सेवा में,
माननीय प्रधानमंत्री महोदय (प्रधानसेवक)
भारत सरकार, नई दिल्ली
श्रीमान, सबसे पहले मैं आपको कोटि-कोटि धन्यवाद देता हूं कि आप और आपका मंत्रिमंडल इस महामारी के वक्त भी दिन-रात काम कर रहे हैं। दुनिया के नक्शे पर भारत का मान भी खूब बढ़ा रहा है। कल तक जहां दुनिया भारत को एक बाज़ार के रूप मे देखती थी, वहीं आज भारत आशा और उम्मीद की एक नई किरण बन कर उभर रहा है।
गत 6 सालों में आपकी सरकार ने सैकड़ों योजनाओं को अमलीजामा पहनाया और सैकड़ों को हटाया ताकि हमारा देश उन्नति की राह पर और अग्रसर हो सके।
माननीय, मैं एक आशावादी इंसान हूं और आशा करता हूं कि आप आगे आने वाले समय में भी भारत का मान कम नहीं होने देंगे। इस समय पूरी दुनिया इंसानियत को बचाने में लगी हुई है और हमारा भारत इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहा है।
जब आपने अपने पड़ोसी देशों को मास्क और दवा देकर सहायता की तो दुनिया ने इसे सराहा। आपने इस मुश्किल परिस्थिति में दुनिया को हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन भेजकर यह साफ कर दिया कि आज भारत बाज़ार ही नहीं, बल्कि दुनिया का मार्गदर्शक बन सकता है। आपने ऐसे हज़ारों काम किए जिसके बारे में लिखते-लिखते बहुत समय चला जाएगा।
आजकल हमारी सरहदें पूर्ण सुरक्षित हैं, क्योंकि हमारे सैनिक भाइयों के मनोबल को आपने हमेशा उच्चतम स्तर पर रखा है। हमारी भारतीय सेना इस देश की रक्षा करने के लिए हमारे पड़ोसी देश और मानवता के दुश्मन आतंवाद से लड़ रही है।
वह आये दिन हमें खुद पर गर्व करने का मौका देती है। जब वे हमारी रक्षा करते करते अपने आप को देशहित में समर्पित कर देते हैं, तब हम गर्व से उन्हें शहीद का दर्ज़ा देते हैं।
महाशय, आज मैं आपका ध्यान एक ऐसे विषय पर लाना चाहता हूं, जो आज बस एक वोट बैंक और मनरेगा का मज़दूर बनकर रह गया है। गज़ब यह है कि वह अपने ही देश मे प्रवासी बनकर रह गया है। आपकी लाख कोशिशों के बाद भी उन तक उनका हक नहीं पहुंच पाया है।
मैं मानता हूं कि इसमें आपकी सरकार कसूरवार नहीं है। यह तो काँग्रेस के 60 सालों के शासन में छुपी लाचारी के कारण है। ये सदियों से सताये जा रहे मजबूर हैं। ये ना तो किसान हैं और ना ही जवान। इसलिए इनके नाम के आगे “जय” आज तक नहीं लगा है।
महोदय, आपने बचपन में गरीबी देखी है और उनके जीवन शैली के बारे में आपको बेहतर तरीके से मालूम होगा। आप हमेशा कहते थे कि आप फकीर हैं। कुछ हुआ तो झोला उठाकर चल देंगे मगर आपके इस वक्तव्य को आज इस देश के गरीब परिवारों ने करके दिखा दिया।
झोला उठाया और चल दिया। बिना यह सोचे कि कितना समय जाएगा? मंज़िल आते-आते हालात क्या होंगे? भूखे पेट को अन्न कहां से मिलेगा? ऐसे कई सवाल हैं, जो हमें शर्मिंदगी से मार देते हैं।
साहब, ये वे मज़दूर हैं जिन्होंने महानगरों को सही मायने में महानगर बनाया और आपके 100 स्मार्ट सिटी का सपना भी यही सच कर पाएंगे। इनका देश निर्माण में उतना ही योगदान है जितना “बोस बाबू” का था। वह भी अपना खून देकर भारत को आज़ाद करवाना चाहते थे और यह हमारा मज़दूर वर्ग भी अपना खून देकर नया भारत बनाना चाहता है।
दोनों ने अपने बारे मे कुछ नहीं सोचा बस करते चले गए। आज भी “बोस बाबू” हमारी नज़र में जननायक हैं और ये मज़दूर मेरी नज़र में तो हैं परंतु आपको इनके बारे में सोचना होगा। इनको 500 या 1000 रुपये और 30 से 40 किलो आनाज में पूरा महीना चलाना पड़ता है, जो शायद इनके साथ एक मज़ाक़ करने जैसा है।
याद रखिएगा कि पिछली सरकार ने जो किया है, आज उसे वह भुगत रही है। महोदय, यह पत्र लिखने का मेरा दो उद्देश्य है-
- अब से मज़दूर को भी “जय ” बोला जाए। जैसे “जय जवान जय किसान” बोलते हैं। अब “जय मज़दूर” बोला जाना चाहिए।
- मज़दूर के लिए एक न्यूनतम मज़दूरी दर निश्चित होनी चाहिए। उम्मीद है आप एवं आपकी टीम इस पत्र को पढ़कर मेरे द्वारा रखे गए दोनों बिंदुओं पर विचार करेगी। धन्यवाद सहित, मनीष मोहन “एक भारतीय, एक आम नागरिक और एक मज़दूर।