असफलता के साथ कई बार आत्मविश्वास भी ढह जाता है। यदि असफलता मिलने पर यह कह दिया जाए कि छोड़ो आपसे अब यह काम नहीं होगा, तब कोई भी हतोत्साहित हो सकता है। लेकिन वहीं यदि यह कहकर आपके मनोबल को बढ़ा दिया जाए कि कोई बात नहीं, दोबारा कोशिश करो, तो तस्वीर बदल जाती है। आप कामयाब होने की भरपूर कोशिश करने लगते हैं। उसमें भी अगर नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित श्री कैलाश सत्यार्थी जैसी महान शख्सियत आपके मनोबल बढ़ाने की बात कहे तब कोई वजह नहीं रह जाती कि आप जीत हासिल न कर पाएं।
पिछले साल यानी 2019 में श्री सत्यार्थी अपने कार्यालय सहयोगियों के साथ एक ट्रिप पर राजस्थान के पुष्कर पहुंचे थे। पुष्कर अरावली पर्वत श्रेणियों की घाटी में स्थित होने के कारण दर्शनीय है और यह एक प्रसिद्ध तीर्थस्थल भी है। पुष्कर में काम खत्म होने पर शाम के समय श्री सत्यार्थी उस स्थान को देखने निकल पड़े, जहां से सूर्यास्त का नज़ारा देखते ही बनता है। श्री सत्यार्थी ने वहां पहुंचकर प्रकृति के उस अद्भुत और अनुपम सौंदर्य का आनंद लिया और खुद उसे अपने कैमरे में कैद भी किया। कम लोग जानते हैं कि वे एक अच्छे फोटोग्राफर भी हैं।
जब श्री सत्यार्थी की इजाज़त पर चलती कार की हुई टक्कर
श्री सत्यार्थी की उस ट्रिप में तीन गाड़ियों के अलावा कुछ 7-8 सहयोगी भी साथ थे। जब सभी लोग अपनी-अपनी गाड़ियों से वापस रिज़ॉर्ट आने को तैयार हुए तो उनकी एक सहयोगी ने ड्राइवर से आग्रह किया, “यहां से रिज़ॉर्ट तक गाड़ी मैं चलाकर ले जाऊंगी।”
ड्राइवर ने पहले तो विनम्रतापूर्वक मना कर दिया, क्योंकि गाड़ी संगठन की थी। फिर ड्राइवर ने उस सहयोगी से कहा, “आप एक बार भाईसाहब (सत्यार्थी जी को संगठन के लोग इसी नाम से पुकारते हैं) से पूछ लीजिए, अगर वे कह देंगे, तब मैं आपको गाड़ी सौंप दूंगा।”
उसी दौरान श्री सत्यार्थी को किसी सहयोगी ने यह बात बता दी। श्री सत्यार्थी ने फौरन कहा, “हां बिलकुल इसमें हर्ज़ क्या है? वे बड़ी खुशी के साथ गाड़ी चलाएं।”
उन्होंने ड्राइवर से अपनी सहयोगी को गाड़ी देने को कह दिया और ड्राइवर ने उस सहयोगी को गाड़ी सौंप दी। श्री सत्यार्थी की गाड़ी आगे-आगे चल रही थी और उसके पीछे उस सहयोगी की गाड़ी। सहयोगी की गाड़ी की पिछली सीट पर कार्यालय के कुछ अन्य कर्मचारी भी बैठे थे।
सहयोगी बड़ी खूबी से गाड़ी ड्राइव कर रही थीं लेकिन तभी अचानक झाड़ियों से एक बछड़ा सड़क पर आ गया और गाड़ी से टकरा कर गिर गया और अगले ही पल वह आश्चर्यजनक ढंग से उठकर जंगल की तरफ भाग गया। टक्कर लगते ही सभी लोग बछड़ा और गाड़ी का जायज़ा लेने नीचे उतर आए । मगर बछड़ा तो पहले ही उठकर कहीं झाड़ियों में ओझल हो गया था और गाड़ी के अगले हिस्से का कुछ नुकसान भी।
इस अप्रत्याशित घटना से सहयोगी घबरा गईं और वे नर्वस होकर रोने लगीं। रोते हुए सहयोगी ने कहा, “भाईसाहब ने मुझ पर विश्वास किया लेकिन मैं उनके विश्वास पर खरी नहीं उतर सकी। अब वे मेरे बारे में क्या सोचेंगे? अब मैं कैसे उनका सामना कर पाऊंगी?”
खैर, इस घटना के बाद हम सभी लोग रिज़ॉर्ट आ गए और डिनर की टेबल पर बैठ गए। श्री सत्यार्थी को तब तक इस घटना की जानकारी नहीं मिली थी, क्योंकि उनकी गाड़ी आगे चल रही थी और वे रिज़ॉर्ट पहले पहुंच चुके थे।
डिनर के समय जैसे ही सहयोगी ने श्री सत्यार्थी को देखा, वह डरी-सहमीं रोने लगीं। श्री सत्यार्थी ने उनसे पूछा, “क्या हुआ?” तब अन्य कर्मचारियों ने घटना का हाल विस्तार से उन्हें बताया। श्री सत्यार्थी थोड़ी देर चुप रहे। फिर अपने चिर-परिचित अंदाज़ में मुस्कराते हुए एक शेर पढ़ा
‘‘गिरते हैं शह-सवार ही मैदान-ऐ-जंग में
वो तिफ्ल क्या गिरेगा, जो घुटनों के बल चले।’’
शेर पढ़कर उन्होंने शांत भाव से कहा, ‘‘चलो कोई बात नहीं! आओ खाना खाओ।’’
फिर हौसला बढ़ाने को कहा हम ड्राईविंग पर चलेंगे
श्री सत्यार्थी ने सहयोगी की मनोदशा से भांप लिया था कि उनका मनोबल बहुत गिर गया है। उनके मन में ड्राइविंग के प्रति डर बैठ गया है और अगर ये डर अभी नहीं निकाला गया तो भविष्य में गाड़ी चलाने में उन्हें बहुत परेशानी होगी। श्री सत्यार्थी ने उस सहयोगी को शांत करते हुए कहा “आप जल्दी से खाना खा लें,फिर हम ड्राइविंग के लिए चलेंगे।”
सहयोगी ने कहा, ‘‘नहीं भाईसाहब, मुझसे अब गाड़ी नहीं चल पाएगी।’’
श्री सत्यार्थी ने सहयोगी के सिर पर स्नेहपूर्वक हाथ फेरते हुए कहा कि “ड्राइविंग पर केवल हम और आप चलेंगे, साथ में कोई और नहीं होगा।”
श्री सत्यार्थी ने ड्राइवर सीट का दरवाजा खोलते हुए सहयोगी से कहा कि चलो अब गाड़ी चलाओ। सहयोगी के पास गाड़ी चलाने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था। श्री सत्यार्थी आगे बगल वाली सीट पर बैठ गए थे। सहयोगी संकोच करते हुए ड्राइविंग सीट पर बैठ गईं और गाड़ी स्टार्ट करके चलाने लगीं। अब सहयोगी के दिल में बैठा डर धीरे-धीरे बाहर निकल रहा था। श्री सत्यार्थी साथ वाली सीट पर बैठकर सहयोगी का हौसला बढ़ाते जा रहे थे-
‘‘बहुत खूब! आप तो बहुत ही अच्छी ड्राइविंग कर रही हो। कितने सलीके से तो गाड़ी चलाती हैं आप।’’ इस तरह से सहयोगी के मन में बैठा डर निकल चुका था। उन्होंने श्री सत्यार्थी को बैठाकर लगभग दस किलोमीटर तक सफलतापूर्वक गाड़ी चलाई फिर वापस रिज़ॉर्ट में आ गईं। वे अब बहुत खुश थीं।
इस घटना के बाद किसी पेशेवर ड्राइवर की तरह ही वह गाड़ी चलातीं नजर आईं और उनके मन से सारा डर जाता रहा। अब उन्होंने अपने लिए नई गाड़ी भी खरीद ली है और समय-समय पर लंबी यात्राओं पर भी निकल जाती हैं। श्री सत्यार्थी एक महान शख्सियत हैं। वो अपने सहयोगियों और साथियों के साथ गहरा भावनात्मक संबंध रखते हैं और उन्हें आगे बढ़ने और चुनौती स्वीकार करने के लिए प्रेरित करते रहते हैं।
(लेखक सामाजिक कार्यकर्ता और प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक पार्टी के अध्यक्ष हैं)