बात मेरे बचपन की है। हर साल घर पर अखंड रामायण का पाठ किया जाता था। उसी दौरान मेरी नानी ने मुझे बताया कि श्री राम चरितमानस में एक चीज़ छुपी है। मुझे अचरज हुआ कि भला पूजा की पुस्तक में क्या छुपा हो हो सकता है?
उन्होंने बताया कि उसमें श्री राम प्रश्नावली हैं, जो कि तुलसीदास जी ने बनाई है। अपने इष्ट का मनन कर श्री राम से जो पूछो वो उत्तर ज़रूर देते हैं।
मैंने कहा वाह फिर बात ही क्या है! सुच कहूं तो उस रहस्यमयी पहेली ने मेरे बहुत से संदेह दूर किए। मैं उन दिनों कोई भी काम श्री राम से पूछे बिना नहीं करती थी। आज अचानक रामचरित मानस पर नज़र पड़ते ही ज़हन में उठते हुए सवालों ने मुझे उत्तर मांगने पर मजबूर कर दिया।
मेरे सवाल तो बहुत थे मगर इस लेख को लिखते वक्त तक मैंने केवल एक सवाल पूछा है, जो पूरे भारत को पूछना चाहिए।
सवाल मेरा इतना था कि हे श्री राम, क्या इस संकट की घड़ी में जहां पूरे संसार में लाखों लोग एक विपदा में फसे हुए हैं, लोगों की नौकरियां जा रही हैं, बच्चे भूखे मर रहे हैं, कहीं बाढ़ घरों को डुबो रही है, क्या आपको उचित लगता है कि आपका भव्य मंदिर बनना चाहिए? यदि आपको मंदिर बनाने का कार्य दिया जाता तो आप क्या करते?
प्रश्नावली के आधार पर यह चौपाई उत्तर के रूप में आती है-
बिधि बस सुजन कुसंगत परहिं। फनी मन सम निज गन अनुसरहीं।
अर्थात खोटे मनुष्यों का संग छोड़ दो, कार्य पूर्ण होने में संदेह है।
उक्त चौपाई बालकाण्ड के शुरू में आपको मिल जाएगी। खैर, आती हूं सरकार की ज़िम्मेदारियों पर! भगवान राम से तो जो प्रश्न पूछने थे, उन प्रश्नों को सूचिबद्ध तरीके से मैंने पूछ लिए मगर सत्ता को भी यह बताना बेहद ज़रूरी है कि देश जब भयानक संक्रमण से जूझ रहा है, ऐसे में राम मंदिर निर्माण के लिए ज़ोर आज़माइश क्यों?
क्या राम मंदिर निर्माण होने के बाद श्री राम, हम सबके महामारी को खत्म कर देंगे? क्या गरीबी, बेरोज़गारी वगैरह से हमें मुक्ति मिल जाएगी? एक स्वस्थ्य लोकतंत्र में सत्ता से और देश में हो रही गलत चीज़ों पर मुखर होकर सवाल पूछना बेदह ज़रूरी है।