हिन्दी, भारत की राजभाषा है। ऐसा आपको भारत सरकार की ऑफिशियल बेवसाईट पर आसानी से देखने को मिल जाएगा। यदि आप यह देखना चाहते हैं कि आज हिन्दी भाषा की वास्तविक स्थिति क्या है? तो आप सीधे संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) के सिविल सर्विसेज के परीक्षा परिणामों को उठाकर देख लीजिए, आपको पता चल जाएगा कि शायद गलती से भारत सरकार ने हिन्दी को राजभाषा का दर्ज़ा दे दिया है।
अभी हाल ही में संघ लोक सेवा आयोग ने सिविल सर्विसेज परीक्षा 2019 का परिणाम जारी किया है जिसमें कि हिन्दी माध्यम के विद्यार्थियों की स्थिति बड़ी ही दयनीय दिखाई दे रही है।
नहीं है टॉप 100 में कोई भी हिंदी स्टूडेंट
हिन्दी माध्यम का एक भी विद्यार्थी ऐसा नहीं है जो कि इस परिणाम में टॉप-10, टॉप-100 या फिर टॉप-200 रैंक तक में भी आया हो और यही हाल संघ लोक सेवा आयोग के 2018 के सिविल सर्विसेज परीक्षा परिणामों में भी देखा गया था। मतलब साफ है कि अब हिन्दी माध्यम से आईएएस अफसर बनने की संभावनाएं बहुत ही कम या फिर नगण्य जैसी स्थिति में होती जा रही हैं।
ऐसा बिल्कुल भी नहीं है कि हिन्दी माध्यम के विद्यार्थी संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा देने के लिए पर्याप्त मेहनत नहीं करते या फिर स्मार्ट तरीके से स्टडी नहीं करते। अगर ऐसा होता तो इससे पहले के पिछले वर्षों में भी हिन्दी माध्यम के विद्यार्थियों का चयन नहीं होता।
तो फिर सवाल यही उठता है कि आखिर ऐसी कौन-सी कमियां हैं जिनकी वजह से हिन्दी माध्यम का परिणाम लगातार नीचे की ओर गिरता जा रहा है?
जटिल अनुवाद है बड़ा मसला
यूपीएससी में हिन्दी माध्यम के कम चयन होने की सबसे बड़ी वजह ‘’हिन्दी अनुवाद’’ को माना जाता रहा है। यूपीएससी का हिन्दी अनुवाद कभी-कभी इतना जटिल हो जाता है कि उस अनुवाद को एक आम विद्यार्थी तो छोडि़ए, शिक्षक तक भी समझ नहीं पाते हैं।
जैसे कि ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ से हम सभी भली-भांति परिचित है लेकिन यूपीएससी द्वारा बनाए गए प्रश्न-पत्र में ‘सर्जिकल-स्ट्राईक’ को ‘शल्यक प्रहार’ लिखा जाता है। इसी क्रम में अगर हम अन्य उदाहरण देखें तो ये भी यूपीएससी द्वारा हिन्दी में किए गए अनुवाद हैं,
- भारत में संविधान के संदर्भ में, सामान्य विधियों में अंतर्विस्ट प्रतिषेध अथवा निर्बंधन अथवा उपबंध, अनुच्छेद 142 के अधीन सांविधानिक शक्तियों पर प्रतिरोध अथवा निर्बंधन की तरह कार्य नहीं कर सकते।
- ‘वार्महोल’ से होते हुए अंतरा-मंदाकिनीय अंतरिक्ष यात्रा की संभावना की पुष्टि हुई।
- यूएनसीएसी अब तक का सबसे पहला विधित: बाध्यकारी सार्वभौम भ्रष्टाचार विरोधी लिखित है।
जरा सोचिए, यूपीएससी के जिस अनुवाद को समझने में बड़े-बड़े शिक्षकों को भी दिक्कत पेश आती हो, क्या ऐसे अनुवाद को एक सामान्य भाषाई पृष्ठभूमि का विद्यार्थी समझ सकता है? यदि नहीं, तो फिर अंत में इसका परिणाम यही होता है कि स्टूडेंट्स की सालों की कड़ी मेहनत केवल एक भाषाई अनुवाद की वजह से ही धरी की धरी रह जाती है।
सामान्य पढ़ाई के दिनों में इतनी जटिल भाषा नहीं तो यूपीएससी का परीक्षा में क्यों?
एक साधारण से परिवार में जन्म लेने वाला और सरकारी स्कूल-कॉलेज में पढ़ाई करने वाला बच्चा आखिर इतने कठिनतम अनुवाद को भला कैसे समझ सकता है? क्या इस पर बात नहीं होनी चाहिए? जिस बच्चे ने इतनी जटिल हिन्दी अपने शिक्षा के करियर में कभी पढ़ी ही ना हो या उसे पढ़ाई ही ना गई हो, तो भला वह यूपीएससी की परीक्षा में इतने जटिल शब्दों को कैसे समझ सकता है?
एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, 2011 तक जहां हिन्दी माध्यम से यूपीएससी की मुख्य परीक्षा देने वाले विद्यार्थियों का प्रतिशत 35-40% तक था आज वह प्रतिशत घटकर केवल 2-3 प्रतिशत तक ही सिमट गया है। क्या यह भारत के लिए अच्छी स्थिति है?
हमारा ईरादा यूपीएससी को गलत तरीके से पेश करने का बिल्कुल भी नहीं है। बस, हम इतना चाहते हैं कि यूपीएससी में हिन्दी माध्यम के चयन ना होने की एक वजह जिस तरह से जटिल हिन्दी अनुवाद को माना जा रहा है, उसी तरह यदि कोई और भी वजह हैं तो यूपीएससी को इसे जल्दी से जल्दी ठीक करना चाहिए।
भाषा निभाती है एक बड़ी भूमिका
भारत के संविधान में सभी मुख्य रूप से 22 भाषाओं को स्थान दिया गया है। ऐसा इसलिए किया गया है, क्योंकि भाषा ही वह एक माध्यम है जिसके द्वारा उस विशेष भाषा को बोलने वालों के विचारों और उनकी भावनाओं को गहराई से समझा जा सके।
यदि किसी विशेष भाषा के लोगों की समस्याओं को कोई अन्य भाषा को बोलने और समझने वाला व्यक्ति सुने, तो यह संभावना अधिक है कि वह उनकी समस्याओं का निराकरण ही ना कर पाए। भाषा ही वह एक माध्यम है जिसके द्वारा हम लोगों की मुख्य समस्याओं को हल कर सकते हैं, यदि हम उस भाषा को बोलने और समझने में सक्षम हों।
उदाहरण के तौर पर यदि कोई आईएएस अधिकारी केवल अंग्रेजी या अन्य भाषा में सहज है, तो यह अधिक संभावना है कि वह हिन्दी भाषा या अन्य भाषा के लोगों की समस्याओं को ठीक से समझ ही ना पाए या उनकी समस्याओं के निराकरण तक ही ना पहुंच पाए। क्योंकि किसी भी समस्या का समाधान निकालने की सबसे पहली शर्त ही यही है कि उस समस्या को ठीक से समझा जाए।
ऐसा कहा भी गया है कि यदि आप एक आदमी से उस भाषा में बात करतें है, जो वह समझता है तो वह उसके दिमाग में जाएगी और यदि आप उससे उसकी ही भाषा में बात करतें है, तो वह बात उसके दिल में जाएगी।
भारत में हर वर्ष 10 सितम्बर को राष्ट्रीय हिन्दी दिवस और 10 जनवरी को अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है लेकिन वास्तव में हिन्दी का अभी तक कितना संरक्षण किया गया है, यह आज के यूपीएससी के परीक्षा परीणामों में देखने को मिल रहा है।