दिल्ली के बंग्ला साहिब में शुरू हुआ बाला प्रीतम दवाखाना। यह दवाखाना दिल्ली सिख गुरुद्वारा मैनेजमेंट कमेटी (Delhi Sikh Gurudwara Management Committee) द्वारा 29 अगस्त, 2020 को शुरू किया गया।
बता दें, इन दुकानों में ज़रूरतमंद लोगों को बेहद कम दामों पर दवाईयां उपलब्ध कराई जाएंगी। दवाओं पर फैक्ट्री की कीमत ही उनकी अंतिम कीमत रहेगी, जो अन्य मेडिकल स्टोर्स से काफी हद तक सस्ती होंगी।
न्यूज एजेंसी एएनआई के ट्वीट के मुताबिक, ”दिल्ली सिख गुरुद्वारा मैनेजमेंट कमेटी ने शनिवार को बाला प्रीतम दवाखाने की शुरुआत की है। यहां मिलने वाली दवाइयां एमआरपी से सस्ती होंगी, क्योंकि इन्हें फैक्ट्री की कीमतों पर बेचा जाएगा और इसका खर्च डीएसजीएमसी द्वारा उठाया जाएगा।”
दवाइयों को और उनकी एमआरपी पर मनिंदर सिरसा का कहना है कि आने वाले दिनों में दिल्ली के कई और हिस्सों में इस तरह की दुकानें खोली जाएंगी। जिससे ज्यादा से ज्यादा लोगों को कम कीमतों पर अच्छी दवाईयां मिल सकें। इन दवाखानों में हर तरह की ब्रांडेड और जेनरिक दवाइयां होंगी और ज़्यादा दवाईयों पर उनकी एमआरपी से 80 प्रतिशत तक का डिस्काउंट उपभोक्ताओं को दिया जाएगा।”
कौन-सी दवा होती है जेनरिक और कौन-सी ब्रांडेड?
आम तौर पर सभी दवाओं में सॉल्ट या कैमिकल होता है। इनको रिसर्च के बाद अलग-अलग बीमारियों के लिए बनाया जाता है। आमतौर पर जेनरिक दवा जिस सॉल्ट से बनी होती उसको उसी नाम से जाना जाता है। जब उसी दवा को किसी कंपनी के के नाम से बेचा जाता है, तो वह उस दवा का ब्रांड बन जाता है।
जैसे- बुखार और दर्द में ली जाने वाली पैरासिटामोल सॉल्ट को कोई इसी नाम से बेचता है, तो यह जेनरिक दवा कहलाती है। वहीं जब कोई इसे कंपनी के नाम से बेचता है, तो तब इसे उस कंपनी की ब्रांडेड दवा कहा जाता है। इस तरह डोलो और क्रोसीन एक ब्रांडेड दवा है और पैरासिटामॉल उसकी जेनरिक दवा है। जबकि तीनों दवाओं का सॉल्ट और कैमिकल एक ही है।
जेनरिक और ब्रांडेड दवा की क्वालिटी में क्या फर्क होता है?
आमतौर पर दोनों दवाओं में कोई खास फर्क नहीं होता लेकिन अभी तक भारत में ऐसा कुछ खास उपलब्ध नहीं है, जो जेनरिक और ब्रांडेड दवाओं की गुणवत्ता की तुलना कर सके। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, सरकार द्वारा खरीदी जाने वाली कुछ दवाओं की गुणवत्ता में कमी ज़रूर सामने आई है।
क्यों जेनरिक दवाएं ब्रांडेड दवाओं से होती हैं सस्ती?
किसी भी ब्रांडेड दवा की जेनरिक उसके ब्रांड के एमआरपी से दस से बीस गुना तक सस्ती होती है। वैसे तो इसके पीछे कई कारण हैं लेकिन जो कारण प्रमुख है, वह यह है कि फार्मा कंपनियां ब्रांडेड दवाओं के शोध, पेटेंट और विज्ञापन पर काफी पैसा खर्च करती हैं और जेनरिक दवाओं की कीमत सरकार तय करती है। साथ ही इसके प्रचार या विज्ञापन पर भी ज़्यादा पैसा खर्च नहीं होता है।