Site icon Youth Ki Awaaz

देह व्यपार में पुरुषों की भगीदारी की कलई खोलती फिल्म ‘पिंकी मेमसाब’

इस पुरुष प्रधान समाज में एक निर्धन, असहाय और अनपढ़ स्त्री का ईमानदारी से दो वक्त कि रोटी जुटाना भी वास्तव में एक चुनौती है। हाल ही में मैंने नेटफ्लिक्स पर एक फिल्म देखी, जिसका नाम है ‘पिंकी मेमसाब’। इस फिल्म को देखकर औरत की व्यथा पर दिल रो उठा। एक पाकिस्तानी औरत अपने और अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए पाकिस्तान से दुबई आती है।

आने के बाद एक दंपत्ति के यहां एक मेड की नौकरी पकड़ लेती है और पूरे उत्साह के साथ बिना चेहरे पर शिकन लिए अपने मालिक-मालकिन की सुविधा अनुसार सारे काम करती है।

मुश्किलों का पहाड़ और एक अकेली औरत

एक औरत, जो पूरा मन लगाकर तहे दिल से अपनी नौकरी बचाए रखने के लिए एक परिवार की सेवा करती है। उसके बावजूद भी पति-पत्नी के अच्छे सम्बन्ध ना होने के कारण ऐसी परिस्थितियां पैदा हो जाती हैं कि उसे नौकरी छोड़नी पड़ती है। काफी भटकने के बाद प्रयत्न करके वह दूसरी जगह नौकरी ढूंढ लेती है।

मगर यहां पर भी उसकी परेशानियां कम नहीं होती हैं, क्योंकि स्त्री को भोग की वस्तु मानने वाला पुरुष उसके साथ अशोभनीय हरकत करता है और अपनी इज़्जत की खातिर वह काफी कठिनाई से प्राप्त हुई नौकरी भी  छोड़ देती है। वह मदद के लिए अपनी गाँव की सहेली के पास पहुंचती है लेकिन विडम्बना यह है कि उसकी सहेली इन परिस्थितियों का सामना पहले ही कर चुकी थी। उसने भी मजबूर होकर एक नाचने वाली का पेशा अपना लिया था और अपनी ज़िन्दगी से समझौता कर लिया था।

देह व्यापार में महिलाओं को धकेलने के लिए सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी पुरुषों की है

अधिकांश पुरुषों की सोच यह दर्शाती है कि वे औरत को एक कठपुतली से अधिक कुछ नहीं समझते हैं। अगर औरत गरीब या बेबस है, तो उसे अपने इशारों पर नाचने के लिए मजबूर कर देते हैं।

पुरुषों की इस मानसिकता की वजह से एक भोली-भाली लड़की जो ईमानदारी व मेहनत करके एक स्वाभिमानी स्त्री की तरह जीवन व्यतीत कर सकती है, अपने पेट की खातिर सारी तमन्नाओं का गला घोटकर बार डांसर या वैश्या बनने पर मजबूर हो जाती है।

लानत है ऐसे पितृसत्तात्मक समाज पर जो औरत की इज़्जत करना नहीं जानता और उनको इतना बेबस कर देता है कि उन्हें अपनी ज़िन्दगी जीने के लिए पुरुषों के रहम-ओ-करम पर निर्भर रहना पड़ता है, जिसकी मेरी नज़र में जितनी निंदा की जाए कम है।

Exit mobile version