एक तरफ दुनिया की सबसे बड़ी आबादी पर बंदी लागू करना, तो दूसरी तरफ पड़ोसी मुल्क की “लाल आंखों” का जवाब। एक तरफ वेंटीलेटर से कोमा में जा चुकी अर्थव्यवस्था, तो दूसरी ओर निजीकरण के सवालों में उलझी सरकार। देखना काफी दिलचस्प होगा, आधे-अधूरे या कहें नकारे हुए विपक्ष के सवालों को कितनी गंभीरता से लेगी अब यह सरकार?
केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में मानसून सत्र के दौरान दिए गए अपने जवाबों में कुछ जवाब, सरकार को ही घेरने का मौका दे रहे हैं। जिसमें दो जवाब काफी अहम हैं।
सवाल भारत चीन सीमा-विवाद का
बता दें एक तरफ जुलाई महीने में प्रधानमंत्री द्वारा जारी किए संबोधन में चीन पर बयान देते हुए उन्होंने दावा किया था कि “पूर्वी लदाद्ख में जो हुआ, ना वहां कोई हमारी सीमा में घुस आया है, ना ही कोई घुसा हुआ है, ना ही हमारी कोई पोस्ट किसी दूसरे के कब्ज़े में है।”
दूसरी ओर भारत के रक्षा मंत्री ने संसद में सदन को वर्तमान स्थिति के बारे में अवगत कराते हुए बताया , “सदन अच्छी तरह अवगत है, कि चीन ने भारत के लद्धाख क्षेत्र के लगभग 38000 वर्ग किलोमीटर पर अवैध कब्ज़ा किए हुए है।”
अब सवाल यह है कि देश के सामने कौन झूठ बोल रहा है? कौन सदन को गुमराह कर रहा है? या फिर आंकड़ों का यह खेल परिस्थिति पर भारी पड़ रहा है? बुद्धिजीवियों की मानें तो वर्तमान सरकार ने विपक्ष की भूमिका को ही खत्म करने का प्रयास किया है।
उन्होंने उदहारण देते हुए बताया कि देश के सामने कुछ ऐसी छवि गढ़ी जा रही है जिसमें सरकार से सीम- विवाद के सन्दर्भ में कोई भी सवाल पूछने पर जवाब सीमा के जवानों के शौर्य से जोड़कर बताया जाता है।
बुद्धिजीवी यह सवाल भी करते हैं कि सरकार के खिलाफ बोलना सेना के शोर्य को कैसे चुनोती दे सकता है? जनता की समझदारी पर इतना बड़ा प्रश्न चिह्न लगाना किस हद तक ठीक है?
क्या जनता यह नहीं देख रही है कि CAG की रिपोर्ट में किस प्रकार जवानों को मिलने वाली सुविधाएं संतोषजनक स्तर पर नहीं रही हैं, तो क्या हौसला बढ़ाना ही काफी होता है? या कहें उनके नाम का इस्तेमाल करते हुए इमोशनल कार्ड का इस्तेमाल करते हुए अपनी राजनीतिक रोटियां सेकना?
दूसरा मुद्दा जो सबसे ज़्यादा गर्मजोशी का था
देश को चार घंटो की मोहलत देकर बंद कर देना और लाखों करोड़ों की संख्या में लोगों द्वारा जब पलायन किया जा रहा था, तो कितने लोगों ने जान गंवाई हैं? जान गंवाने वाले लोगों को क्या कोई राहत राशि दी गयी है?
तो जान गंवाने वाले प्रश्न का जवाब श्रम मंत्रालय ने ऐसे दिया, “No such data is maintained.” और जब मरने वालें लोगों का डाटा ही नहीं है, तो सहायता राशी देने का सवाल ही खत्म हो जाता है लेकिन विपक्ष के लिए यह सवाल यहां खत्म नहीं हुआ।
विपक्ष ने इसे भुनाने की कोशीश में सरकार पर आरोप लगाए कि सरकार बिना सोचे समझे तालाबंदी ले आई। लोगों को भूख, बेरोज़गारी, कर्ज़ में धकेल कर सरकार के उद्योगपति मित्रों ने “आपदा में अवसर” तलाशने का काम किया है। महत्वपूर्ण यह है कि विपक्ष पहले सरकार पर नोटबंदी और जीएसटी थोपने के आरोप लगाता तो था ही अब देश के चर्चित प्रधानमंत्री ने विपक्ष के अनुसार तालाबंदी थोप दी है।
अब देखने लायक यह है कि गर्त में पड़ी जीडीपी, बंद होने की कगार पर खड़े उद्योग धंधे, अमीर-गरीब के बीच बढ़ता फासला, बाज़ार में बढ़ती बेरोज़गारी, चंद कम्पनियों की मोनोपॉली और दुश्मन की लाल आंखों के बीच सरकार आगे क्या रणनीति अपनाती है।