05 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अयोध्या में राम जन्मभूमि के शुभ अवसर पर भाषण दिया। इस दौरान उन्होंने कुछ ऐसा भी कहा, जो बतौर प्रधानमंत्री उनसे उम्मीद नहीं की जा सकती थी।
उन्होंने 5 अगस्त की तुलना 15 अगस्त से करते हुए कहा,
हमारे स्वतंत्रता संग्राम के दौरान सभी ने हमारी स्वतंत्रता के लिए बलिदान दिया। जिस तरह 15 अगस्त स्वतंत्रता के लिए हमारे संघर्ष के अंत का प्रतीक है, वैसे ही राम मंदिर के लिए भी कई लोगों ने बलिदान दिए हैं।
मेरा मानना है कि किसी भी भारतीय को यह बयान मंज़ूर नहीं होना चाहिए, क्योंकि कुछ भी आज़ादी की लड़ाई के बराबर नहीं हो सकता है, फिर चाहे वह कोई भी आंदोलन हो। हम भी राम मंदिर बनने से खुश हैं मगर राम मंदिर आंदोलन को भरतीय स्वाधीनता आंदोलन से जोड़ा नहीं जा सकता है।
राम मंदिर या बाबरी मस्जिद आंदोलन की सबसे बड़ी सच्चाई यह भी है कि इसमें हिंदुस्तानियों के हाथों हिंदुस्तानी ही मारे गए थे। मुंबई के दंगे में सरकारी आंकड़े के मुताबिक 900 लोगों ने अपनी जान गंवाई। दिसंबर 1992 से जनवरी 1993 तक मुम्बई फूंक फूंककर जल गई। सिर्फ मुम्बई में ही नहीं, बल्कि पूरे भारत में 2000 बेगुनाह हिन्दुस्तानियों को अपनी जान गंवानी पड़ी।
उनकी मौत के एकमात्र कारण हिंदुस्तानी ही थे। भारत की एकजुटता और धर्मनिरपेक्षता पर इन कातिलों द्वारा कालिख पोत दी गई। ये वही चीजें थीं जिन्होंने भारत को ब्रिटिश साम्राज्यवाद से आज़ादी दिलाई। यह एक ऐसी याद है जिसे भुलाने की कोशिश आज भी हिंदुस्तानी कर रहे हैं। यह खून-खराबा सर्फ एक तरफ से नहीं, बल्कि दोनों तरफ से हुआ था।
हर किसी ने इसे अपने धर्म का मुद्दा बना दिया था। किसी को देश की परवाह ही नहीं थी। भगवान राम ओर पैगम्बर, जो बिना किसी वजह अपने दुश्मन को चांटा भी नहीं मरते थे, खुद को उनका अनुयायी बताने वालों ने एक-दूसरे को काट डाला और पूरी दुनिया हमारे मुंह पर थूकने लगी।
एक हमारा भारतीय स्वाधीनता आंदोलन था, जब पूरा भारत साथ था। एक साथ कभी हड़ताल, कभी किसान आंदोलन, कभी असहयोग आंदोलन या फिर भारतीय राष्ट्रीय सेना द्वारा भारत की आज़ादी के लिए लड़ा गया युद्ध। इन सब में भारतीय एक साथ एक मुट्ठी बन अपने दुश्मन पर वार कर रहे थे।
सांप्रदायिकता का कहीं कोई ज़िक्र नहीं था। सिर्फ भाईचारा था, वह भाईचारा जिसके बारे में कईयों ने भविष्यवाणी की थी कि यह लोकतंत्र नहीं टिकेगा मगर भारतीय आंदोलन से निकली प्रेरणा ही थी कि आज भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, जिसको देखकर दुनिया हैरान होती है क्योंकि ब्रिटिश साम्राज्यवाद से आज़ादी पाने वाले कई देशो में लोकतंत्र कई साल ना के बराबर रहा।
5 अगस्त को कश्मीर से अनुच्छेद 370 भी हटाया गया, जो एकदम सही फैसला था। मेरा मानना है कि किसी भी राज्य के अधिकार भारत में बाकी राज्यों से ज़्यादा नहीं होने चाहिए। वहीं, लद्दाख को वो मिला जो उनका हक था। दूसरी तरफ कश्मीर से अनुच्छेद 370 तो हटा लिया गया मगर लंबे वक्त तक कुछ पाबंदियां लग गईं।
एक साल से कश्मीरी लोग कर्फ्यू में जी रहे हैं, क्योंकि आतंकियों और सुरक्षा बलों के बीच जंग जारी है। वहां के बच्चो की पढ़ाई का एक साल बर्बाद हो गया है, क्योंकि आतंकियों की वजह से हम उन्हें 4G इंटरनेट की सुविधा नहीं दे पा रहे हैं।
उनका ऑनलाइन क्लास भी बाधित हो रहा है। कश्मीर चैम्बर ऑफ कॉमर्स और इंडस्ट्री ने दिसंबर 2019 में एक रिपोर्ट छापी, जिसमें यह लिखा था कि जम्मू कश्मीर की अर्थव्यवस्था को 18000 रुपये करोड़ का नुकसान हुआ है।
कुछ जानकर मानते हैं कि अब तक नुकसान 40,000 करोड़ रुपये का हो गया है। टूरिज़्म 85% घट गया है और राज्य में सरकार नहीं है। मतलब जो अधिकार हमें 15 अगस्त को मिले थे, उनमें कई अधिकार आज कश्मीरियों के पास नहीं हैं, तो 5 अगस्त की तुलना फिर 15 अगस्त से करना किस हिसाब से जायज़ है?
भारत के प्रधानमंत्री के लिए भारत की आज़ादी का आंदोलन सबसे श्रेष्ठ होना चाहिए। इससे ऊपर कुछ नहीं हो सकता है और उन्हें अपने इस विचार पर सोचना चाहिए।