गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुरेव परंब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः।।
अर्थात, गुरु ही ब्रह्मा है, गुरु ही विष्णु है और गुरु ही भगवान शंकर है। गुरु ही साक्षात परमब्रह्म है। ऐसे गुरु को मैं प्रणाम करता हूं।
जब हम दसवीं कक्षा में थे, तब हमारे एग्जाम मार्च मिड तक हो जाया करते थे। उसके बाद जून का इंतज़ार रहता कि रिजल्ट आने वाला है। रिजल्ट के बाद एक महीना एडमिशन और विषयों को चुनने में लग जाता था। ऐसे में, हम स्कूल से दूर होते थे और बिल्कुल यही स्तिथि होती थी, जो आज है।
इस लॉकडाउन ने दोबारा से वही लाकर खड़ा कर दिया है। स्कूल से दूर होने का गम ज़्यादा नहीं होता था। मगर वीना भास्कर मैम उनके बिना ज़िन्दगी को जीना पसंद नहीं था। नौंवी और दसवीं कक्षा में उन्होंने हमको समाजिक विज्ञान पढ़ाया, उनके प्यार और परवाह की वजह से मुझे सामाजिक विज्ञान से ही प्यार हो गया।
अब बात आई ग्यारहवीं कक्षा की। हमको सब्जेक्ट्स चुनने थे। घर से साइंस साइड लेने का दबाव था, मगर मुझे मैडम को छोड़ने का बिल्कुल भी मन नहीं था। उन्होंने मुझे ऐसे ही प्यार किया जैसे एक माँ अपने बच्चे को करती है। इन सब बातों के बीच मेरी माँ ने मेरा साथ दिया और बोली तू ह्यूमैनिटी ले ले। तेरी मैम भी नहीं छूटेंगी तेरे से।
पढ़ाई का सिलसिला शुरू हुआ। मेरे आधे दोस्त कहीं और चले गए कुछ ने सब्जेक्ट बदल लिए। मैं अक्सर क्लास में अकेला ही बैठा करता था। मैं इंट्रोवर्ट था। मैं सुबह सबसे पहले स्कूल पहुंचता था। जाकर बैग रखते ही वीना मैडम की चेयर अच्छी तरह कपड़े से साफ करता। अम्मी से मैंने एक मोटा डस्टर बनवा लिया था।
इसके बाद बाहर जाकर खड़े होकर मैम की कार का इंतज़ार करने लगता और जब मुझे उनकी आसमानी गाड़ी नज़र आती, तो मुझे ऐसा लगता था जैसे मुझे सब कुछ मिल गया हो। मैडम गाड़ी से उतरतीं और मैं उनका झोला साथ में लेकर उनके पीछे-पीछे। मैडम बहुत मना करतीं, मगर मैं नहीं मानता।
हमारी क्लास में उनका पहला पीरियड ही होता था। वह जियोग्राफी की टीचर थीं। मैं पढ़ाई में अच्छा था सिवाय मैथ्स के। मैंने मैथ्स दसवीं तक ही पढ़ी, उसके बाद अंग्रेजी और जियोग्राफी मेरे मेन सब्जेक्ट्स बन गए।
मैं हमेशा से अंतर्मुखी स्वभाव का रहा। मैं अपने विचार और अपनी फीलिंग्स कभी भी दिखा नहीं पाता था। बस डायरी लिखने का शौक था। मैं मैडम को कभी नहीं बता पाया कि वे मेरे लिए किस हद तक एक महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं।
मैं आज भी उनके संपर्क में हूं। मैं इस पत्र के द्वारा आज उन्हीं पलों में खो गया था, जहां मैंने अपना बचपन गुज़ारा और अपने स्वर्णिम पलों से रूबरू हुआ। आज भी मैं यही कहना चाहूंगा कि आप जैसे शिक्षिका मेरी ज़िंदगी में ना कभी आई और ना आएगी।
यहां मुझे एक तुलसीदास जी की कालजयी रचना ‘रामचरितमानस’ की कुछ पंक्तियां याद आईं जो इस प्रकार हैं-
गुरु बिनु भवनिधि तरइ न कोई।
जों बिरंचि संकर सम होई।।
अर्थात, भले ही कोई ब्रह्मा, शंकर के समान क्यों ना हो, वह गुरु के बिना भव सागर पार नहीं कर सकता।
बिल्कुल सटीक कहा तुलसीदास जी ने और यह मेरी शिक्षिका वीना भास्कर पर बिल्कुल उपयुक्त दिखाई पड़ती हैं। आपके द्वारा लिया गया एक एक स्टेप मुझे आज भी याद है। आपसे प्रेरित होकर मैंने शिक्षक बनने का निर्णय लिया। मैं कामयाब हुआ। आपकी बदौलत।
आपने मेरे लिए डॉक्टर से अपॉइंटमेंट ली और कक्षा की लड़की से बताने को मना किया। मैं बारहवीं कक्षा में पीलिया से ग्रसित हुआ था। इसके लिए मैडम ने मेरी बहुत सहायता की। मुझे खुशी होती है मैं आपके बताए हुए रास्तों पर चला और आज कामयाब भी हूं।
आप नहीं होती तो शायद मुझे यह मुकाम नहीं मिला होता। मैं आपसे कभी यह बातें बोल नहीं पाया। इसलिए आज लिखकर आपको भेज रहा हूं। आपके द्वारा याद कराई गई सरस्वती वंदना मुझे आज भी याद है। मैं अपनी कोचिंग में जिस भी बच्चे को दाखिल करता हूं, तो हम सब इस मंत्र का जाप करते हैं।
मैं कामना करता हूं आपके जीवन के कड़वे अनुभव आपसे दूर हो गए होंगे। इस महामारी के दौरान मैं आपसे मिल भी नहीं सकता। मगर आप मेरे दिल में ज़िंदगी में हमेशा मौजूद रहने वाली शख्सियत हैं। आपको और आपके व्यवहार को मेरा सलाम।