प्रकृति का पवित्र फूल- महुआ का फूल
धरती का प्रत्यक्ष कल्प वृक्ष- महुआ का वृक्ष
इस धरती का अमृत- महुआ का फूल।
गेंदा, गुलाब, चमेली सब बहुत प्रिय हैं लेकिन छोटानागपुर क्षेत्र के आदिवासियों में महुआ फूल का खास महत्व है। छत्तीसगढ़ के गरियाबन्द ज़िले के गोंड आदिवासी समुदाय के सदस्य, दिलेश्वर नेताम बताते हैं कि वो बाकी अन्य फूलों के मुकाबले महुआ फूल को इतना खास क्यों मानते हैं?
मंदिर को भगवान का घर माना जाता है और मूर्तियों को देवी देवताओं का रूप। मंदिरों के देवी-देवताओं में भक्तों के द्वारा प्रतिदिन नाना प्रकार के खुशबूदार फूल चढ़ाए जाते हैं। लेकिन चार घंटे के बाद उस भगवान को चढ़ाया हुआ फूल मुरझा जाता है। आठ घंटे बाद फूल सड़ जाते हैं। बारह घंटे के बाद भगवान को चढ़ाया हुआ खुशबूदार फूल बदबू देने लगता है।
मंदिर के भगवान के दर्शन मात्र से ये पापी शरीर पवित्र हो जाता है। विचारणीय धारणा यह है कि उस भगवान को चढ़ाया हुआ फूल सड़कर बदबू नहीं देना चाहिए, वरना ये पापी शरीर का सबूत माना जाता। बल्कि पवित्र होकर इन फूलों से दुगनी ख़ुशबू महकनी चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं होता, भगवान को चढ़ाया हुआ फूल सड़कर बदबू देता है, तो इंसान कैसे पवित्र हो सकता है? इसी बात को विचार करना है!
पुरखों के ज़माने से देवताओं को महुआ का फूल चढ़ाया जाता है
आदिवासियों में पुरखों के ज़माने से देवताओं को महुआ फूल चढ़ाया जाता है। आप सोचेंगे, भला ऐसा क्यों? महुआ में ऐसा क्या खास राज है? महुआ का फूल पेड़ से एक-एक कर बूँदों के समान टपकता है। हम उसे एक-एक कर बीनते (उठाते) हैं, सुखाते हैं और सीलबंद (एयर टाइट) करके सुरक्षित रखते हैं। आप इसे एक साल, दो साल, यहां तक कि बीस, पचास, सौ साल और उससे ऊपर भी रख सकते हैं। बाकी फूलों की तरह ये खराब नहीं होता।
सूखे हुए महुआ के फूल को अगर आप निकालकर पानी में भिगोएँगे, तो उसकी ताज़गी, रंग, रूप, ख़ुशबू और स्वाद ज्यों का त्यों रहता है। हमारे समुदाय का मानना है की कुदरत ने इस धरती पर महुआ फूल के सिवाय कहीं ऐसा फूल नहीं बनाया है जो कई दिन, माह और साल तक तरो-ताज़ा रहे। इसीलिए गोंड़ अपने देवता पर महुआ का फूल चढ़ाते हैं।
आदिवासी इसे आंगादेव को भी चढ़ाते हैं। ऐसी मान्यता है कि जब देव को महुआ की दारू पिलाई जाती है, तब एक बूँद भी ज़मीन पर नहीं गिरती!
महुआ के फायदे
देवी देवताओं को चढ़ाने के अलावा भी महुआ फूल के खास गुण हैं। इसे आहार के रूप में ग्रहण करने से लेकर मवेशियों को भी दिया जा सकता है।
महुआ का फूल स्वास्थ्य वर्धक, बल वर्धक, पाचक और उम्र बढाने वाला एक कंप्लीट टॉनिक माना जाता है। महुआ के फूल स्वास्थ्य वर्धक पौष्टिक आहार है। गोंड आदिवासी महुआ के फूल का पकवान खाते हैं। इससे खून साफ रहता है, पाचन सम्बन्धी कोई बीमारी नहीं होती और पाचन अंग स्वस्थ रहता है।
महुआ के फूल का लाटा (लड्डू) खाने से दांत मजबूत रहता है। अकाल के समय जब आदिवासी आसानी से अनाज प्राप्त नहीं कर सकते थे, तब महुआ के फूल की रोटी और लाटा खाकर अपना जीवन बचाते थे।
महुआ के फल (गुल्ली) की फल्ली से तेल निकालकर घर में उपयोग किया जाता है। महुआ का वैज्ञानिक नाम Madhuca Longifolia है जिसे कई शोधकर्ताओं ने मेडिकल उपयोगिता के लिए लाभकारी पाया है।
आदिवासी किसान इसे अपने मवेशियों को भी देते हैं। दो-चार मुट्ठी महुआ के फूल को भूसे के साथ हर रोज़ देने से कमाऊ जानवर बैल और भैंस कमजोर नहीं होते।
आदिवासी महुआ से चोंप (गोंद) भी निकालते हैं जिससे घर में अन्न को नुकसान करने वाले चूहा को फंसाते हैं। इसे चिड़िया फँसाने के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है। महुआ की लकड़ी का कोयले में बहुत ताप होता है, इसलिए लोहा इस आग में जल्दी गलता है। महुआ के कोयले में किसान अपने लोहे के औजार जैसे हंसिया, कुदाली वगैरह बनाते हैं।
महुआ का पेड़ कुदरत का अनमोल तोहफ़ा है। वर्षों तक अपनी महक और स्वाद को बनाए रखने की इसकी अनोखी खूबी है। भोजन से लेकर इसे दवाई, ईंधन और परम्परों में भी उपयोग किया जाता है। ऐसे कहा जा सकता है कि महुआ के फूल इस धरती के अमृत और महुआ के पेड़ इस धरती का कल्पवृक्ष है।
नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें प्रयोग समाजसेवी संस्था और Misereor का सहयोग है।
लेखक के बारे में- गजेंद्र नेताम छत्तीसगढ़ के निवासी है। वह अभी BSc की पढ़ाई कर रहे है और आगे जाके डॉक्टर बनना चाहते है और समाज सेवा करना चाहते है। उनको टेक्नॉलजी की जानकारी रखने का शौक़ है और फ़ोटो एडिटिंग में भी रुचि रखते है।