कोल ऐश रिपोर्ट 2020 के मुताबिक, भारत में पिछले एक दशक के दौरान प्रमुख कोल ऐश पॉन्ड में 76 दुर्घटनाएं दर्ज़ की गई हैं। दरअसल, कोयला राख प्रबंधन पर केन्द्रित इस अध्ययन में कहा गया है कि दुर्घटनाओं के कारण राख तालाबों के पास स्थित जल संसाधनों के प्रदूषित होने के साथ-साथ यहां की वायु से लेकर मिट्टी भी बुरी तरह से प्रभावित हुई है।
सीधे शब्दों में कहा जाए तो कोल ऐश पॉन्ड और उनमें होने वाली दुर्घटनाओं की वजह से जल, स्वाइल एवं वायु में बढ़ते प्रदूषण ने क्षेत्र के वातावरण को नरक में तब्दील कर दिया है।
गुज़रे एक दशक में हर साल भीषण फ्लाई ऐश डाईक यानी कोयले की विषैली राख के तालाब में दुर्घटनाओं का होना आम बात है। इन दुर्घटनाओं से खेत बंजर भी बंजर हुए, नदियों का पानी विषाक्त हुआ और तो और लोगों का अपनी जान से हाथ धोना सब आम बातें हैं।
अफसोसजनक यह है कि इन दुर्घटनाओं की अनदेखी और इन्हें नज़रअंदाज़ किये जाने का सिलसिला दस सालों से जस का तस जारी है।
फ्लाई ऐश क्यों जानलेवा है?
10 अप्रैल 2020 को सिंगरौली में रिलायंस की मलकियत का हिस्सा यानी राखड़ का बांध टूटा और गाँव में “राख की सुनामी” आ गई। इस हादसे से छह लोगों ने जान गंवाई और साथ ही कई मकान भी राख के दलदल में नस्तनाबूत हो गए।
गौरतलब है कि कोल ऐश पॉन्ड में बिजली संयंत्रों में कोयले के जलने के बाद निकली फ्लाई ऐश को जमा किया जाता है।दरअसल, फ्लाई ऐश एक खतरनाक प्रदूषक है जिसमें अम्लीय, विषाक्त और रेडियोधर्मी पदार्थ तक होते हैं।
इस राख में ना सिर्फ सीसा, आर्सेनिक, पारा और कैडमियम जैसे तत्व हैं, बल्कि इसमें यूरेनियम की मौजूदगी भी हो सकती है। स्वास्थ्य के मद्देनज़र यह जानलेवा होने के साथ ही फ्लाई ऐश धरती को भी भी प्रदूषित कर देती है, जिसके दुष्परिणाम लम्बे समय बाद दिखाई देते हैं।
क्या कहता है अध्यन?
हेल्थी एनर्जी इनिशिएटिव इंडिया और कम्युनिटी एनवायरमेंटल मॉनिटरिंग की ताज़ा अध्यन के अनुसार, 2010 से जून 2020 के बीच देशभर में 76 प्रमुख फ्लाई ऐश डाईक दुर्घटनाएं हुई हैं। इन दुर्घटनाओं में जन-माल के नुकसान के साथ जल स्रोत, वायु और मिट्टी भी प्रदूषित हुई हैं।
आंकड़ों पर नज़र डाली जाए तो ऐसी घटना पिछले एक दशक में हर दूसरे महीने लगभग 1 से अधिक बार घटित होती प्रतीत होती है। फ्लाई ऐश के बिखरने की बहुत सारी दैनिक घटनाएं संज्ञान में ही नहीं आती हैं। रही बात आंकड़ों की तो यह समस्या की एक झलक भर हैं।
सबसे अधिक सांद्रता वाले कोयला आधारित थर्मल पावर प्लांट में मध्य प्रदेश, ओड़िशा, झारखंड, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र जैसे राज्य कोयला प्रधान राज्य राख दुर्घटनाओं की सूची में शीर्ष पर हैं। इसकी एक वजह यह है कि ये राज्य बड़ी संख्या में बिजली संयंत्र नदियों या तट जैसे जल निकायों के करीब स्थित हैं। इसलिए सामान्य राख का निर्वहन तालाबों को दरकिनार करते हुए सीधे उनमें प्रवाहित होता है।
हेल्थी एनर्जी इनिशिएटिव इंडिया की समन्वयक श्वेता नारायण कहती हैं, “खनन और कोयला राख ने अपनी तरफ ध्यान आकृष्ट किया है मगर राख और उसके निस्तारण के तरीके पर गौर करना अभी भी शेष है। जनता का गुस्सा कोयला राख प्रदूषण से संबंधित बड़ी दुर्घटनाओं तक ही सीमित है।
राख तालाब के निकट बसे समुदायों में घुलता धीमा ज़हर आज भी संज्ञान में नहीं लिया जाता है। यह रिपोर्ट भारत में कोल ऐश प्रबंधन और उसके स्वास्थ्य और पर्यावरण पर पड़ रहे दुष्प्रभाव के बारे में बताती है।
फ्लाई ऐश से होने वाली प्राणघातक बीमारियां
विद्युत मंत्रालय के केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के अनुसार, भारत में 2018-19 में 217.04 मिलियन मेट्रिक टन राख उत्पन्न हुई। कोयले की राख में ज़हरीले रसायन जैसे- आर्सेनिक, एल्युमिनियम, सुरमा, बेरियम, कैडमियम, सेलेनियम, निकेल, सीसा और मॉलिब्डेनम जैसे कार्सिनोजेंस तत्व होते हैं।
विषाक्त भारी धातु की वजह से बढ़ते कैंसर के जोखिम के साथ-साथ फेफड़े और हृदय की समस्याओं से लेकर पेट की बीमारियों का भी कारण यह फ्लाई ऐश हैं।
ऐश डाईक के कारण मृत्यु दर भी बढ़ सकती है। छत्तीसगढ़ में कोल ऐश पॉन्ड के करीब रहने वाले समुदायों पर किए गए स्वास्थ्य अध्ययन से पता चला है कि बालों के झड़ने, जोड़ों का दर्द, शरीर में दर्द, पीठ दर्द, सूखी खुजली, रक्तविहीन सूखी त्वचा, फटी एड़ी, दाद, सूखी खांसी और किडनी सम्बंधी शिकायतों में वृद्धि हुई है। किडनी और गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल शिकायतों के मामले भी सामने आए हैं।
कैंब्रिज (यू के) के हेल्थ केयर सलाहकार डॉक्टर मनन गांगुली ने कहा, “कुल मिलाकर कोल ऐश नुकसानदेह ना दिखते हुए भी एक धीमा ज़हर है। आमतौर पर कोयले की राख में अन्य कार्सिनोजेन और न्यूरोटॉक्सिंस के साथ शीशा, पारा, सेलेनियम, हेक्सावेलेंट, क्रोमियम होते हैं। अध्ययन में कर्मियों और जनता के लिए जोखिम में फ्लाई ऐश को भी विकिरण जोखिम के साथ जोड़ा गया है। कोयले को ना जलाना ही सुरक्षित रहने का एकमात्र विकल्प है।”
बचाव के लिए विशेषज्ञों के मशवरे
जवाबदेही तय करना और यह सुनिश्चित करना कि कोयले को जलाने और कोयले की राख बनाने वाले बिजली संयंत्र सुरक्षित प्रबंधन और उसके उपयोग, निस्तारण और पुनः उपयोग से निकलने वाले पर्यावरणीय स्वास्थ्य प्रभावों की ज़िम्मेदारी लें।
पावर प्लांट्स के पास रहने वाले समुदायों को साथ लेकर एक प्रभावशाली निगरानी प्रणाली का निर्माण किया जाना चाहिए। इससे उत्पादित राख के संपूर्ण निस्तारण के लिए उत्तरदायी हो। इसके बावजूद अगर पर्यावरण में राख का निर्वहन होता है, तो प्रदूषण भुगतान सिद्धांत के तहत स्वास्थ्य और पर्यावरण क्षतिपूर्ति की व्यवस्था की जानी चाहिए।
भारत को ऐश पॉन्ड की वैज्ञानिक रोकथाम के लिए नियमों को विकसित करने की तत्काल आवश्यकता है। इसके लिए अभेद्य एच डी पी लाइनर्स के साथ मौजूदा राख के तालाबों को फिर से बनाने और पर्यावरणीय मंज़ूरी के साथ राख की वैज्ञानिक लैंडफिलिंग की आवश्यकता है।
सभी राख प्रदूषित स्थलों का निदान राष्ट्रीय कार्यक्रम NPRPS के पुनर्वास कार्यक्रम के तहत MOEFCC द्वारा विकसित मार्गदर्शन दस्तावेज़ के अनुसार किया जाना चाहिए।
पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह कोयला राख प्रदूषण फैलाने वालों पर कठोर दंड शुल्क लगाई जानी चाहिए।