हाल ही में कुछ दिन पहले आखिरकार नई शिक्षा नीति सबके सामने आ ही गई। इस नीति को लेकर चर्चाओं का बाज़ार गर्म है लेकिन इस चर्चा में बहुत कम या यूं कहे नगण्य लोगों ने ही माहवारी जैसे मुद्दे पर ध्यान दिया।
भारतीय शिक्षा प्रणाली में लैंगिक समानता पर ज़ोर दिया गया है लेकिन लैंगिक समानता पर ज़ोर देने के बाद भी यदि महिलाओं की माहवारी जैसे मुद्दे पर कुछ भी ना कहा जाए, तो यह चिंता का सबब है।
स्कूलों में पीरियड्स के दौरान पैड बदलने की जगह ना होने से परेशान होती है छात्राएं
हर महिला को हर महीने पीरियड्स के कारण अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। अक्सर पीरियड्स के दौरान छात्राओं को उनके अभिभावक विद्यालय जाने से रोकते हैं। ऐसे में, उनकी शिक्षा प्राप्ति में एक प्रकार की बाधा हर महीने आती है। विद्यालयों में पैड्स बदलने के लिए एकांत स्थान की कमी छात्राओं से लेकर स्टाफ तक के लिए कभी-न-कभी समस्या का कारण बनती ही है।
ऐसे में, फिर हम लैंगिक समानता पर ज़ोर देने की बात कैसे कर सकते हैं। यद्यपि लैंगिक समानता के लिए नीति में बात कही गई है, इसके लिए कार्यक्रम शुरू करने एवं ट्रांसजेंडर तथा लड़कियों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने साथ एक निधि बनाने की बात का भी ज़िक्र है लेकिन माहवारी की उनकी विशिष्ट ज़रूरतों को पूरा करने के लिए इस निधि के उपयोग के बारे में कुछ नहीं कहा गया है।
मुझे आज भी याद है, अपनी शिक्षा के दौरान पहली बार जब हमारे शिक्षक को पीरियड्स पर जानकारी देनी थी, तो उन्होंने संकोच वश बहुत ही सीमित तरीके से उसके बारे में बताया था और यह कहते हुए अगले अध्याय पर बढ़ गए कि यह अध्याय परीक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण नहीं है।कमोबेश यही हाल आज भी है।
पीरियड्स पर बात करने में आज भी हिचकते हैं लोग
आज भी लोग पीरियड्स जैसे मुद्दे पर चुप्पी तोड़ने में हिचकिचाते हैं। सवाल यह है कि शिक्षा नीति पर जब लोगों की राय मांगी जा रही थी क्या उस समय किसी नें पीरियड्स पर अपनी राय नहीं दी। अगर ऐसा है, तो यह निश्चित ही हमारी चुप्पी की ओर इशारा करती है।
पूरी शिक्षा नीति में मासिक धर्म, पीरियड्स जैसे मुद्दों पर स्पष्ट बात नहीं की गई है। जबकि पीरियड्स जैसे मुद्दे को, जबकि उसके बारे जानकारी बढ़ी हो कि इससे अनेक घातक बीमारियां, चर्म रोग आदि होते हैं, इसमें ज़रूर शामिल करना चाहिए था।
साथ ही महिला स्टाफ के लिए विद्यालयों में पीरियड्स की समस्या के समाधान हेतु उचित व्यवस्था हो सके आदि इसको भी ध्यान में रखना चाहिए था।
पाठ्यक्रम में पीरियड्स को वृहद रूप में करना चाहिए था शामिल
पाठ्यक्रम में भी पीरियड्स को बृहद स्तर पर शामिल करने की ज़रूरत थी। अगर छात्राओं को पीरियड्स पर अच्छी तरह से जानकारी दी जाए, तो मुझे लगता है आगे चलकर हम पीरियड्स की समस्या का बेहतर ढंग से हल निकाल सकते हैं लेकिन शिक्षा नीति में पीरियड्स जैसा मुद्दा गौण कर दिया गया है।
उस स्थिति में जब पिछले अध्ययनों में ये बात निकलकर आई हो कि स्कूलों का भौतिक वातावरण मासिक धर्म के समय महिलाओं को भावनात्मक सपोर्ट नहीं देता है और सतत् विकास लक्ष्य 6.2 में जब ये कहा गया हो कि 2030 तक महिलाओं और पुरुषों सभी के लिए स्वच्छता तक समान पहुंच हो तब पीरियड्स के मुद्दे पर स्पष्टता का अभाव चिंता को बढ़ाता है।
साथ ही मासिक धर्म के कारण होने वाली समस्याएं और मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन के प्रति जागरूकता की कमी छात्राओं के ड्राप आउट और नामांकन की कमी की समस्या पैदा करने वाले होते हैं। ऐसे में इतने महत्वपूर्ण मुद्दे पर कुछ भी स्पष्ट ना होना छात्राओं की शिक्षा प्राप्ति में मानसिक रूप से बाधक हो सकती है।
विद्यालयों में आज भी प्रार्थना के बाद होने वाली नियमित साफ-सफाई की चर्चा में सिर्फ बाल, आंख और नाखून की सफाई पर ही चर्चा होती है।संकोचवश पीरियड्स के दौरान आवश्यक साफ-सफाई की चर्चा हम करते ही नहीं हैं। ऐसे में नई शिक्षा नीति में पीरियड्स जैसे मुद्दे पर कुछ भी स्पष्ट रूप से ना कहना निराश करता है।