महाभारत के समय की प्रसिद्ध एकलव्य की कहानी आप सभी जानते ही होंगे कि कैसे एकलव्य को शिक्षा के अधिकार से दूर रखा गया था। इसके बावजूद भी एकलव्य ने शिक्षा प्राप्त की। फिर उनके गुरु ने उनसे उनका अंगूठा मांग लिया ताकि उनके दूसरे शिष्य अर्जुन को एकलव्य कभी चुनौती ना दे सकें और सबसे श्रेष्ठ धनुर्धर अर्जुन ही बन सके।
आर्थिक और सामजिक असमानता शिक्षा के समान अवसर में है बड़ी बाधा
ऐसे बहुत सारे एकलव्यों का अंगूठा हमारी शिक्षा व्यवस्था आज भी काट रही है। महाभारत से लेकर आज के नए भारत में शिक्षा में बहुत सारे बदलाव हुए लेकिन आज भी हमारी शिक्षा व्यवस्था एकलव्य का अंगूठा काट रही है।
आज भी कई ऐसे एकलव्य हैं जिनको शिक्षा लेने के अधिकार से दूर रहना पड़ता है। काबिलियत होने के बावजूद उनके आर्थिक और सामाजिक हालातों के कारण उन्हें वो मुकाम हासिल नहीं हो पाता है, जो वो करना चाहते हैं। इन्हें आज भी समान अवसर नहीं मिलते हैं। इसके अलावा कई महिलाएं तो सिर्फ ‘महिला’ होने के कारण शिक्षा नहीं ले पाती हैं।
आज भी ऐसे एकलव्य हैं जिन्हें अपनी आर्थिक और सामजिक स्थिति के कारण शिक्षा के अधिकार से दूर किया जा रहा है। महाभारत में भी एकलव्य को संघर्ष करना पड़ा था और आज नए भारत भी में एकलव्य को अपने अधिकार और हक के लिए संघर्ष करना पड़ता है। चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। आज भी अर्जुन और एकलव्य में वह उतनी ही दूरी है, जो महाभारत में थी।
नीतियां बना देने भर से नहीं मिलता अधिकार
सबके लिए शिक्षा और अवसर के समान अधिकार की नीतियां बनाई तो ज़रूर गईं लेकिन उससे यह दूरियां अब मिटाई नहीं जा सकी है। यह भी हो सकता है कि यह सबकुछ जानबूझकर किया जा रहो हो ताकि आज भी अर्जुन के सामने कोई एकलव्य चुनौती बनकर खड़ा ही ना हो पाए।
जब तक अर्जुन और एकलव्य को समान शिक्षा और अवसर के अधिकार नहीं मिलेंगे तब तक अर्जुन को भी अपने सबसे श्रेष्ठ धनुर्धर होने पर शक होता रहेगा और एकलव्य हमेशा संघर्ष करता रहेगा। ऐसे में, अर्जुन और एकलव्य दोनों के साथ ही अन्याय होता रहेगा।
जब कोई अर्जुन आज अपनी मां के साथ LKG और UKG की शिक्षा के लिए जा रहा होता है, तब कोई एकलव्य अपनी मज़दूर मां के साथ उसकी काम करने वाली जगह पर धुल मिट्टी में खेल रहा होता है। अर्जुन के घर में खाने और खिलौने के बहुत सारे विकल्प होते हैं। वहीं एकलव्य खुद किसी भी चीज को खिलौना बनाने की कोशिश करता है और कभी-कभार मिलने जाने वाले बिस्कुट से ही चमक उठता है।
कहीं पर अर्जुन को इंटरनेशनल स्कूल में जाने के लिए जीपीएस सिस्टम की बस होती है, तो कहीं कोई एकलव्य स्कूल जाने के लिए किसी नदी को पार कर रहा होता है। जब अर्जुन स्कूल के बाद किसी स्पोर्ट्स की ट्रेनिंग लेता है तभी कोई एकलव्य कहीं पर पढ़ाई के खर्चे के लिए छोटू बनकर काम कर रहा होता है।
इन बच्चों को बाल मज़दूरी करनी पड़ती है, क्योंकि ये बच्चे ऐसा करने के लिए मजबूर होते हैं। इनको बाल मज़दूरी से बचाने के लिए बस नियम और कानून बनाने से कुछ नहीं होगा। इसके लिए सरकार को पर्याप्त इंतज़ाम करने चाहिए और इन्हें बुनियादी सुविधाएं देनी चाहिए। मैं किसी भी तरह की बाल मज़दूरी का समर्थन नहीं करता लेकिन यह हमारे समाज की सच्चाई है, जिसपर बात होनी चाहिए।
इसके अलावा जब कोई अर्जुन कोटा में IIT की तैयारी कर रहा होता है, तब कोई एकलव्य किसी और के पुराने नोट्स के सहारे उसी एग्जाम की तैयारी कर रहा होता है। जब कोई अर्जुन UPSC की तयारी के लिए दिल्ली जाता है, तब कोई एकलव्य पार्ट टाइम जॉब करते हुए इसकी तैयारी कर रहा होता है।
एक तरफ कोई अर्जुन इंटरव्यू में जाने के लिए फ्लाइट और होटल की ऑनलाइन बुकिंग करता है, वहीं कोई एकलव्य उसी इंटरव्यू में जाने के लिए रेलवे के टिकट के पैसे जमा करने की कोशिश करता है। एकलव्य को हर समय संघर्ष और चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
सरकारी संस्थानों में भी वंचित तबके के बच्चों को कर दिया जा रहा है बेदखल
निजी शिक्षण संस्थानों में उच्च शिक्षा लेना तो एकलव्य के लिए मुमकिन ही नहीं है लेकिन आज हालात ये हैं कि IIT और IIM जैसे गवर्नमेंट इंस्टीट्यूशन में भी काबिलियत के बावजूद एकलव्य पढाई नहीं कर सकता है। मेडिकल एजुकेशन का तो इससे भी बुरा हाल है। किसी भी तरह का एजुकेशन एकलव्य के लिए नामुमकिन ही होता जा रहा है, क्योंकि लगातार सरकारी संस्थानों की फीस भी बढ़ती जा रही है।
कार लोन और होम लोन मिलना आसान है लेकिन एजुकेशन लोन मिलना बहुत मुश्किल है। जवाहर लाल यूनिवर्सिटी जैसे संस्थान में एकलव्य उच्च शिक्षा की पढ़ाई ज़रूर कर सकता है लेकिन ऐसे इंस्टीटूशन देश में बहुत कम है। इसलिए मैं यह कह रहा हूं कि आज की शिक्षा व्यवस्था एकलव्य का अंगूठा काटने में लगी हुई है।
‘अर्जुन’ और ‘एकलव्य’ के बीच की दूरी को करना होगा खत्म
हाल ही में हमारे देश में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति लाई गई है। बहुत सारे मुद्दों पर मैं इसका समर्थन करता हूं लेकिन शिक्षा व्यवस्था को लेकर जो बुनियादी सवाल हैं उसके जवाब ढूंढे बगैर कितनी भी अच्छी शिक्षा नीति कामयाब नहीं हो सकती है। अर्जुन और एकलव्य में जो दूरी है, यह जब तक नहीं मिटाई जाती तब तक कोई भी शिक्षा नीति कारगर साबित नहीं हो सकती है।
शिक्षा में पब्लिक फंडिंग बढ़नी चाहिए और क्वालिटी और अफोर्डेबल शिक्षा सभी को मिले इसके इंतज़ाम होने चाहिए। शिक्षा नीति अपनाने से पहले शिक्षा व्यवस्था में बुनियादी और ज़रूरी बदलाव करने चाहिए ताकि कोई एकलव्य शिक्षा से दूर ना रहे। मेरा यह मानना है कि आज अर्जुन दुनिया को चला सकते हैं लेकिन दुनिया में बदलाव एकलव्य ही ला सकते हैं।
डॉ. बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर, ए.पी.जे. अब्दुल कलाम जैसे लोगों ने अपनी ज़िंदगी में बहुत संघर्ष किया है। बहुत सारी चुनौतियों का सामना किया है। इनकी वजह से ही शिक्षा में बदलाव की शुरुआत हुई है। हमारे देश के लिए इनका बहुत बड़ा योगदान है।
हमारी शिक्षा निति और शिक्षा व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए जिससे आंबेडकर और कलाम जैसे लोग तैयार हो और जहां किसी भी स्टूडेंट के बैकग्राउंड का असर उनकी शिक्षा पर नहीं होना चाहिए।