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आखिर स्टूडेंट्स क्यों कर रहे हैं बीएचयू की प्रवेश परीक्षाओं का विरोध?

देश भर में पिछले कुछ दिनों से ट्विटर पर काशी हिंदू विश्वविद्यालय के स्टूडेंट्स प्रवेश परीक्षाओं को रद्द करने की मांग कर रहे हैं। इसी संदर्भ में बी.एच.यू में स्टूडेंट्स की जॉइंट ऐक्शन कमेटी ने 11 अगस्त को विश्विद्यालय के कुलपति को एक ज्ञापन सौंपा था।

इस ज्ञापन में स्टूडेंट्स की ओर से मांग की गई थी कि 8 अगस्त को प्रवेश परीक्षाओं से संबंधित जो नोटिस निकला था, उसे 24 घंटे के भीतर वापस लिया जाए लेकिन विश्वविद्यालय प्रशासन ने स्टूडेंट्स की इस मांग को अनसुना कर दिया। प्रशासन द्वारा मामले को गम्भीरता से नहीं लेने की वजह से स्टूडेंट्स में काफी निराशा है।

प्रवेश परीक्षा का विरोध करते स्टूडेंट्स, तस्वीर साभार: YKA यूज़र

स्टूडेंट्स क्यों कर रहे हैं प्रवेश परीक्षा कराने का विरोध?

अपनी मांगों को लेकर कल से एम.ए हिन्दी के एक छात्र नीरज बी.एच.यू. परिसर में अकेले ही सत्याग्रह पर बैठ गए हैं। नीरज का कहना है कि वह कोविड महामारी के दौरान परीक्षा करवाने के खिलाफ सत्याग्रह करेंगे। उनकी एक ही मांग है कि सभी प्रवेश परीक्षाएं कोरोना की स्थिति सामान्य होने तक निरस्त कर दी जाएं।

सिर्फ BHU की प्रवेश परीक्षाओं में देश के अलग-अलग शहरों में लगभग 5 लाख से अधिक स्टूडेंट्स शामिल होंगे। ऐसे में स्टूडेंट्स का कहना है कि सरकार को छात्रों के जीवन के बारे में गंभीरता से सोचते हुए JEE, NEET, CLAT और तमाम प्रवेश परीक्षाएं फिलहाल निरस्त कर देनी चाहिए।

प्रवेश परीक्षा के विरोध में सत्याग्रह पर बैठा छात्र, तस्वीर साभार: YKA यूज़र

कोरोना महामारी के बीच प्रवेश परीक्षा करवाना एक बहुत बड़ी आबादी की जान जोखिम में डालना होगा। वैसे भी हाल ही में हुए यू.पी.बी.एड की परीक्षा के दौरान जो हुआ, वह सभी ने देखा और उसके बाद से कोरोनी मामलों में हो रही बढ़ोत्तरी भी देख रहे हैं।

भारत में कोरोना के कुल मामले आज 25 लाख तक पहुंच रहे हैं। पिछले 24 घंटे में 66 हज़ार से ज़्यादा मामले सामने आए हैं। अब तक इससे कुल 48 हज़ार के लगभग मौते हो चुकी हैं। कम-से-कम अभी तो संक्रमण नियंत्रित होते बिल्कुल नहीं दिख रहा है।

क्या कह रहे हैं स्टूडेंट्स?

रही बात स्टूडेंट्स की, तो बी.ए थर्ड ईयर इकोनॉमिक्स की छात्रा अभिलाक्षी ने बताया,

उनका घर बनारस से 450 किमी दूर है। कोई ट्रेन, कोई बस कुछ भी उपलब्ध नहीं है, है भी तो रिजर्वेशन मुश्किल है। किसी ने भी कोई एक फॉर्म नहीं भरा है। दो-तीन परीक्षाएं देने के लिए वहां जाने के बाद रहना, खाना कैसे होगा? इसकी भी कोई सुविधा नहीं है। ऐसे में वह कैसे अपनी प्रवेश परीक्षाएं देंगी, उन्हें खुद नहीं पता है।

छत्तीसगढ़ कोरबा में रहने वाली छात्रा तान्या सिंह कहती हैं,

हमारे राज्य में अब भी लॉकडाउन लगा हुआ है। मेरा पहला सेंटर 300 किमी की दूरी पर है और दूसरा सेंटर 600 किमी मेरे घर के पास ही कोरोना के मामले सामने आए हैं। मेरे माता-पिता किसी हालत में अभी मुझे घर से नहीं निकलने देना चाहते हैं। पूरा करियर और भविष्य ही अभी अधर में लटका हुआ है।

बंगाल में रहने वाली भावना से बात हुई और उन्होंने बताया,

उनका सेंटर कोलकाता है। उनका घर कोलकाता से 4-5 घंटे की दूरी पर है। कोलकाता में कोरोना के मामले थम नहीं रहे हैं। कोलकाता जाना जान जोखिम में डालने जैसा है। बी.एच.यू. को हम स्टूडेंट्स की परेशानियों को समझना चाहिए।

प्रवेश परीक्षा का विरोध करती छात्रा, तस्वीर साभार: YKA यूज़र

यू.पी. के कौशांबी के छात्र अर्पित, इन्होंने इसी वर्ष 12वीं की परीक्षा पास की है। आगे की शिक्षा के लिए बी.एच.यू. का फॉर्म भी भरा है लेकिन अभी चल रहे विवाद से वो भी परेशान हैं। अर्पित कहते हैं,

“जहां पूरी दुनिया में हाहाकार मचा हुआ है, वहीं सरकार ने अगस्त और सितंबर में बीएचयू एंट्रेंस एग्जाम कराने का निर्णय लिया है। मैंने और मेरे लगभग दर्जन भर दोस्तों ने भी बीएससी के लिए फार्म भर रखा है। इस संक्रमण के दौर में उतना दूर कैसे जाएंगे? यह सबसे बड़ी चिंता है। यहां तक कि मेरे कई दोस्तों के घर में अभी से मना कर दिया गया है कि एग्जाम देने नहीं जाना है।

वे आगे बताते हैं, “मेरा ही एक दोस्त रवि, वो झारखंड में रहता है। वो भी बहुत परेशान हो गया है कि उतनी दूर से परीक्षा देने कैसे आएगा? पांच-पांच सौ किलोमीटर दूर से छात्र पेपर देने कैसे आएंगे सरकार ने यह नहीं सोचा, ट्रेनें ठीक से चल नहीं रही हैं, बसों में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कौन करता है?

उनका कहना है कि कई ज़िलों में तो अभी भी क्वारंटीन वाला सिस्टम है। वहां के छात्रों के लिए यह भी एक परेशानी होगी कि पेपर देकर लौटने के बाद गाँव के बाहर ही किसी स्कूल कालेज में 14 दिन क्वारंटीन भी रहना पड़ेगा।

बीएचयू में धरने पर बैठे छात्र के स्वास्थ्य की ज़िम्मेदारी किसकी?

खैर, बीएचयू में धरने पर बैठे छात्र के स्वास्थ्य की ज़िम्मेदारी किसकी होगी, एक सवाल यह भी है। मामले में प्रशासन की राय लेने के लिए हमने उन्हें कॉल किया लेकिन अबतक कोई जवाब नहीं मिला है।

प्रवेश परीक्षा का विरोध करते स्टूडेंट्स, तस्वीर साभार: YKA यूज़र

अब बात आती है सरकार की भूमिका की। इसके लिए आप पहले यह तीन तथ्य ध्यान से पढ़िए;

ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि क्या स्टूडेंट्स के स्वास्थ्य की चिंता सरकार को नहीं है? अगर है, तो क्या सरकार को यह सुनिश्चित नहीं करना चाहिए?

आज बी.एच.यू प्रवेश परीक्षा के छात्रों की बात से साफ है कि उन्हें सरकार की व्यवस्था और वादों पर भरोसा नहीं है। स्टूडेंट्स को परीक्षा के बाद यदि कोरोना संक्रमण होता है, तो इसकी ज़िम्मेदारी कौन लेगा? स्वास्थ्य व्यवस्था किस तरह चरमरा चुकी है, हम सब देख ही रहे हैं।

क्या ऐसे में, किसी भी तरह की प्रवेश परीक्षाएं करवाना एक बड़ी तादाद में संक्रमण को न्यौता देने जैसा नहीं है? क्या सरकार बस परीक्षा करवाकर अपना काम खत्म करना चाह रही है? क्योंकि एक बात तो साफ है कि क्लास तो अभी बिल्कुल नहीं चल पाएगी, तो आखिर प्रशासन को परीक्षाएं कराने की इतनी जल्दी क्यों है?

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