हमारे भारत देश में गाय को गौ माता मानते हैं और गौ माता के रूप में पूजते हैं। गाय के गोबर से खाद बनाते हैं, बैलों से हल चलाते हैं और खेती-बाड़ी करते हैं। गाय से हमें दूध भी मिलता है। इन सबके अलावा गाय से हमें एक बड़ी ही उपयोगी चीज़ भी मिलती है- गोबर।
भारत के लगभग हर गाँव में गोबर का किसी ना किसी प्रकार उपयोग होता ही है। आइए जानते हैं, छत्तीसगढ़ के कोरबा में गोबर को कैसे उपयोग में लाया जाता है।
घर को पोताई करने में गोबर का उपयोग
छत्तीसगढ़ के आदिवासी गाँव मे अधिकतर कच्चे मकान होते हैं, जिसकी पोताई करने के लिए गोबर का उपयोग किया जाता है। घर की गोबर से पोताई करने के लिए पहले गौशाला में गोबर लेने जाते हैं, फिर गोबर को बाल्टी में पानी लेकर घोलते हैं और एक कपड़ा लेकर उसे गोबर पानी में डुबा-डुबा कर के घर की पोताई करते हैं।
पोताई करने के 5-10 मिनट बाद यह सूख जाता है। उसके बाद सूखे कपड़े से फिर से उसको पोछते हैं, जिससे वह पुरी तरह से सूख जाता है और उसमें जो घास-फूस के छोटे-छोटे कण होते हैं वह निकल जाते हैं। गोबर से घर की पोताई करने से घर में छोटे-छोटे सूक्ष्म जीव होते हैं, वह गोबर के गंध से ही नष्ट हो जाते हैं, जिससे बहुत-सी बीमारियों के संक्रमण से बचाव होता है।
गोबर के कंडों से आग जलाना
गोबर का उपयोग कंडा बनाने के लिए भी किया जाता है। गाँव में आदिवासी लोग अक्सर चूल्हा जलाकर ही खाना पकाते हैं और जंगलों में लकड़ी की कमी होने के कारण लोग गोबर के कंडे बनाकर, उन्हें सुखाकर आग जलाने के लिए इस्तेमाल करते हैं।
गोबर के कंडे बनाकर लोग इन्हें बेचते भी हैं, जिससे उनकी आमदनी भी होती है। एक कंड़ा लगभग 10 रूपये में बेचा जाता है। गोबर का कंडा बनाने के लिए पहले गोबर में धान को कूटने से जो भूसा निकलता है, उस भूसे को गोबर में मिलाकर कंडा बनाते हैं। कंड़े का उपयोग अक्सर छोटे बच्चों की सिकाई करने के लिए भी किया जाता है।
गोबर से खाद बनाना
गाय के गोबर का खाद बनाने के लिए भी उपयोग किया जाता है। इससे बहुत अच्छा खाद बनता भी है, जिससे खेत-बारी में रसायानिक खादों का उपयोग कम किया जाता है। गाय के गोबर को लोग हर रोज़ एक जगह इकट्ठा करते हैं। इस गोबर को सुखाया जाता है, फिर उस सूखे गोबर को खेत में ले जाकर फेंक जाता हैं, जिससे वह मिट्टी उपजाऊ हो जाती है और अच्छी खासी फसल देती है।
खेतों में रसायानिक खादों के उपयोग से मिट्टी ज़हरीली हो जाती है। हर साल रासायानिक खादों के उपयोग से भूमि बंजर बनती जाती है और कठोर हो जाती है। ऐसे में, खेत से जाने वाला पानी भी ज़हरीला हो जाता है। वह पानी जब तालाब-समुद्र में जा करके मिलता है, तो वहां रहने वाले जीव मरने लगते हैं और उनपर बुरा प्रभाव पड़ता है।
इसलिए खेतों में रसायानिक खादों के बदले जैविक खाद का उपयोग किया जाना चाहिए। जैविक खादों में गाय के गोबर से बनाया हुआ खाद सबसे अच्छा होता है। छत्तीसगढ़ के कई आदिवासी गाँवों में गोबर का ऐसा उपयोग होता है। यह उपयोग भारत के बाक़ी राज्यों में भी देखे जाते है। आज कल गोबर से ऊर्जा भी तैयार की जा रही है।
यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजैक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, और इसमें Prayog Samaj Sevi Sanstha और Misereor का सहयोग है।