होमो सेपियन्स एक वैज्ञानिक नाम है, जिसको हम आम बोलचाल की भाषा में मनुष्य कहते हैं। पृथ्वी पर सबसे समझदार होमो सेपियन्स यानि मनुष्य को ही माना जाता है। बात करने, अमूर्त सोच और समस्या के समाधान का हल ढूंढने के लिए मनुष्य हमेशा से समाज का एक अहम हिस्सा रहा है।
मनुष्य को समाज में रहते हुए 2 लाख साल से भी ज़्यादा हो गए हैं। मानव के जन्म से ही रिप्रोडक्शन शुरू हुआ। प्रजनन करने का जन्म भी तभी से शुरू हुआ। इसमें नर और मादा दोनों की महत्वपूर्ण भूमिका रही। प्रजनन में सबसे ज़रूरी जो तथ्य है, वो है पुरुष का वीर्य और महिला के अंडाणु।
इनसे मिलकर ही बच्चे का जन्म होता है। वहीं, समाज पुरुष के स्पर्म को निकलने पर कोई टिप्पणी नहीं करता ना कोई प्रथा चलाता मगर महिलाओं के अगर अंडाशय से खून के रूप में बिना।निषेचित अंडा बाहर निकले तो उसके लिए ना जाने क्या-क्या प्रथाएं बना दी जाती हैं।
मनुष्य के पास मस्तिष्क होने के बावजूद उसने उसका इस्तेमाल करना नहीं सीखा। विज्ञान का अभाव आज भी मनुष्य को विकास करने से रोकता है। वहीं, किसी प्राकृतिक चीज़ के लिए कोई प्रथाएं बनाता है, कोई घर से बाहर निकाल देता है और उसके बाद उसको हर पूजा पाठ से निष्काषित कर दिया जाता है।
इनमें से प्रमुख है देश के ग्रामीण क्षेत्रों में घर से थोड़ी सी दूरी पर एक छोटी सी झोपड़ी बना दी जाती है, जिसमें न तो सही से हवा आने के लिए कोई खिड़की होती है और ना कोई बिस्तर। इस झोपड़ी को “कुरमा घर’ या “पीरियड्स हट” कहा जाता है। इस प्रकार की प्रथा को भारत देश के साथ-साथ नेपाल में भी मान्यता दी जाती है।
पीरियड्स को पूरी दुनिया में कई छोटे-छोटे गाँवों और कस्बों में एक वर्जित प्रॉसेस माना जाता है। एक सामान्य जैविक क्रिया होने के बावजूद जिन लड़कियों के पीरियड्स होते हैं, उस समय उनको अपवित्र और शर्मनाक माना जाता है।
इसके परिणामस्वरूप समाज में मासिक धर्म से सम्बन्धित कई प्रकार के रीति रिवाज़ विकसित हुए हैं। कोई महिला या लड़की पीरियड्स के दौरान अपने निजी घर में रहने लायक नहीं समझी जाती है। उसके साथ कैदियों वाला सुलूक किया जाता है। कई गाँवों में आज भी मासिक धर्म से सम्बंधित कुछ अंधविश्वास मौजूद हैं जैसे-
- गाय को छू लिया तो वो कभी दूध नहीं देगी।
- पेड़ को छू लिया तो वो कभी फल नहीं उगाएगा।
- किताबों को छू लिया तो सरस्वती माता गुस्सा हो जाएंगी।
- पुरुष को छू दिया तो वो बीमार पड़ जाएगा।
- घर में रख लिया तो घर में पैसों की कमी हो जाएगी आदि।
इन सबसे बचने के लिए लोग तरह-तरह के हथकंडे अपनाते हैं, जिसमें से प्रमुख है “कुरमा घर या पीरियड्स हट”। इनमें उन महिलाओं को भेजा जाता है, जिनके पीरियड्स हो रहे होते हैं। जिस झोपड़ी में उन्हें भेजा जाता है, वहां से उनके शौचालय, हाथ धोने और नहाने की अलग जगह होती है, जो खुले आसमान के नीचे नहीं बनाई जाती है।
उसको भी कुरमा घर के अंदर ही शौच करने के साथ-साथ नहाना, खाना और यहां तक कि वहीं सोना भी पड़ता है। ऐसी मान्यता है कि अगर कोई लड़की या महिला पीरियड्स के दौरान आसमान के नीचे नहा लेती है या शौच करने जाती है, तो ऐसे गाँव में आकाल पड़ जाता है।
यहां तक कि सुखाड़ या फिर बाढ़ आ जाती है। पीरियड्स के दौरान महिलाओं को कुरमा घर में बंदी बनाकर रखा जाता है, चाहे कैसा भी मौसम हो। नेपाल में तो एक महिला की दम घुटने से मौत तक हो गई थी। उसने सर्दी के मौसम में उस कुटीर में आग जलाई थी, कोई वेंटिलेशन नहीं होने की वजह से उसका दम घुट गया। ज़रा सोचिए यह कितना दयनीय है।
महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में यह प्रथा आज भी है। यहां तक कि वहां की महिलाओं को कपड़ा या पैड इस्तेमाल नहीं करने दिया जाता। ऐसे में महिलाएं अनहेल्दी चीज़ों का इस्तेमाल करती हैं। वे धान के झाड़ पर महुआ के पत्तों से कवर किए हुए स्ट्रिप्स का उपयोग पैड के रूप में करती हैं। जिससे उन्हें संक्रमण और बीमारियों का अधिक खतरा होता है।
कभी-कभी मृत्यु तक भी हो जाती है। वहीं, बात करें नवंबर 2017 की तो वहां पर जयंती नामक महिला का शव कुरमा घर में पाया गया था। उनको बुखार और हाई ब्लड प्रेशर की भी शिकायत थी और इसके अलावा कुरमा घर की हालत इतनी गंदी होती है कि वहां पर सोना और दिन गुज़ारना तो दूर, लोग खड़े तक होना पसंद नहीं करते हैं।
स्थानीय एनजीओ सोसाइटी ऑफ पीपल्स एक्शन इन रूरल सर्विसेज़ एंड हेल्थ (स्पार्स) के संस्थापक डॉ. दिलीप बारसगडे बताते हैं,
हमने आदिवासी क्षेत्रों में 223 गौकर/ कुरमा घरों का दौरा किया और लगभग 98% घरों में बिस्तर तक नहीं हैं, ना तो बिजली की कोई व्यवस्था है और ना ही कोई बुनियाद सुविधा। ज़्यादातर गौकरों में बांस के अस्थाई बाथरूम बने हुए थे।
ऐसे में देश के कई राज्यों में यह प्रथा महिलाओं के लिए बेहद खतरनाक साबित हो रही है। इसमें सबसे ज़्यादा परेशानी दिसंबर और जनवरी में होती है, सर्दी की ठिठुरन में कई महिलाएं अब तक दम तोड़ चुकी हैं। समाज को आवश्यकता है ऐसी परम्पराओं को तोड़ने की, जिसमें देश के युवाओं की बहुत बड़ी भूमिका है।
नोट: इमरान YKA के तहत संचालिच इंटर्नशिप प्रोग्राम #PeriodParGyaan के अगस्त-अक्टूबर सत्र के इंटर्न हैं।