Site icon Youth Ki Awaaz

श्री सत्यार्थी द्वारा बाल मजदूरों के लिए किए गए योगदान का ज़िक्र किए बिना अधूरा है बाल दिवस

सत्यार्थी जी एक कार्यक्रम में बच्चों के साथ। फोटो; साभार कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन फ़ाउंडेशन

शिव कुमार शर्मा  

बाल दिवस आते ही सबके जेहन में एक ही नाम आता है पंडित जवाहर लाल नेहरू। नेहरू जी के जन्मदिवस 14 नवंबर को बाल दिवस मनाया जाता है। मैं छोटा था तो अपने पाठ्यपुस्‍तक में पढ़ा था कि नेहरू जी जब प्रधान मंत्री थे तो उन्होने जापानी बच्चों के लिए एक हाथी जापान भिजवाया था। यह पाठ पढ़कर मेरे बाल मस्तिष्क में नेहरू जी की ऐसी छवि बन गई कि लगा कि दुनिया में ऐसा दूसरा व्यक्ति नहीं है, जो बच्चों को नेहरू जी से अधिक प्यार करता हो।

नेहरू जी का यह दृढ़ विश्वास था कि बच्चे देश का भविष्य हैं, इसीलिए उनकी चिंता के केंद्र में बच्‍चे रहते थे। नेहरू जी बच्‍चों के लिए खूब सपने देखते थे और जहां तक संभव हुआ उसको कार्यरूप में परिणत भी किया। लेकिन वह एक ऐसा युग भी था जब बाल मजदूरी कोई मुद्दा नहीं बना था और उसको अपराध की श्रेणी में शामिल नहीं किया गया था। बाल मजदूरी यदि भारत और उसके बाहर मुद्दा बना और उस पर विचार-विमर्श शुरू हुआ तो उसका सबसे बड़ा श्रेय श्री कैलाश सत्‍यार्थी को जाता है। श्री सत्‍यार्थी ने इस महती जिम्‍मेदारी को बाखूबी अंजाम दिया। इसीलिए इस अवसर पर अगर श्री सत्‍यार्थी का ससम्‍मान उल्‍लेख नहीं किया जाए, तो बाल दिवस की प्रासंगिकता और सार्थकता अधूरी ही मानी जाएगी। भारत में पहली बार अस्सी के दशक में श्री सत्यार्थी ने इस बात को मजबूती के साथ स्‍थापित किया कि बच्चों से काम करवाना मानवीय मूल्यों के विरुद्ध है और यह एक अपराध है।

श्री सत्यार्थी चालीस सालों से बाल मज़दूरों की समस्याओं के समाधान को अथक संघर्ष कर रहे हैं। मध्यप्रदेश के विदिशा में 1954 में जन्‍में श्री सत्यार्थी पेशे से इलैक्ट्रिकल इंजीनियर रहे हैं। लेकिन प्रफेसरी की अपनी जमी-जमाई नौकरी छोडकर बाल मजदूरों की जिंदगी संवारने हेतु 1980 में सपरिवार दिल्ली आ गए। उस समय उनके परिवार में पत्‍नी श्रीमती सुमेधा कैलाश के अलावा एक दो साल का बेटा भुवन था। बाद में उन्‍हें एक बेटी भी हुई जिसका नाम अस्मिता है।

सत्यार्थी जी आइवरी कोस्ट (अफ्रीका) के बच्चों के साथ। फोटो; साभार कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फ़ाउंडेशन

श्री सत्यार्थी ने बाल मज़दूरों को मुक्त कराने का अभियान जब प्रारम्भ किया उस समय बाल मज़दूरी के विरुद्ध कोई सशक्‍त कानून नहीं था। 1948 का कारख़ाना अधिनियम व 1952 का खान अधिनियम ही अस्तित्व में थे जो नाकाफी थे। बॉडेड लेबर सिस्‍टम (एबोलेशन 1976) भी सिर्फ कहने के लिए था और बाल मजदूरी पर अंकुश लगाने के दृष्टिकोण से अक्षम था। श्री सत्यार्थी ने जब बाल मजदूरों की मुक्ति का अभियान आरंभ किया उस समय फरीदाबाद की पत्थर खदानों में परिवार के परिवार बंधुआ मजदूर थे। इन परिवारों के बच्चों की स्थिति बहुत ही दयनीय थी। इस मुक्ति अभियान में श्री सत्यार्थी के दो साथी भी शहीद हो गए।

उसी समय श्री सत्‍यार्थी को पता चला कि उत्तर प्रदेश के बनारस, भदोही और मिर्ज़ापुर के कालीन उद्योग में हजारों की संख्या में बाल मजदूर काम करते हैं। श्री सत्यार्थी अपनी पत्‍नी सुमेधा जी व अन्य साथियों के साथ उपरोक्त स्थानों पर जाकर महीनों रहे और बाल मजदूरों को मुक्त कराने का सिलसिला शुरू किया। इन अभियानों में हजारों की संख्या में बाल मजदूर मुक्त कराए गए। इस दौरान श्री सत्यार्थी पर जानलेवा हमले भी हुए। इसके बावजूद उन्‍होंने इन मुक्ति-अभियानों को और अधिक तेज़ कर दिया। बाल मजदूरी के खिलाफ कोई सक्षम कानून नहीं होने के कारण अक्सर श्री सत्यार्थी को घंटों रिपोर्ट लिखवाने को थाने में बैठना पड़ता था और अपराधी छूट जाते थे। श्री सत्यार्थी ने बाल और बंधुआ मजदूरों के मुक्ति अभियानों को देशभर में चलाया तथा हजारों बाल मजदूरों को मुक्त कराया गया। अब तक श्री सत्यार्थी के नेतृत्‍व में बचपन बचाओ आंदोलन (बीबीए) ने 92,000 से अधिक बाल मजदूरों को मुक्‍त कराकर उनका पुनर्वास कराने में सफलता प्राप्‍त की है।

ज़ातरी रिफ़्यूजी कैंप में, सत्यार्थी जी बच्चों के साथ। फोटो; साभार कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फ़ाउंडेशन

बाल अधिकारों के लिए श्री सत्यार्थी ने निम्नलिखित यात्राओं का भी आयोजन किया-

 

  1. पहली, नगर-उटारी यात्रा, 2. दूसरी, 1994 में निकाली गई,जो कन्याकुमारी से आरंभ होकर दिल्ली में महात्मा गांधी की समाधि राजघाट पर समाप्त हुई, 3. तीसरी, ग्लोबल मार्च अगेंस्‍ट चाइल्ड लेबर के नाम से जानी जाती है, जो 1998  में आयोजित की गई थी, 4.चौथी, शिक्षा यात्रा 2001, 5. पांचवीं, साउथ एशियन मार्च अगेंस्‍ट चाइल्ड ट्रैफिकिंग 2007, 6. छठी, नेपाल यात्रा 2009, 7. सातवीं, असम चाइल्ड लेबर एंड ट्रैफ़िकिंग मार्च 2012, 8. आठवीं, भारत यात्रा 2017।

श्री सत्यार्थी के प्रयासों से ‘द चाइल्ड एंड ऐडोलेसेंट लेबर (प्रोहिबिशन एंड रेग्युलेशन) एक्ट 1986’ पारित हुआ। कुछ साल पहले पास हुए बहुचर्चित कानून-पॉक्‍सो एक्ट की संरचना में भी परोक्ष रूप से श्री सत्यार्थी के संगठन का योगदान है।

श्री सत्यार्थी ने लॉरियेट्स एंड लीडर्स फॉर चिल्ड्रेन समिट का भी आयोजन किया है। इस अभियान का आयोजन दिसंबर 2016 में भारत की राजधानी नई दिल्ली में हुआ। समारोह की मेजबानी भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी ने राष्ट्रपति भवन में की। लॉरियेट्स एंड लीडर्स फॉर चिल्ड्रेन समिट में शामिल सभी विश्वनेताओं ने दुनियाभर के शोषित बच्चों के लिए एक कानून बनाने के लिए आवाज़ उठाई। अभी तक तीन लॉरियेट्स एंड लीडर्स फॉर चिल्ड्रेन समिट का आयोजन हो चुका है। इसी क्रम में श्री सत्यार्थी ने एक और अभियान की शुरुआत की है जिसका नाम ‘100 मिलियन फॉर 100 मिलियन’ है। इसके तहत 100 मिलियन नौजवान, 100 मिलियन शोषित बच्चों के लिए काम करेंगे।

वर्ष 1999 में आईएलओ कनवेंशन-182 पास कराना श्री सत्यार्थी की सबसे बड़ी सफलता है। इस कन्‍वेंशन को पास कराने हेतु श्री सत्यार्थी ने भगीरथ प्रयास किए। जिसकी एक अलग कहानी है। 17 जून 1999 को आईएलओ ने बाल श्रम और बाल दासता के खिलाफ सर्वसम्मति से कनवेंशन-182 पारित किया। इस अंतर्राष्‍ट्रीय संधि पर भारत सहित दुनिया के 187 देशों ने हस्ताक्षर किए हैं। इस संदर्भ में संयुक्त राष्ट्र संघ ने श्री सत्यार्थी की दूसरी मांग भी मान ली और 12 जून को विश्‍व  बाल श्रम विरोधी दिवस के रूप में मनाने की घोषणा कर दी है

सत्यार्थी जी मुक्ति आश्रम के एक कार्यक्रम में बच्चों के साथ। फोटो; साभार कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन फ़ाउंडेशन

कोविड-19 के दौरान भी श्री सत्यार्थी ने नोबेल लॉरियेट्स एंड लीडर्स को एक मंच प्रदान किया है। इन सभी ने कोविड से प्रभावित दुनियाभर में हाशिए पर पड़े बच्‍चों के लिए फेयर शेयर फॉर चिल्‍ड्रेन (रोटी, खेल, पढ़ाई, प्‍यार के अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए) अभियान को चलाया है। इन सभी नेताओं ने विश्‍व की अमीर सरकारों से 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की मांग की है।

श्री सत्यार्थी ने बाल मजदूरों की समस्याओं के समाधान हेतु राष्‍ट्रीय  और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अनेक कार्य किए हैं। उन कार्यों को बाल दिवस के अवसर पर अनदेखा नहीं किया जा सकता है। इसलिए मेरा मानना है कि श्री सत्यार्थी के कार्यों का जिक्र किए बिना बाल दिवस अधूरा है।

(लेखक ;प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक पार्टी के अध्यक्ष हैं और उनके ये निजी विचार हैं)                  

 

Exit mobile version