दिल्ली में जब मेरी कंपनी बंद हो गई तो मुझे नई नौकरी की तलाश थी। मैंने कई जगह इंटरव्यू दिए लेकिन बात नहीं बनी। चूंकि मैं पत्रकारित का स्टूडेंट और फ्रेशर था इसलिए मेरी बड़े-बडे़ मीडिया हाउस में जान-पहचान भी नहीं थी।
एक दिन मैंने लिंकडिन पर एक रिक्वायरमेंट देखी, जिसमें रांची और पटना के लिए दो कॉटेंट राइटर की वैंकेसी थी। मैंने ज़्यादा सोचा नहीं और अपना सीवी मेल कर दिया। कुछ दिनों बाद ही रांची से मुझे कॉल आया और कहा गया कि आपको इस दिन इंटरव्यू के लिए पहुंचना है। मैं तय समय और तारीख के अनुसार वहां पहुंच गया। इसके बाद मेरा इंटरव्यू भी ठीक-ठाक से हो गया।
15 दिन बाद ही मुझे रांची से कॉल आया और सैलरी के बारें में डिसकस किया गया। इसके बाद उन्होंने मुझे 15 फरवरी को ज्वाइन करने को कहा। मैंने भी ज्वाइन कर लिया। शुरुआत के दिनों में मुझे थोड़ी दिक्कत हुई। जैसे- वहां के रहन-सहन और खानपान आदि के अलावा ऐसी बहुत सी चीज़ें थीं जिनमें ढलने के लिए समय लग गया। सब कुछ ठीक चल ही रहा थी कि एक दिन टीवी पर मैं न्यूज देखता हूं कि भारत में कोरोना वायरस की शुरुआत हो चुकी है।
21 दिनों के लॉकडाउन ने मुझे बहुत डराया
मार्च के शुरुआत में ही भारत में कोरोना वायरस का आगाज़ हो चुका था, जिसके चलते भारत में लोगों ने होली भी सामाजिक दूरी का पालन करते हुए मनाई थी। मैं रांची में एक न्यूज़ बेवसाइट के लिए कॉटेंट लिखता था, तो मुझे होली पर मात्र एक दिन की छुट्टी मिली।
एक दिन की छुट्टी के लिए मैं रांची से आगरा अपने घर नहीं आ सकता था, तो मैंने अपने पीजी के कमरे में ही पूरा दिन गुज़ार दिया। 23 साल की उम्र में मैं पहली बार होली पर अपने घर से दूर था और पहली बार मैंने होली जैसे त्यौहार को सेलिब्रेट नहीं किया था। मैं अदंर से टूट चुका था और अपने आपको संभालने की कोशिश कर रहा था फिर भी मैं संभाल नहीं पाया और माँ से फोन पर बात करते समय बहुत रोया।
वर्क फ्रॉम होम ने अकेलापन महसूस कराया
होली की छुट्टी के बाद ऑफिस गया तो मैंने देखा कि भारत में कोरोना वायरस काफी तैज़ी से पैर पसार रहा था। न्यूज चैनल्स से लेकर डिजीटल प्लेटफॉर्म्स तक सभी जगह कोरोना वायरस की बात हो रही थी। घर से 1 हज़ार किलोमीटर दूर मेरे माता-पिता भी काफी चिंतित थे।
सरकार ने एक दिन वर्क फ्रॉम होम की एडवाइज़री जारी कर दी। इसके बाद मैंने भी अपने डिजीटल हैड से वर्क फ्रॉम होम के लिए परमिशन मांगी तो मुझे परमिशन मिल गई। इसके बाद मैंने अपने पीजी के रूम से काम करना शुरू किया और इस दौरान ही पीएम मोदी ने देश में 21 दिनों का लॉकडाउन घोषित कर दिया।
इसके बाद शुरू हुई मेरी कठिन परीक्षा। ये 21 दिन मैं अपने जीवन में कभी नहीं भूल सकता। इस दौरान मेरे पीजी ने मुझे सुबह का नाश्ता खुद बनाने को बोला और कहा कि हम सिर्फ लंच और डिनर ही दे सकते हैं। वक्त बीतता गया और दिन कटते गए। मैंने लगभग 22 मार्च से 28 मई तक घर से काम किया।
एक दिन डिस्टर्ब होकर दे दिया इस्तीफा
कोरोना संकट में तीन महीने अपने परिवार से दूर रहने के बाद मैं पूरी तरह से डिस्टर्ब हो गया था। काम का प्रेशर और काम की डेडलाइन से मैं तंग आ गया था। अपने कमरे की चारदीवारी को देखकर मैं ऊब चुका था। फिर एक दिन मैंने अपने हैड से 2 महीने के लिए आगरा से काम करने की परमिशन मांगी लेकिन उन्होंने यह कहकर मना कर दिया कि हम जून से वर्क फ्रॉम होम बंद कर रहे हैं और 1 जून से सबको ऑफिस बुला रहे हैं।
मैंने उनसे छुट्टी की गुज़ारिश की औऱ कहा, “सर मैं थोड़ा परेशान हो गया हूं। कृपया करके आप मुझे 1 महीने की छुट्टी दे दीजिए।” मगर मुझे छुट्टी नहीं मिली। फिर मैंने घर पर माता-पिता से पूछकर इस्तीफा देने का निर्णय लिया। इसके दो कारण थे। पहला- मेरे माता-पिता कोरोना संकट को लेकर मेरी हेल्थ के लिए चिंतित थे और दूसरा- वहां का खानपान मुझे सूट नहीं कर रहा था। इस तरह मैंने अपनी नौकरी छोड़ दी।