दिन था शुक्रवार, शाम के पांच बज रहे थे और पूरे गाँव में हर तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था। आमतौर पर मेरे गाँव में ऐसा सन्नाटा होता नहीं है। पूछताछ करने के बाद मुझे जानकारी मिली कि यह इस सन्नाटे के पीछे की वजह मैं ही हूं। यह जानने के बाद मुझे ज़रा सी भी हैरानी नहीं हुई। पता है क्यो?
क्योंकि एक दलित लड़की से प्रेम करते वक्त ही मुझे अंदाज़ा हो गया था कि समाज इस चीज़ को आसानी से तो स्वीकार करने वाला नहीं है। अभी गुरुवार को ही हमारी शादी हुई थी, पास के गाँव की एक दलित लड़की से।
ढलती शाम के साथ सन्नाटा और बढ़ता गया और अगली सुबह पंचायत बुला दी गई। मेरे पिताजी गुजरात की एक फैक्ट्री में काम करते थे, तो वो गाँव में नहीं थे और माता जी का इंतकाल पहले ही हो चुका था। यानि कि में मैं और मेरी पत्नी के अलावा हमारे घर में कोई नहीं था।
खैर, अगली सुबह पंचायत में यह फरमान जारी कर दिया गया कि एक दलित लड़की से शादी करने के कारण मेरा तब तक के लिए हुक्का पानी बंद, जब तक मैं उसे छोड़ नहीं देता हूं। यहां तक कि सरपंच के कानों तक यह खबर भी पहुंच गई थी कि मैंने अपनी पत्नी से शारीरिक संपर्क बनाया है। पंचायत में मौजूद तमाम पुरुषों, बच्चों और महिलाओं की उपस्थिति के बीच मुझे ज़लील करते हुए पूछा गया कि मैंने क्यों एक दलित लड़की के साथ शारीरिक संपर्क बनाया है?
उनके द्वारा लगातार पूछे जा रहे सवालों के बीच मैं अपनी शादी के फैसले पर अड़ा रहा। फिर होना क्या था? मुझे और मेरी पत्नी को गाँव से निकल जाने के लिए कहा गया। हमने नज़दीकी पुलिस स्टेशन में मामले की शिकायत की मगर कुछ मदद नहीं मिली।
फिर मैं और मेरी पत्नी गाँव छोड़कर मेरे पिता जी के पास गुजरात के लिए निकल पड़े। एक साल बाद होली के अवसर पर केवल मैं अपने गाँव यह जानने-समझने के लिए गया कि देखूं तो ज़रा हालात क्या हैं? जैसे ही सरपंच ने मुझे देखा कि पूरे गाँव में आग की तरह खबर फैल गई। मुझे आंगनबाड़ी केन्द्र के आगे जाने ही नहीं दिया गया।
मुझे अंदाज़ा हो गया कि गाँव अब काफी पीछे छूट चुका है। मैं इन लोगों की सोच के कारण अपनी पत्नी को तो कतई नहीं छोड़ सकता था। मैंने गुजरात में अपनी एक अलग दुनिया बनाई, जहां जीवन के तमाम संघर्षों के बीच जातिवाद जैसी चीज़ों से हमारा कभी भी वास्ता नहीं पड़ा।