लम्बे इंतज़ार और विचार-विमर्श के बाद नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को भारत सरकार द्वारा लाया गया है। जो भारत की वर्तमान शिक्षा व्यवस्था को देखते हुए एक स्वागत योग्य कदम है। वास्तव में, स्वतंत्रता प्राप्ति के लगभग 70 वर्षों के बाद तक हम भारत की शिक्षा नीति को भारत की प्रकृति, संस्कृति एवं प्रगति के अनुरूप बनाने में विफल रहे हैं।
ऐसे में, स्वतंत्रता के बाद पहली बार कोई शिक्षा नीति बनी है, जिसमें समग्रता में भारतीयता का समावेशन देखा जा सकता है। इस दृष्टि से ‘नई शिक्षा नीति 2020’ स्वयं में अद्वितीय है।
नई शिक्षा नीति-2020 में कई ऐसी महत्वपूर्ण बातें हैं, जिनके व्यावहारिक अनुप्रयोग से भारत की शिक्षा को एक नया स्पर्श मिलेगा। जिसके बल पर हम भारतवर्ष को पुनः विश्वगुरु के पद पर आसीन करने की दिशा में अग्रसर होंगे।
नई शिक्षा नीति की सबसे बड़ी विशेषता
इसमें समग्रता की दृष्टि का परिचय दिया गया है। वास्तव में, समग्रता की दृष्टि ही सही अर्थों में भारतीय दृष्टि है। इसका सबसे महत्वपूर्ण उदाहरण है कि “मानव संसाधन विकास मंत्रालय” के स्थान पर अब “शिक्षा मंत्रालय” की संकल्पना प्रस्तुत की गई है।
सच कहें तो मनुष्य को संसाधन मात्र मान लेना भारतीय दृष्टि नहीं है। भारतीय दृष्टि में मनुष्य एक स्वतंत्रचेत्ता प्राणी है। जो संवेदनशील है और केवल उत्पादन का साधन मात्र नहीं है।
नई शिक्षा नीति में परंपरागत ज्ञान के पाठ्यक्रमों के साथ-साथ व्यवसाय केन्द्रित विषयों को भी समान और संतुलित महत्व दिया गया है। अब कला, संगीत, शिल्प, खेल, योग और सामुदायिक सेवा जैसे सभी विषयों को भी पाठ्यक्रम में शामिल किया जाएगा। इन्हें सहायक पाठ्यक्रम या अतिरिक्त पाठ्यक्रम नहीं कहा जाएगा।
भारतीय परंपरा में शिक्षा और समाज का गहरा संबंध रहा है। समाज के सहयोग से ही भारत में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की एक समृद्ध परंपरा देखी गई है। इस बात का नीति में स्पष्ट समावेशन किया गया है।
विद्यालय और समाज के अंतःसंबंधों को इस नीति ने गहराई से पुनर्स्थापित करते हुए शिक्षा को समाज की ज़िम्मेदारी के रूप में रेखांकित किया है। जो शिक्षा में भारतीयता के अनुगूंज की तरह है।
जीडीपी का छह प्रतिशत होगा शिक्षा पर खर्च
दुनिया के सारे भाषा वैज्ञानिक और अनुसंधान इस तथ्य की पुष्टि करते हैं कि मातृभाषा में ही प्राथमिक शिक्षा सर्वाधिक वैज्ञानिक पद्धति है। फिर भी, हम इतने वर्षों से प्राथमिक शिक्षा के माध्यम के रूप में छात्रों पर अंग्रेज़ी थोपते आ रहे हैं। इस दृष्टि से मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था शिक्षा नीति का सबसे सुंदर पक्ष है। इससे भारतीय भाषाओं में शिक्षा का द्वार खुलेगा।
कोठारी आयोग से लेकर कई आयोगों और समितियों ने अपनी सिफारिशों में (जी.डी.पी.) सकल घरेलू उत्पाद का 6% शिक्षा के क्षेत्र में खर्च करने की बातें कही थी लेकिन उसे मूर्त रूप इसी शिक्षा नीति में दिया गया है। अब सरकार ने लक्ष्य निर्धारित किया है कि जी.डी.पी. का 6% शिक्षा में लगाया जाए जो कि फिलहाल 4.43% है।
परंपरागत भारतीय ज्ञान परंपरा के साथ-साथ आधुनिक तकनीकी शिक्षा का अच्छा सामंजस्य इस नवीन शिक्षा नीति में दृष्टिगोचर होता है। ई-पाठ्यक्रम क्षेत्रीय भाषाओं में विकसित किए जाएंगे, वर्चुअल लैब विकसित की जा रही हैं। एक राष्ट्रीय शैक्षिक टेक्नोलॉजी फोरम (NETF) भी गठित किया जा रहा है।
वर्ष 2030 तक हर बच्चे के लिए शिक्षा सुनिश्चित की जाएगी
कक्षा-6 के बाद से ही वोकेशनल पाठ्यक्रमों को जोड़ने की बात कही गई है। बच्चों के रिपोर्ट कार्ड में लाइफ स्किल्स को जोड़ा जाएगा, जिससे बच्चों में लाइफ स्किल्स का भी विकास हो सकेगा। कहीं-न-कहीं यह नीति छात्रों को ‘रटंत विद्या’ से बाहर निकालने की दिशा में एक महत्वपूर्ण बिंदु है। कहने का तात्पर्य यह है कि इस नीति में शिक्षा के सैद्धांतिक पक्षों से अधिक व्यवहारिक पक्षों पर बल दिया गया है।
यह कहा गया है कि वर्ष 2030 तक हर बच्चे के लिए शिक्षा सुनिश्चित की जाएगी। विद्यालयी शिक्षा से निकलने के बाद हर बच्चे के पास कम-से-कम एक लाइफ स्किल होगी, जिससे वह किसी क्षेत्र में कोई काम शुरु करना चाहे, तो कर सकेगा।
शिक्षकों का सम्यक प्रशिक्षण किसी भी शिक्षा-व्यवस्था का एक अहम हिस्सा होता है। इस शिक्षा नीति में शिक्षक-शिक्षा की गुणवत्ता पर काफी सूक्ष्मता से विचार कर निर्णय लिया गया है।
उच्च शिक्षा के दो आधार बिंदु होते हैं- शिक्षण और शोध
नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में गुणवत्तापूर्ण शिक्षण और शोध दोनों पर संतुलित बल दिया गया है। गुणवत्तापूर्ण शोध-कार्य, राष्ट्र, समाज और स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरूप हो, इस दृष्टि से “राष्ट्रीय शोध-प्रतिष्ठान” का प्रावधान है। यह भारत में शोध-कार्य हेतु एक नियामक संस्था होगी, जिसमें विज्ञान के साथ-साथ समाज विज्ञान, कला व मानविकी के विषयों से संबंधित शोध-कार्यों को जोड़ा गया है।
यह शिक्षा नीति उच्च शिक्षा में बहुअनुशासनिकता एवं समग्र शिक्षा के मूल्यों को पोषित करते हुए भविष्य में विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, कला, मानविकी और खेल में ज्ञान की एकता और अखंडता को सुनिश्चित करेगी।
भारत जैसे बहुभाषी देश में सभी भारतीय भाषाओं का विकास आवश्यक मानते हुए यह नीति त्रिभाषा-सूत्र को अंगीकार कर रही है, जो प्रशंसनीय है।
कला और विज्ञान के अनुशासनों के मध्य संरचनागत विभेदों को समाप्त करते हुए पाठ्यक्रम और पाठ्येत्तर गतिविधियों, व्यावसायिक और शैक्षणिक धाराओं को सीखने के सहज और सुलभ पद्धतियों को उपलब्ध कराएगी। जो साथ ही विभिन्न क्षेत्रों के पदानुक्रम और बाधाओं को समाप्त करने में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति सहयोगी सिद्ध होगी।
ऑनलाइन शिक्षा पर नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति ने काफी सूक्ष्मतापूर्वक विचार कर कई प्रावधान किए गए हैं। जैसे-आधारभूत डिजिटल संरचनाओं का प्रावधान, शिक्षकों को ऑनलाइन शिक्षण हेतु प्रशिक्षण एवं प्रोत्साहन इत्यादि।
कोरोना काल वैश्विक परिस्थिति में एक चुनौती के रूप में उभरकर सामने आई है। वैसे में ऑनलाइन शिक्षण का प्रावधान एक दूरदर्शी कदम कहा जाएगा।
शिक्षा की स्वायत्तता पर दिया गया है बल
नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में शिक्षा की स्वायत्तता पर भी काफी बल दिया गया है। प्रावधानों के अनुसार, उच्च शिक्षा संस्थानों को स्वतंत्र समितियों द्वारा पूर्ण शैक्षणिक और प्रशासनिक स्वायत्तता के साथ शासित किया जाना है। पाठ्यक्रम को लचीला बनाने का प्रावधान है ताकि विद्यार्थी अपने सीखने की गति और कार्यक्रमों का चयन कर सकें।
इस प्रकार जीवन में अपनी प्रतिभा और रूचि के अनुसार छात्र अपने रास्ते चुन सकेंगे। शिक्षा नीति का ध्येय यह सुनिश्चित करना है कि कोई भी बच्चा जन्म या पृष्ठभूमि की परिस्थितियों के कारण सीखने और उत्कृष्टता प्राप्त करने का कोई अवसर ना खो दे।
समग्रता में कहा जाए तो नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के माध्यम से भारत की शिक्षा में भारतीयता का सही अर्थों में प्रादुर्भाव हुआ है। सैद्धांतिक और व्यावहारिक शिक्षा के मध्य, भौतिकता और आध्यात्मिकता के मध्य, परंपरागत मूल्यबोध और आधुनिक तकनीक के मध्य समन्वय की एक सुंदर चेष्टा इस नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में देखी जा सकती है।
आवश्यकता है, तो इस नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को सम्यक तरीके से व्यवहारिक धरातल पर उतारने की।