वैश्विक महामारी ने जहां सभी का जीवन अस्त व्यस्त कर दिया, वहीं दूसरी ओर इस महामारी की वजह से शिक्षा के क्षेत्र में विद्यार्थियों के शैक्षिक स्तर में गिरावट आई है। खासकर लड़कियों कि शिक्षा की स्थिति क्षीण होती जा रही है।
कोविड-19 ने पूरे विश्व में हर एक प्रणाली को शायद कई दशकों पीछे की ओर धकेल दिया है। आंकड़े बताते हैं कि पिछले एक दशक से लड़कियों के शिक्षा के स्तर में बदलाव आया था। मगर अब वही स्तिथि शायद बहुत पीछे चली गई है।
कुछ बच्चों के लिए शायद यह महामारी कुछ समय बाद साधारण हो जाए, मगर लड़कियों के लिए यह महामारी विनाशकारी सिद्ध हो सकती है। लड़कियों के जीवन का पूरा पाठ्यक्रम बदल जाएगा।
जब भी कभी कोई महामारी विश्व पर अपना प्रहार करती है, जैसे इबोला का उदाहरण ले लेते हैं। इबोला संकट के दौरान जब स्कूलों को लंबे समय के लिए बंद किया गया था उस दौरान लड़कियों के व्यवहार में और उनकी पढ़ने की इच्छा में भयंकर कमी देखने को मिली थी।
यूनेस्को की रिपोर्ट की मानें तो कम से कम एक करोड़ लड़कियां है, लॉकडाउन की वजह से जिनका स्कूल छूट सकता है या फिर उनकी रूचि धवस्त हो सकती है। कई किशोर लड़कियों के लिए, विशेष रूप से निम्न-आय वाले देशों और सबसे गरीब समुदायों से, शिक्षा तक पहुंच COVID-19 से पहले ही एक चुनौती थी।
यूनिसेफ की एक हालिया रिपोर्ट से पता चलता है कि दुनिया भर के सबसे गरीब घरों की तीन किशोरियों में से लगभग एक कभी भी स्कूल नहीं गई है और अनुमान बताते हैं कि कम आय वाले देशों में सबसे गरीब लड़कियों में से केवल 25 प्रतिशत ही प्राथमिक स्कूल की शिक्षा पूरा करती हैं।
आपात स्थितियां बढ़ती विषमताओं को बढ़ाती हैं और मौजूदा शिक्षण संकट को तीव्र करती हैं। अब, इस महामारी के सामने, दुनिया भर में 70 प्रतिशत से अधिक स्चूडेंट अभी भी राष्ट्रव्यापी स्कूल बंद होने से प्रभावित हैं। लगभग 1.26 अरब युवा बच्चे और लड़कियां इस महामारी से प्रभावित हो रहे हैं।
लड़कियों के लिए चिंताजनक स्थिति है फिलहाल
यूनेस्को के असिस्टेंट डायरेक्टर जनरल फॉर एजुकेशन का कहना है कि लड़कियों के स्कूल को ड्राप आउट करने के आंकड़े अत्यंत चिंताजनक हैं। 154 करोड़ विद्यार्थियों में 74 करोड़ छात्राएं हैं। इनमें से 11 करोड़ लड़कियां उन देशों से हैं, जहां पर शिक्षा प्राप्त करना किसी संघर्ष से कम नहीं है। वहीं बात करें भारत की, तो यहां पर केवल 63% लड़कियां ही अपनी पूरी शिक्षा हासिल कर पाती हैं।
विश्व से भविष्य में यह महामारी अवश्य दूर होगी। मगर इसके परिणाम बहुत नकरात्मक होंगे। समाज की हर इकाई इससे प्रभावित होती दिखेगी। ज़िन्दगी दोबारा पटरी पर लौट जाएगी। मगर हालात वैसे नहीं होंगे जैसे सालों पहले थे।
इस महामारी में बात करें शिक्षा की, तो इसका सबसे ज़्यादा प्रभाव युवा लड़कियों और उनकी शिक्षा पर अधिक देखने को मिलेगा। वैसे तो हमको कई क्षेत्रों में काम करना होगा लेकिन सबसे महत्वपूर्ण है बच्चों का भविष्य।
लड़कियों की शिक्षा की हालत पहले भी कोई खास अच्छी नहीं थी। इस महामारी से स्तिथि और कमज़ोर होती जाएगी। इससे निकलने के लिए कुछ उपाय सोचे जा सकते हैं।
वित्तीय सहायता है बहुत ज़रूरी
महामारी में सबसे ज़्यादा दयनीय स्थिति गरीब परिवारों की है। भारत में हाल ही में किए गए एक अध्ययन में पता चला है कि 68 प्रतिशत गरीब लोगों ने COVID-19 के प्रत्यक्ष परिणाम के रूप में एक समय का भोजन तक छोड़ दिया या फिर कम खाना खाया है।
इस महामारी से परिवार और समुदाय पर पड़ा आर्थिक प्रभाव बालिकाओं को बाल विवाह, यौन शोषण, बाल श्रम आदि की ओर धकेल रहा है। स्कूलों में लड़कियों के लिए कई मानकों का निर्माण करना उनको वापस स्कूल तक लाने में मददगार साबित हो सकता है। जैसे;
- परीक्षा शुल्क माफ किया जाए।
- स्कॉलरशिप देने का निर्णय लिया जा सकता है।
- विद्यालयों में मुफ्त भोजन की सुविधाओं को कक्षा 9वीं से 12वीं तक बहाल किया जाना चाहिए। अभी कक्षा 1-8 तक को मिड डे मील के तहत खाना परोसा जाता है।
- कम से कम दो वर्ष के लिए सभी बालिकाओं की ट्यूशन फीस और परीक्षा शुल्क दोनो ही माफ कर देने चाहिए।
गरीब तबके की लड़कियों के लिए दूरस्थ शिक्षा का निर्णय
कोविड-19 के दौरान और बाद में उच्च शिक्षा या फिर माध्यमिक शिक्षा के लिए दूरस्थ शिक्षा भी एक महत्वपूर्ण विकल्प साबित हो सकता है। उच्च वर्ग के लोगों के आंकड़े देखें जाएं, तो लगभग 80% लोग अपने घर की बालिकाओं को दूरस्थ शिक्षा के लिए प्रेरित कर रहे हैं।
वहीं, अगर गरीब वर्ग के आंकड़े देखें तो वहां सिर्फ 25% लोग ही अपनी घर की लड़कियों को दूरस्थ शिक्षा दिलवाने में सामर्थ्य हैं। इसका ऐसा प्रभाव इसलिए है, क्योंकि निम्न वर्ग के लोगों के पास डिजिटल शिक्षा के स्रोत की कमी है। उनमें जागरूकता और समझ भी पूर्ण नहीं है। ऐसे में, डिजिटल शिक्षा का समानीकरण किया जाना प्रभावशाली रहेगा। साथ ही साथ तकनीकी प्लेटफार्मों में डिजिटल सुरक्षा प्रवाह सहित सुरक्षा दृष्टिकोणों को शामिल किया जाना चाहिए।
अशिक्षित लड़कियों और गर्भवती लड़कियों जो कभी स्कूल नहीं गईं, ऐसी लड़कियों के लिए सामूहिक और सामुदायिक शिक्षा पर बल दिया जाना चाहिए। इस महामारी के दौरान सम्पूर्ण विश्व में एक अभियान चलाया जा रहा है, “बैक-टू-स्कूल”। इस अभियान में समुदायों को शिक्षा के प्रति अत्यधिक मुखर रहना होगा। ताकि वे स्कूल जाने वाली लड़कियों का समर्थन करने में सक्रिय रूप से हिस्सा ले सकें।
यह सुनिश्चित करना कि लड़कियां स्कूल बंद होने के दौरान ऑनलाइन और ऑफलाइन शिक्षण सामग्री का उपयोग आसानी से कैसे उपयोग कर सकती हैं, और यह कि परिवार लड़कियों की शिक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं या नहीं। यह जानना भी एक महत्वपूर्ण कदम है।
दूर-दराज के इलाकों में गरीब समुदायों की कनेक्टिविटी और बिना बिजली के समर्थन के साथ मुद्रित सामग्री, टीवी, रेडियो मैसेजिंग और मोबाइल फोन के माध्यम से शिक्षा के हर पहलू को समझने के लिए सुगम और सफल बनाने के लिए प्रभावी कदम उठाने होंगे।
जेंडर असमानता को सिरे से खारिज़ करने का समय आ गया है
भारत में ज़्यादातर घर की कहानी यही होती है, “बेटी तू पढ़ कर क्या करेगी, तुझे तो दूसरे घर जाना है और चूल्हा-चौका करना है।” समाज के खोखले कवच और खोखले आधार की वजह यही है कि अभी तक समाज से लैंगिक असमानता को खत्म नहीं किया गया है। देश में लड़कियों की शिक्षा के लिए बदलाव हुए हैं और लड़कियों की गणना में बढ़ोत्तरी भी हुई है।
मगर यह बढ़ोत्तरी सिर्फ 8वीं कक्षा तक ही सीमित रह गई, क्योंकि 8वीं तक निशुल्क शिक्षा का प्रवाधान है। लड़कियों को माध्यमिक शिक्षा के लिए परिवार प्रेरित नहीं करते और घरेलू कामों में लगा देते हैं। जिससे उनका मानसिक विकास भी रुक जाता है। वहीं, लड़को के लिए परिवार हर तरह के कदम उठाते हैं जो उनको सफलता की मंज़िल तक ले जाने में सहायक सिद्ध होते हैं।
“मेरा लक्ष्य बहुत स्पष्ट है और वह यह है कि लड़कियों की शिक्षा, उनके सशक्तीकरण, उनके अधिकारों के लिए लड़ती रहूंगी” -मलाला यूसुफजई