भारत में इस समय अर्थव्यवस्था की स्थिति बिल्कुल चरमरा गई है। इसके ऊपर से महामारी की मार और फिर लापरवाह प्रशासन। पूरा देश इस समय आर्थिक मंदी से जूझ रहा है।
इस महामारी ने देश-विदेश में अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ दी है। यह एक विचारशील समस्या है। फिलहाल सबसे ज़्यादा जो वक्त की मार झेल रहा है, वो है “बेरोज़गार युवा”।
महामारी की मार सर्वाधिक रूप से बेरोज़गार युवा वर्ग पर पड़ी है
हम सभी इस बात से सहमत हैं कि महामारी के चलते हमारी शारीरिक और मानसिक हालत दोनों ही अव्यवस्थित हैं, सबकुछ बिखरा हुआ है। जिन युवाओं के पास नौकरी नहीं है, वे परेशान हैं।
हम बात करते हैं फिलहाल के रेलवे और एसएससी के परिणाम और परीक्षा की। जेईई और नीट की परीक्षाओं के लिए सरकारें सुप्रीम कोर्ट तक का रुख कर रहीं हैं लेकिन इससे अलग रेलवे और एसएससी की परीक्षाओं के विषय में सरकारें चुप हैं।
ऐसा क्यों? कहीं-न-कहीं ऐसा लगता है सरकार गरीबों के लिए गंभीर नहीं है और वहीं इंजीनियरिंग और मेडिकल की परीक्षाओं के लिए सरकार इतनी व्याकुल है। आंकड़े बताते हैं कि देश का धनी तबका इंजीनियरिंग और मेडिकल के क्षेत्र में अधिक सक्रिय रहते हैं, क्योंकि सभी जानते हैं इसमें फीस बहुत अधिक होती है।
वहीं बात करें निम्नवर्गीय परिवारों की, तो वह खुद मेहनत करते हैं और सरकारी नौकरी की तैयारी करते हैं। हम अगर सोशल मीडिया की तरफ अपना रुख करेंगे, तो पाएंगे कि पिछले कुछ दिनों से देश के लाखों युवाओं ने अपना विरोध ज़ाहिर किया। विभिन्न सरकारी परीक्षाओं के लिए परीक्षा की तारीखों और परिणामों की घोषणा में देरी पर अपना गुस्सा जताने के लिए ट्विटर का सहारा लिया है।
ट्विटर पर हैशटैग के माध्यम से अपनी आवाज़ बुलंद कर रहा है युवा वर्ग
हैशटैग #SpeakUpForSSCRailwayStudents तीन मिलियन से अधिक ट्वीट्स के साथ ट्रेंड कर चुका है लेकिन बातचीत परीक्षा के संचालन या परिणाम जारी करने की मांग तक सीमित नहीं है। युवा भी बढ़ते निजीकरण और सरकारी क्षेत्र में घट रही रिक्तियों पर सवाल उठा रहे हैं।
युवाओं में भयंकर आक्रोश है। कई युवाओं ने मिलकर एक साथ रैली निकाली और थाली बजा-बजा कर अपनी कुंठा व्यक्त की। स्टाफ सिलेक्शन कमीशन के कॉमन ग्रेजुएशन लेवल (SSC-CGL) परीक्षा में शामिल होने वाले उम्मीदवारों ने 2018-2019 में परीक्षाएं दी थीं, फिर भी उनके परिणाम नहीं आए हैं।
केवल 11,000 रिक्तियों के लिए कुल 50,000 छात्र। रेलवे भर्ती बोर्ड की गैर-तकनीकी लोकप्रिय श्रेणियों (आरआरबी एनटीपीसी) भर्ती परीक्षा की तारीखों की भी घोषणा नहीं की गई है और एडमिट कार्ड अभी तक जारी नहीं किए गए हैं, बावजूद इसके कि उम्मीदवार मार्च 2019 तक पंजीकृत हैं।
लेकिन ध्यान रहे कि यह अभियान केवल इसी साल के लिए नहीं है, बल्कि कई सालों से हम देखते आ रहे हैं। अक्सर परीक्षाओं में 2 से 3 साल की देरी हो ही जाती है। उसके बाद फिर परिणाम की परेशानी। परिणाम आने में भी सालों लग जाते हैं। कभी-कभी 2 साल तक अभ्यर्थियों को इंतज़ार करना पड़ता है। गरीबों और बेरोज़गारों के लिए यह भी एक प्रकार का शोषण है।
इसके लिए अगर हम आज आवाज़ नहीं उठाएंगे, तो शायद हम कभी सफल नहीं हो पाएंगे। कल शाम को पीयूष गोयल ने रेलवे की परीक्षा की तिथि निर्धारित की। इतना सब कुछ होने के बाद सरकार दबाव में आकर फैसले लेती है। यदि इन दिनों हम सब मिलकर आवाज़ नहीं उठाते, तो शायद इस साल परीक्षा होना नामुमकिन होता।
समाज के वंचित तबके को सरकार कर देती है नज़रअंदाज़
कभी-कभी ऐसा लगता है समाज का वंचित तबका जिसको सरकार भी गम्भीरता से नहीं लेती। उनकी काबिलियत और उनके अनुभवों को नज़रअंदाज़ किया जाता है। देश का प्रशासन इस समय बिल्कुल ब्रिटिश सरकार की तरह पेश आ रही है और गरीब समुदाय उसका गुलाम।
जितना चाहे शोषण हो, कुछ भी करो। पैसा बोलता है। यहां जो पहले से मज़बूत हैं उनको और मज़बूत किया जा रहा है और जो कमज़ोर हैं उनका शोषण करके उनको और नीचे की ओर ढकेला जा रहा है।
शिक्षा भी बिकने लगी है। ऐसी व्यवस्था पर धिक्कार है। मौखिक रूप से सभी नेता बहुत बड़ी-बड़ी बात करते हैं, वहीं जब ज़मीनी आधार पर निरीक्षण करेंगे तो पाएंगे कि निम्नवर्गीय और मध्यमवर्गीय परिवारों के आधार को धीरे-धीरे और कमज़ोर किया जा रहा है।