हम सभी को बचपन से यह बताया जाता है कि फिल्में समाज का आइना होती हैं, हम उनसे अच्छी-बुरी तमाम तरह की बातें सीखते हैं या जाने-अनजाने हमारे रवैये, स्वभाव, आचरण या बर्ताव में वे चीज़े दिखने लगती हैं। सुशांत का यूं जाना बेहद दुखद है।
यकीनन वह एक उम्दा कलाकार थे और उन्होंने अपनी मेहनत से फिल्म इंडस्ट्री में काफी नाम कमाया। सुशांत की आत्महत्या की वजह को लेकर बहुत तरह की बातें सामने आई हैं, जिनमे उनके हाथ से कई बड़ी फिल्मों का चला जाना या कुछ रसूखदार फिल्म प्रोडक्शन हॉउस द्वारा उनको ब्लैकलिस्ट किया जाना बताया जा रहा है।
कुछ लोगों ने इसको मर्डर बताया था, तो बहुतों ने यह कहा कि सुशांत को आत्महत्या के लिए उकसाया गया। इन सबको लेकर मुंबई पुलिस लगातार फिल्म डायरेक्टर्स और प्रोड्यूसर्स या सुशांत के करीबियों से पूछताछ कर रही है, तो दूसरी तरफ CBI जांच की मांग भी लगातार उठ रही है।
निश्चित ही सुशांत परेशान थे। उनके पोस्ट या उनके करीबी दोस्तों ने इस बात को साफ किया है। अभिषेक कपूर ने सुशांत को दो फिल्मों में डायरेक्ट किया और उन्होंने यह बात स्वीकारी कि ‘काई पो चे’ और ‘केदारनाथ’ के सुशांत में बहुत फर्क था।
आपको बता दें ‘काई पो चे’ सुशांत के करियर की पहली फिल्म थी जिसमें उन्होंने बेहद उम्दा अभिनय से खूब नाम और तारीफें कमाई थी। कंगना रनौत लगातार इस मसले पर बेबाकी से बोल रही हैं, तो वहीं अब कई नेता भी इस मामले को गंभीरता से ले रहे हैं।
दिल बेचारा के किरदार से बाहर निकल पाना बेहद मुश्किल
सुशांत की आखरी फिल्म ‘दिल बेचारा’ रिलीज़ हो चुकी है और उम्मीद है कि यह स्टोरी पढ़ने से पहले आप सभी फिल्म को देख चुके होंगे।
फिल्म अच्छी है या बुरी है, यह बात अब ज़्यादा मायने नहीं रखती है लेकिन अगर आपने गौर किया हो सुशांत की आखरी फिल्म के किरदार से बाहर निकल पाना किसी ऐसे इंसान के लिए बेहद मुश्किल हो सकता था जो पहले से किन्हीं कारणों से डिप्रेशन में हो।
एक किरदार जो ऐसी बिमारी से परेशान है कि उसके पास मरने के अलावा और चारा नहीं है। आसपास के जो किरदार हैं, उनके लिए भी कुछ नहीं किया जा सकता। यह एक बेहद संवेदनशील मुद्दा है लेकिन इससे पहले भी बहुत बार यह हुआ है जब एक्टर्स अपने निभाए हुए किरदार से प्रभावित हुए हों।
सबसे बड़ा उदाहरण ‘द डार्क नाईट’ में जोकर का किरदार निभाने वाले एक्टर हीथ लेजर को माना जा सकता है। ऐसा माना जाता है लेजर, जोकर के किरदार के बाद उससे बाहर नहीं निकल सके और कुछ ही महीनों बाद नशे की दवाइयों के ओवरडोज़ के कारण वह मृत पाए गए।
सुशांत ने अपने करियर में कैमिया और गेस्ट एपीयरन्स मिलकर कुल 11 फिल्मों में काम किया, जिसमे से 3 बड़ी फिल्मों के आखिर में उनके किरदार की मौत हो जाती है।
वे फिल्मे हैं ‘काई पो चे’, केदारनाथ और अब आखरी में ‘दिल बेचारा’… जब हमारे मन पर हर चीज़ का असर पड़ता है, तो निश्चित ही किसी अवसाद से ग्रसित होने पर आप ज़्यादा सोचते हैं। छोटी सी बातें आपको बड़ी लगने लगती हैं और नतीजा क्या हो सकता है यह कहना कठिन है।
दिल बेचारा के डायरेक्टर मुकेश छाबड़ा ने ही सुशांत को उनकी पहली फिल्म ‘काई पो चे’ के लिए कास्ट किया था। उन्होंने पहली बार डायरेक्शन के क्षेत्र में कदम रखा। उनकी फिल्म को बेहद प्यार भी मिल रहा है।
सुशांत ने छोटे परदे से लेकर बड़े परदे तक अच्छा काम किया था लेकिन उनकी हमेशा से तमन्ना थी बड़ी फिल्म करने और बड़े बैनर्स के साथ काम करने की।
ऐसे में उनकी मौत का सही कारण क्या बना यह जांच का विषय हो सकता है लेकिन किसी भी इंसान को ज़िन्दगी की सच्चाई किस हद तक तोड़ सकती है, यह हमने फिल्म ‘दिल बेचारा’ में देखा। सैफ अली खान का 2 मिनट का किरदार आपके सामने ज़िन्दगी की सच्चाई को नंगा कर देता है। बिना किसी नैतिकता या संवेदना के मुझे यह फिल्म देखने के बाद इससे उबरने में समय लगा।
फिल्म में सैफ अली खान का वह डायलॉग, जो भद्दा है लेकिन सच है
जब कोई मर जाता है उसके साथ जीने की उम्मीद भी मर जाती है…. मौत नहीं आती…. खुद को मारना साला इल्लीगल है तो फिर जीना पड़ता है और क्योंकि तुम्हे एक-दूसरे के सामने स्टुपिड प्रॉमिसेस करने हैं कि तुम्हारे मरने के बाद मैं हंसकर जियूंगा ….. तो फिर हंसो!
सुशांत अब हमारे बीच नहीं हैं, उनकी यादें हैं… फिल्में हैं। हमारे आस-पास ऐसे बहुत लोग हैं, हमारे दोस्त, रिश्तेदार पड़ोसी जो शायद किसी वजह से परेशान हों, कोशिश करें उनकी मानसिक स्थिति को समझें और हो सके तो उनकी मदद करें। संवेदना और नैतिकता खो चुके इस समाज में आपकी चार अच्छी बातें किसी के लिए मरहम का काम कर सकती हैं।