बिहार में कोरोना से सुस्त पड़ी चुनावी सरगर्मी चुनाव आयोग के गाइडलाइन पाने के बाद फिर से तेज़ हो गई है। विपक्ष सरकार की नाकामियों को गिना रही है, तो सरकार अपनी उपलब्धियों को।
निजी हमलों से लेकर, जाति और घोटाला सब कुछ बहस का हिस्सा है लेकिन युवा वर्ग जिसके हितैषी होने का तो दावा तमाम पार्टियां करती है लेकिन उनके मुद्दों के साथ खड़ा कोई नहीं होता है।
बिहार में प्रतियोगी परीक्षाओं में पारदर्शिता हमेशा से बड़ा मुद्दा रहा है लेकिन किसी भी सरकार या राजनीतिक दलों ने इसे कभी महत्ता नहीं दी है। BPSC जैसे प्रतिष्ठित परीक्षा से लेकर बिहार कॉन्स्टेबल तक कि परीक्षाओं के आयोजन, प्रश्न-पत्र और परिणाम को लेकर लगातार सवाल उठते रहे हैं लेकिन सबने उसे नज़रअंदाज़ ही किया है।
2014 में BSSC द्वारा इंटर लेवल नियुक्ति की धांधली का मामला
2014 में BSSC द्वारा इंटर लेवल नियुक्ति की धांधली का मामला देश भर में एक बड़ा मुद्दा बना था। प्रश्न-पत्र पहले ही बाहर आ चुके थे जिसको लेकर उग्र प्रदर्शन हुए परिणाम के तौर पर परीक्षा स्थागित करनी पड़ी।
किसी तरह 2018 में दोबारा प्रारंभिक परीक्षा हुई, जिस पर भी कई सवाल खड़े हुए। कहीं प्रश्न पत्र लीक होने की खबर, कही कॉपी गायब होने की खबर लेकिन इस बार आयोग ने इन बातों को सिरे से नकार दिया और अभी तक केवल प्रारंभिक परीक्षा कराकर निश्चिंत है। मुख्य परीक्षा की कोई सुगबुगाहट नहीं है।
कोरोना फिलहाल बहाना हो सकता है लेकिन 6 साल लग गए सिर्फ प्रारंभिक परीक्षा और उसके परिणाम प्रकाशन में यह अपने आपमें आयोग की कार्यप्रणाली पर एक प्रश्न चिन्ह लगाता है।
2017 और 2019 में बिहार दरोगा की बहाली का मामला
ऐसे ही 2017 में फिर 2019 में बिहार दरोगा की बहाली आई 2017 की दरोगा की प्रारंभिक परीक्षा हुई प्रश्न पत्र में कार्बन कॉपी लगे होने के बाबजूद ना छात्रों को कार्बन कॉपी दिया गया और ना ही प्रश्न पत्र, 2019 के प्रारंभिक परीक्षा में भी आयोग ने ऐसा ही किया।
2017 के दरोगा बहाली की जब मुख्य परीक्षा हुई उसमें सभी छात्रों के रोल नंबर बदल दिए गए परीक्षा से पूर्व ही प्रश्न पत्र सोशल मीडिया पर शेयर किए जा रहे थे। 2019 में भी यही हुआ छात्रों ने इसको लेकर विरोध भी किया लेकिन आयोग ने सीधे तौर पर इन बातों को नकार दिया और परीक्षा को पारदर्शी और भ्रष्टाचार मुक्त बताया।
2017 के दरोगा मुख्य परीक्षा परिणाम पर पटना उच्च न्यायालय ने रोक भी लगाई लेकिन हर बार की तरह न्यायालय में छात्र ही हारे।
BPSC जिसे बिहार का सबसे प्रतिष्ठित परीक्षा माना जाता है, उसके हाल भी कुछ अच्छे नहीं है, ऐसा कोई प्रारंभिक परीक्षा नहीं जो BPSC ने आयोजित किया है और उनके प्रश्नपत्र में प्रश्न गलत ना हुए हो।
फिर परीक्षा परिणाम आता है फिर छात्र न्यायालय में जाते हैं। अन्ततः छात्रों की हार होती है फिर गलत प्रश्नों को हटा के परिणाम प्रकाशित कर दिया जाता है। हालिया वाकिया 60-62वीं BPSC की मुख्य परीक्षा की है जिसमें एक-एक छात्रा की मुख्य परीक्षा की कॉपी ही दूसरे छात्र से बदल दी गई।
छात्रा ने जब RTI से अपनी कॉपी मंगाई तो पाया कि वो पास है, जिसके लिए BPSC को माफी भी मांगनी पड़ी और इसे कोडिंग में हुए गलती का एक कारण बता दिया। ऐसे में सवाल उठता है ऐसे छात्र जिन्होंने RTI नहीं डाली उनका क्या?
कोई राजनीतिक पार्टी नहीं उठाती है इन स्टूडेंट्स की आवाज़
विभिन्न आयोग आखिर क्यों छात्रों को डिजिटल माध्यम से स्कैन कॉपी उपलब्ध नहीं कराते? आखिर क्यों कार्बन कॉपी होने के बाद भी बिहार में नहीं दिया जाता है? प्रश्न पत्र परीक्षा से पूर्व ही कैसे बाहर आ जाते हैं? आज भी बिहार दरोगा के लीक प्रश्न पत्र आपको सोशल मीडिया में दिख जाएंगे। यू-ट्यूब चैनलों पर दिख जाएंगे लेकिन आयोग छात्रों को यह प्रश्न-पत्र नहीं देता है।
सबसे बड़ा आश्चर्य है बिहार में कई प्रतियोगी परीक्षाओं के भ्रष्टाचार के इस खेल में कोई राजनीतिक दल या नेता मज़बूती से युवाओं के साथ खड़ा नहीं दिखता है और ना ही आवाज़ उठाता है।