आज से एक साल पहले, 5 अगस्त, 2019 के दिन भारत सरकार ने कश्मीर से धारा 370 को खत्म कर दिया था। इस फैसले से काफी लोगों को खुशी हुई, तो काफी लोग इसके खिलाफ भी थे।
इस बीच न्यूज़ चैनलों को एक अच्छी TRP मिल गई लेकिन सवाल यह पैदा होता है कि इस फैसले से कश्मीर के लोगों को और उनकी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में क्या असर पड़ा? यह फैसला लेने के बाद सरकार ने काफी बड़े-बड़े वादे किए थे और अब एक साल पूरा होने के बाद सरकार इसे त्यौहार की तरह मना रही है।
किसी भी फैसले की सफलता को हम तब ही मान सकते हैं जब उस फैसले का उद्देश्य पूरा हो, तो क्या सरकार ने जो वादे किए थे? जैसे इकॉनमी, सेफ्टी और शांती बहल करने की बात, क्या वह वादे पूरे हुए? तो जवाब है नहीं। अब ऐसा हुआ क्यों? आखिर सरकार हर मुद्दे पर विफल क्यों हुई?
क्या हुआ था 5 अगस्त को?
5 अगस्त, 2019 के दिन जहां हम हमारी नॉर्मल ज़िंदगी जी रहे थे, वहीं कश्मीर में 4 अगस्त से ही हलचल मची हुई थी। 5 अगस्त की सुबह संसद में देश के गृहमंत्री अमित शाह ने कश्मीर से धारा 370 को हटाने की घोषणा कर दी। कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया गया।
सरकार ने एक लम्बी चौड़ी लिस्ट बनाते हुए बताया था कि धारा 370 हटने के बाद जम्मू कश्मीर में औद्योगीकरण बढ़ेगा, कश्मीरी युवाओं के लिए नौकरी के अवसर बढ़ेंगे। यही नहीं उन्होंने कहा कि पर्यटन, लघु उद्योगों को भी फायदा होगा। साथ ही अनुसूचित जाति को भी फायदा मिलेगा लेकिन प्रत्यक्ष रूप से सरकार ने रातोंरात वहां लॉकडाउन कर दिया।
क्या असर पड़ा इकॉनमी पर?
धारा 370 हटने के बाद देश के कई इलाकों में एक जश्न का माहौल बना था लेकिन उसके बाद कश्मीर की इकॉनमी का क्या हुआ? वैसे ही हमारी मीडिया हमें पूरे देश की इकॉनमी से खुदो को दूर रखती है, तो कश्मीर की इकॉनमी के बारे में दिखाने की कोई वजह उनके पास नहीं हो सकती।
धारा 370 हटने के बाद दिसंबर 2019 तक कश्मीर की इकॉनमी को कुल 15 हज़ार करोड़ से ज़्यादा का नुकसान हुआ। इस बीच वहां पहले से ही लॉकडाउन था और फिर आया कोरोना काल। कश्मीर के एक अखबार KCCI के मुताबिक, पिछले एक साल में कश्मीर को अबतक चालीस हज़ार करोड़ का नुकसान झेलना पड़ा है।
कश्मीर में नए जॉब्स मिलना तो दूर की बात है, बल्कि इन सब के चलते लघु उद्योग, पर्यटन और इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी में नब्बे हज़ार जॉब्स का नुकसान हुआ है। जून 2019 में जम्मू कश्मीर में बेरोज़गारी दर 15.89% थी जो कि देश में सबसे कम रही।
आज वहां लाखों युवा दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। 23,000 से ज़्यादा सरकारी नौकरियां खाली पड़ी हैं। पर्यटन व्यवस्था भी ठप हो चुकी है।
8000 करोड़ वाले कश्मीर की सेब इंडस्ट्री को इससे सबसे ज़्यादा चोट पहुंची। जिससे देश की जीडीपी पर भी भारी असर हुआ होगा लेकिन इससे सरकार के उत्सव पर कोई असर नहीं पड़ा। छोटे-बड़े सारे कारोबारी इससे परेशान हैं। लद्दाख में भी स्टूडेंट्स रिलीजियस बॉडी और पॉलिटिकल ग्रुप्स ने बढ़ती बेरोज़गारी के खिलाफ विरोध किया।
शिक्षा और रोज़गार पर क्या असर पड़ा?
सरकार ने कहा था कि जम्मू और कश्मीर के बच्चों को बेहतर शिक्षा और नौकरी का अवसर मिलेगा। इसके चलते कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने धारा 370 हटने के कुछ समय बाद जम्मू और कश्मीर के लिए एक यूथ पैकज दिया। इस पैकेज के अंदर 50 हज़ार युवाओं को नौकरी देने का वादा किया गया था लेकिन इस पैकेज से रिलेटेड किसी भी जॉब्स की स्कीम अभी तक सामने नहीं आई है।
5 अगस्त के बाद 100 दिनों से ज़्यादा कश्मीर में इंटरनेट बंद था और अभी तक वहां 2जी स्पीड का इंटरनेट चल रहा है। जिस वजह से वर्क फ्रॉम होम या ऑनलाइन पढ़ाई बिल्कुल नहीं हो पा रही है। कश्मीर में अभी तक जानकारी मिलने का कोई स्रोत नहीं है। नई जॉब्स तो दूर की बात, लोग खाली नौकरियों पर भी अप्लाई नहीं कर पा रहे हैं और ना ही कोई परीक्षा दे पा रहे हैं।
क्या है न्यू मीडिया पॉलिसी?
कोई भी मीडिया हिंसा फैलाएगा, देश की एकता पर सवाल उठाएगा, पब्लिक डेसेन्सी के नियमों का पालन नहीं करेगा तो उसे कोई विज्ञापन नहीं मिलेगा। इसके अलावा गलत, अनैतिक या फिर देश के खिलाफ न्यूज़ फैलाने वालों का लाइसेंस और सारे अधिकार छीन लिए जाएंगे।
वैसे बहुत सारे पत्रकारों को सरकार पहले ही जेल की हवा खिला चुकी है लेकिन अब इसके खिलाफ कानून भी बना दिया गया है। इसमें क्या देश विरोधी और अनैतिक है, यह सब नहीं बताया गया है। यह सब इनफॉर्मेशन डिपार्टमेंट पर छोड़ दिया गया है।
कश्मीर की शांति
आखिर में देखते हैं कि कश्मीर में किया गया सरकार का सबसे बड़ा वादा यानी कश्मीर में शांती बहाल करने का वादा कितना सफल रहा है। धारा 370 के हटने से सरकार का मानना था कि इससे आतंकवाद पर रोक लग जाएगी।
पाकिस्तान को गहरी चोट लग जाएगी लेकिन अब तो चीन ने भी अपनी एक सीट पकड़ ली है और भारत सरकार की मुश्किलें कम होने के बजाय बढ़ रही हैं। सिर्फ सीमा पर ही नहीं बल्कि, यूनाइटेड नेशंस में भी चीन कश्मीर में हो रहे ह्यूमन राइट्स वॉयलेशन सरकार की मुसीबतें बढ़ा रहे हैं।
इसके अलावा आतंकवाद में भी कमी की जगह 2019 में, 2017 और 2018 से ज़्यादा बढ़ोतरी देखी गई है। 2020 की शुरुआती रिपोर्ट्स को देखें तो तस्वीर और भी खराब हो सकती है।
हाल ही में दी गई ह्यूमन राइट्स फोरम की रिपोर्ट में बताया गया है कि कश्मीर में PSA, UAPA लगाकर लोगों को बिना बेल के ट्रायल जेल में रखा जा रहा है। उधर लद्दाख के लोगों का कहना है कि सरकार ने उन्हें एक लॉ वाले स्टेट में छोड़ दिया है और उनके राइट्स बचाने के लिए नए कानून की ज़रुरत है।
आज इस फैसले के एक साल बाद कश्मीर में नॉर्मल ज़िंदगी दिख पाना करीब ना के बराबर है। हर बार की तरह सरकार भी और हम भी इस मुद्दे को भुला चुके हैं। विकास और देशभक्ती के नारों के बीच कश्मीर में हुए अत्याचार, मासूम बच्चों की ज़िंदगी का रुक जाना यह सब हम भूल चुके हैं।
अब एक साल बाद हमें यह भी सोचना चाहिए कि जिस मकसद को पूरा करने के लिए सरकार ने कश्मीरियों को उनके ही घर में कैद करके रखा है वह मकसद पूरा हुआ है क्या? क्या वह मकसद भुला दिया गया है?
आज मैं आपको याद दिलाना चाहूंगा कि जहां हम 4 महीनों से घर में बैठकर जो ज़िंदगी जी रहे हैं कश्मीर के लोग अपने ही राज्य में 1 साल से कैदी होकर बैठे हैं। वह भी बिना इंटरनेट के। मुद्दा बहुत गंभीर है परंतु उठाना ज़रुरी है क्योंकि अभी 1 साल हुआ है सरकार के इस मास्टर स्ट्रोक का। अब आने वाले दिनों में देखना होगा कि कश्मीर में कुछ रहत मिलती है कि समस्या और गंभीर होती है।