सिर्फ एक बार करते हैं, वो भी शायद सिर्फ त्यौहार के दिनों में।

ऐसे में घर का माहौल विषैला नहीं होगा और सारा का सारा दारोमदार पत्नी ही पर नहीं होगा। पति भी थोड़ा सा वह जीवन जी कर तो देखे जो उसकी पत्नी जीती आ रही है।

कामकाजी महिलाओं की बात

यहां भी बड़ी समस्या आती है, अगर महिला घर पर है तो उसको काम ज़रूर करना पड़ेगा। ऑफिस से छुट्टी नहीं मिली, बस जगह बदली है। मगर अक्सर पति सोचते हैं कि कोई नहीं मेड छुट्टी पर है तो क्या पत्नी तो भी तो घर पर है, वो सब संभाल लेगी। बड़ी ही अजीब बात है।

घर पर तो आप भी हैं ना? आप मेड की छुट्टी अपने आधार पर भी कर सकते हैं ना? आप घर का सारा काम संभाल सकते हैं ना? महिला को ही घर के काम के लिए ही क्यों नियुक्त किया जाता है। अगर उनको घर से काम करने की अनुमति मिली है कि वह अपना ऑफिस का काम घर से करेंगी तो उनको कुछ तो सुकून के पल भी मिलने चाहियें।

यह उनके लिए भी राहत भरा समय रह सकता है। ऑफिस जाते समय उनको कितनी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। लॉक डाउन की स्तिथि में उनको भी आपके जितना आराम करने का हक़ है। उनको यक़ीन दिलवाएं कि बहुत समय बाद आप दोनों एक साथ घर पर हैं। यह सौभाग्य की बात है। अगर वह घर के काम करती हैं तो उनका मनोबल बढ़ाएं और उनका हाथ भी बटाएं।

लॉकडाउन के खट्टे-मीठे परिणाम

जीवन में ऐसे पल बहुत कम आते हैं जब हम सब एक साथ हो, तकनीकी दुनिया में सब फ़ोन में या अपने कार्य में लगे होते हैं। इंसान-इंसान को भूलता जा रहा है। लॉक डाउन के खट्टे मीठे परिणाम हैं। बशर्ते आप जीना चाहते हों, आप में उमंग हो।

इस लेख के द्वारा मैंने कुछ समस्याओं से रूबरू करवाया है और कुछ असहाय और पिछड़ी हुई महिलाओं की आवाज़ों को काग़ज़ पर उतार कर आप तक पहुंचाने की एक कोशिश की है।

मैंने कुछ उपायों का नमूना पेश किया है, जो सार्थक तो है साथ के साथ अभी आपातकाल की स्तिथि में उपयोगी भी। अंत में यही कहूंगा, आप लोग घर पर रहकर मज़े करें इस बीमारी से लड़िये भी ज़रूर, मगर ऐसे कुछ लोगों को भूल मत जाईएगा जिनको हमारी ज़रूरत है।

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