समाज कितना स्वार्थी है और निरंकुश भी। ना जाने महिलाओं के लिए इतनी कट्टरता दिल में कैसे इकट्ठा किए रहता है? मेरा इशारा यहां सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या के मामले में है।
अभी इस बात की पुष्टि नहीं हुई कि इसके लिए कौन ज़िम्मेदार है। समाज ने फैसला ले लिया? समाज अगर कानून अपने हाथ में ले रहा है, तो कानून व्यवस्था ने आंखों में पट्टी क्यों बांधी रखी है?
शर्म आती है कि मैं ऐसे समाज का हिस्सा हूं
मीडिया तो बिक चुकी है। इनका कोई ईमान धर्म नहीं है। इनको कौन नियुक्त करता है? रिया चक्रवती जिसको इस मामले में हत्यारोपी साबित किया जा रहा है, क्या यह सही है? इसका फैसला करने वाले समाज के लोग हैं। फिर कोर्ट का क्या काम? मीडिया ने कहा और हमने मान लिया। भारतीय लोगों के दिमाग को क्या होता जा रहा है?
जिस पर तुम इल्ज़ाम लगा रहे हो, वह एक महिला है। अभी वह शक के घेरे में है, उसका गुनाह साबित नहीं हुआ है। जब वह गेस्ट हाउस में पूछताछ के लिए जा रही थीं, तो मीडिया कर्मी उनके ऊपर ऐसे झपटा जैसे भूखे भेड़ियों को मांस का टुकड़ा नज़र आ गया हो। इतनी बेशर्मी और इतनी घृणा। मत भूलो वह महिला है। इस तरह टूट पड़ने से क्या होगा? उसको फांसी हो जाएगी या उसको आप उकसा रहे हैं आत्महत्या करने के लिए।
डायन, चुड़ैल, जादूगरनी और ना जाने कौन-कौन से अपशब्दों से उसका इस्तेकबाल किया जा रहा है। यह भी एक घिनौनी राजनीति का हिस्सा है। महाराष्ट्र में मौजूदा शिवसेना की सरकार है, जो विपक्षी नेताओं को हजम नहीं हो रही और इस फसाद में उनका साथ दे रही है कंगना रनौत, जो खुद भी एक महिला हैं और दूसरी महिला पर अपने शब्दों के बाण छोड़ रही हैं, कीचड़ उछाल रही हैं।
जब ऋतिक रोशन का बसा-बसाया घर उजाड़ने में आपको ज़रा भी तकलीफ नहीं हुई, तो यह पूछना लाज़मी है कि आप यह चालें किसके कहने पर चल रही हैं? राजनीति कब तक चलेगी? किसी को इतना अपाहिज मत कर दो कि उसको उबरने के लिए कई पुश्तों की बलि देनी पड़ जाए।
बॉलीवुड में दिल लेकर ना जाएं, जाएं तो सिर्फ दिमाग लेकर
यहां हुस्न बिकता है और अय्याशी खरीदी जाती है और अगर आपके पास दोनों चीज़ों का अभाव हो जाए, तो आपको दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकालकर फेंक दिया जाता है। यहां आपके अनुभव, आपकी भावनाओं और आपकी ज़रूरत किसी भी चीज़ की कद्र नहीं।
यहां दिल लेकर ना जाएं, जाएं तो सिर्फ दिमाग लेकर। यहां लोग बिक जाते हैं। रिया चक्रवती तो मध्यम परिवार की लड़की है, उसके सामने ज़्यादा ऐशोआराम आएंगे तो उसका इस्तेमाल करने का मन तो करेगा।
ड्रग्स के कारोबार में जो असली चेहरा होता है, वह शायद या तो कोई बहुत बड़ा चेहरा होता है बॉलीवुड का या फिर मुंबई के सबसे अमीर परिवार से सम्बंधित। कहीं-ना-कहीं उसमें नेता के बच्चे भी शामिल होते हैं। ऐसे में फंसता वही है, जो कमज़ोर होता है। जिसके पास ना तो पैसा होता है और ना ही शोहरत।
मुझे यह सोचकर पीड़ा होती है कि समाज इतना स्वार्थी क्यों बन गया? ग्रिल्ड करने के लिए आपको क्यों कोई चाहिए? आपने कानून नहीं बनाया तो इसको हाथ में भी मत लीजिए। देश में न्यायिक व्यवस्था है, इस मामले की निष्पक्ष जांच की जा रही है। संयम रखिए, फैसला होगा। बस इस बात का ध्यान रखें कि वह एक महिला है उसके साथ छीना-झपटी करना कहां की नैतिकता है?