हर मां बाप का सपना होता है कि उनके बच्चे उनका नाम रोशन करें… अपने पैरों पर खड़े हों… यही सपना उन्नाव की रहने वाली सुधा शुक्ला का भी था… सुधा शुक्ला जी उन्नाव के लिए कोई अनजान नाम नहीं हैं… बल्कि एक ऐसी शिक्षिका हैं जिन्होंने अपनी लगन, मेहनत और कर्तव्यनिष्ठा के लिए राष्ट्रपति द्वारा सम्मान प्राप्त किया… उन्नाव की ऐसी पहली महिला शिक्षिका है बेसिक से जिन को राष्ट्रपति पुरस्कार मिला,
इन्हीं की बड़ी बेटी स्नेहिल मेडिकल में कुछ करने का सपना देख रही थीं… लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था… स्नेहिल भी अपनी मां की तरह शिक्षा जगत से जुड़ गईं… सोहरामऊ इंग्लिश मीडियम स्कूल से जुड़ीं… यहां हेड टीचर के तौर पर थीं… स्नेहिल ने संकल्प लिया कि ग्रामीण अंचल के बच्चों के लिए कुछ बेहतर करेंगी… और सरकारी स्कूलों में कुछ नहीं होता इस भ्रम को तोड़ देंगी… स्नेहिल ने सबसे पहले बच्चों के ऊपर काम शुरू किया.. बच्चों के पैरेंट्स से मुलाकात की… उन्हें पढ़ाई का महत्व समझाया… बच्चों के उठने का तरीका, बैठने का तरीका, स्कूल में बात करने का तरीका… ड्रेस पहनने का तरीका… खाने पीने का तरीका… लोगों से मिलने का तरीका इन सब पर स्नेहिल ने काम किया… बच्चों को प्रोत्साहित करने के लिए अलग अलग प्रतियोगिताओं का आयोजन किया… सुबह जल्दी स्कूल आना… शाम को देर तक रुकना… स्कूल का माहौल बच्चों के अनुकूल बनाया… स्कूलों में कई काम ऐसे थे जिनको अपनी आर्थिक व्यवस्थाओं से किया…. और इस काम को जुनून की तरह किया… उन्नाव से लेकर लखनऊ तक इस स्कूल के बच्चे धमाल मचा रहे थे… और नाम ऊंचा कर रहे थे… इन सब पर जिला प्रशासन के साथ साथ सरकार की भी नजर पड़ी… और स्नेहिल पाण्डेय की मेहनत को कई बार सम्मान मिला… लेकिन कीर्तिमान रचा स्नेहिल पाण्डेय अभी हाल ही में… जब स्नेहिल पाण्डेय को राष्ट्रपति पुरस्कार के लिए चुना गया… अद्भुत संयोग मां और बेटी दोनों ने अपनी प्रतिभा के दम पर राष्ट्रपति से सम्मान हासिल किया…. संभवत भारत की पहली ऐसी फैमिली है जिसमें मां बेटी दोनों को राष्ट्रपति पुरस्कार मिला.. आज हर कोई इन मां बेटी को प्रणाम कर रहा है… सम्मान कर रहा है… अभी कई ऐसे सम्मान स्नेहिल का इंतजार कर रहे हैं… स्नेहिल को उत्तर प्रदेश के सबसे यंगेस्ट वूमेन जिसको कि मिशन शक्ति के सरकारी बैनर में भी मुख्यमंत्री जी की जो योजना चल रही उसमें भी स्थान मिला है.. स्नेहिल लगातार दो बार उत्तर प्रदेश सरकार से उत्कृष्ट विद्यालय पुरस्कार भी सोहरामऊ विद्यालय को ही दिलाने में में सफल हुई अभी तक की शैक्षिक 10 वर्षों की यात्रा है..
स्नेहिल का मकसद राष्ट्रपति पुरस्कार पाना नहीं था उन्होंने अपनी मां को राष्ट्रपति पुरस्कार पाते देखा और इसकी कठिनाई को समझा उन्होंने सिर्फ अपने प्रयास जारी की और पहली बार ही राष्ट्रपति पुरस्कार के लिए अप्लाई किया था यह जानने के लिए कि इसके ऑनलाइन फॉर्मेट की क्या फॉर्मेलिटी है और जिस समय अप्लाई किया उसी ईयर उनका हो भी गया यह उनके लिए बहुत ही सरप्राइजिंग था..
यहां एक बात और… स्नेहिल पांडे की परवरिश और सोचने का अंदाज जरा मॉडर्न है तो उन्होंने अपने आकर बच्चों को परंपराओं के साथ-साथ मॉडर्न टीचिंग में एडवांस किया है बच्चों को देखकर नहीं लगता है कि प्राथमिक के बच्चे हैं बोलने चलने और हाव-भाव के तरीके से उन्होंने उनको आज के जमाने के हिसाब से अपडेट किया हुआ है और अपने वेतन से साइकिल देने की प्रशंसा तो दिल्ली मंत्रालय ने भी की और मानव संसाधन विकास मंत्रालय की जो एक टीम आई थी उसने जो डॉक्यूमेंटरी बनाई है उसमें आप देख सकते हैं
अशेष शुभकामनाएं