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“शैक्षणिक संस्थान अपने स्वार्थ से बाहर क्यों नहीं निकल पा रहे हैं?”

online class stress

online class stress Pic Credit- Getty images

पूरे देश में महामारी का दौर चल रहा है। भारत में 17 लाख से ज़्यादा कोरोना के मामले हैं। लोगों के व्यवसायों में लगातार घाटा हो रहा है, उसी बीच हमारे देश के कई शिक्षण संस्थान, नामी स्कूल कॉलेज अपना धंधा करने से बाज़ नहीं आ रहे हैं। लगातार बड़ी-बड़ी एडवर्टाइज़मेंट और फीस मांगने में पीछे नहीं हट रहे हैं।

स्कूलों और कॉलेजों वाले नहीं दे रहे फीस में छूट

ऑनलाइन शिक्षा ने सबका काम आसान बना दिया है लेकिन कॉलेज वाले और स्कूल वाले ज़बरदस्ती पूरी फीस वसूलने का कार्य कर रहे हैं एवं तरह-तरह की बातें भी हो रही हैं। जब बात आती है स्कूल जाने की तो कोरोना के कारण स्टूडेंट्स क्लास अटेंड करने के लिए शिक्षण संस्थान नहीं जा रहे हैं, घर से ही काम कर रहे हैं और शायद अध्ययन में रुकावट ना आए इसलिए ऑनलाइन पढ़ाई की ज़रूरत पड़ रही है।

इसका फायदा यह हुआ है कि बच्चों की पढ़ाई कम-से-कम रुकी नहीं है। हां, कुछ तबके ऐसे हैं जिन्हें डिजीटल डिवाइड के कारण मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है लेकिन दूसरी तरफ तमाम स्कूल और कॉलेज प्रशासन को अपनी मेंटेनेंस पर ज़्यादा खर्चा नहीं करना पड़ा है। जब तक ऑनलाइन क्लासेज़ चल रही हैं, फीस में छूट देनी चाहिए क्योंकि ज्यादातर स्टूडेंट्स अपना ही इंटरनेट यूज़ कर रहे हैं।

फीस कम करो ना!

जब तमाम स्कूलों और कॉलेजों आदि द्वारा ऑनलाइन क्लास की घोषणा की जाती है तो इंटरनेट का पैसा हमारी जेब से क्यों जाता है? यहां तक कि कुछ कॉलेज वाले इतने शातिर हैं कि वे आज भी लाइब्रेरी से लेकर कैंटीन की फीस आदि अन्य चार्जेज़ भी ले रहे हैं, जो कि गैर-कानूनी है।

महामारी के कारण सबकी जेब पर काफी ज़्यादा असर हुआ है। लोगों की सैलरी भी कट रही है, जिसका नतीजा हम लोग देख सकते हैं। हाल के कुछ दिनों में स्कूल और कॉलेज भी अपनी फीस ले रहे हैं लेकिन कई कॉलेज और स्कूल हद से ज़्यादा फीस मांग रहे हैं। समस्या फीस मांगने में नहीं है, समस्या हद से ज़्यादा पैसा लेना है।
कई जगह ऐसा भी हुआ है कि स्कूल पर टीचर्स को नौकरी से भी निकाल दिया गया है। अर्थात बेरोज़गारी की परिस्थिति दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। ऐसे में कॉलेज प्रशासन को फीस तो लेनी चाहिए लेकिन इतनी भी नहीं जिससे मध्यमवर्ग के परिवार कंगाली में आ जाए।

शैक्षिक संस्थानों को अपने स्वार्थ से बाहर निकलना होगा

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Getty Images
देश में ऐसे भी किस्से हैं कि स्मार्टफोन खरीदने के चक्कर में एक किसान को अपनी गाय बेचनी पड़ी ताकि उसके बेटे को ऑनलाइन शिक्षा प्राप्त हो सके। अर्थात जब भी महामारी का समय चल रहा है तो कॉलेज और स्कूल प्रशासन को और बेहतर तरीके से मैनेज करने के तरीके को अपनाना चाहिए जिससे दोनों को आर्थिक क्षति ना पहुंचे।
जिस समय स्कूल और कॉलेज प्रशासन को एक विद्यार्थी और माँ-बाप का सबसे ज़्यादा साथ देना चाहिए था, उस समय भी देश में ऐसे तमाम शिक्षण संस्थान सिर्फ अपना प्रॉफिट देख रहे थे। कई माता-पिता विवश हो गए होंगे कर्ज़ लेने के लिए।
बच्चे तो बच्चे शिक्षकों पर भी गहरा असर पड़ रहा है। कुछ शिक्षण संस्थान ऐसे भी हैं जो लगातार पांच से 6 घंटों की क्लास कर रहे हैं। इसमें कई बच्चों को इंटरनेट की सुविधा एवं कईयों को पीठ दर्द और आंखों में समस्या जैसी भी तकलीफों का सामना करना पड़ रहा है।
ऐसे भी कई दृश्य सामने आए हैं। शिक्षकों की सैलरी भी काटी गई है और उनसे ज़बरदस्ती काम भी कराया जा रहा है।अधिकांश को नौकरी से निकाल दिया गया।

पहले की स्थिति और नई शिक्षा व्यवस्था

बहुत लंबे अरसे बाद शिक्षा व्यवस्था में कुछ अच्छे बदलाव हुए हैं जो कि होने भी चाहिए थे, नहीं तो स्टूडेंट्स रट्टा मार कर परीक्षा में टॉप कर लेते थे। इस विधि में परिवर्तन लाने के लिए शिक्षा व्यवस्था में परिवर्तन लाना काफी ज़रूरी था। उसके साथ ही मातृभाषा को भी कहीं ज़्यादा महत्व देने की ज़रूरत थी।

एक अच्छा निर्णय लिया गया कि अगर आप पढ़ाई छोड़िएगा तो आपने तब तक जो भी मेहनत किया है वह व्यर्थ नहीं जाएगा। आपको डिग्री, डिप्लोमा या सर्टिफिकेट मिल ही जाएगा जिसका आपके जीवन में सकारात्मक महत्व होगा। इसके अतिरिक्त कुछ विषय जैसे म्यूज़िक आर्ट को करिकुलर एक्टिविटीज़ की तरह रखते हुए शिक्षा नीति में भी कई बदलाव आए हैं।

रिसर्च करने में M.Phil की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। ऐसे कुछ बदलाव हैं, जो परिवर्तन ला सकते हैं। पहले हमारे देश में सबसे ज़्यादा ज़ोर किताबी ज्ञान पर दिया जाता था ना कि व्यावहारिक ज्ञान पर, शायद यही कारण रहा होगा कि बच्चों में सिर्फ नंबर लाने की होड़ मची रहती थी लेकिन अब ऐसा नहीं होगा।

वास्तव में एक चीज़ हमेशा सबसे अहम रहती है, वह है आपकी स्किल, आपका एक अलग टैलेंट और यहां तक कि कई नामी बेशुमार अमीर लोग भी कॉलेज ड्रॉपआउट ही हैं।

अब अंतिम में सवाल यही उठता है कि इन शिक्षा नीतियों को वास्तव में अपनाने में स्टूडेंट्स और शिक्षकों को कितना समय लगेगा और जब शिक्षा हमारा मूलभूत अधिकार है, तो क्या शिक्षा हर व्यक्ति के लिए मुफ्त में हो पाएगी? यह शिक्षा प्रणाली आने वाले दिनों में कितनी कारगर साबित होती है, यह आने वाले दिनों में पता लग जाएगा।

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