छत्तीसगढ़ के जंगल जड़ी-बूटियों का खज़ाना हैं। यहां के आदिवासियों को इनके उपयोग और फायदों की बढ़िया जानकारी होती है। यह सिर्फ ज़मीन पर ही नहीं, बल्कि पानी में भी पाई जाती हैं। पानी में मिलने वाली जड़ी-बूटियों में से एक है गोंदला जड़ी, जो नदियों में पाई जाती है।
यह जड़ी सबसे अधिक छत्तीसगढ़ में ही पाई जाती है। आज-कल हमारे छत्तीसगढ़ के कुछ आदिवासी लोग गोंदला जड़ी की खुदाई करके उसको बेचकर अपने जीवन-यापन करते हैं।
गोंदला जड़ी छोटे पैमाने में नदी में पाई जाता है और इसे भुंजिया भाषा में बोथा भी कहते हैं। सबसे पहले गोंदला जड़ी की कुदाडी या रापा (फावड़ा) से खुदाई करते है। खुदाई करने के बाद जो जड़ी निकलती है, उसे पानी से धोके धूल और कंकड़ को निकाला जाता है।
फिर मुख्य जड़ी के अगल-बगल में जो छोटी जड़ियां होती हैं, उन्हें काटकर फेंक दिया जाता है। सिर्फ मुख्य जड़ी का ही उपयोग होता है। ज़्यादातर यह काम समुदाय की बुज़ुर्ग महिलाएं ही करती हैं। इस जड़ी की खुदाई जनवरी से मार्च महीने के बीच होती है।
इन महिलाओं में से एक हैं, गरियाबंद की रहने वाली बसनिन्न बाई भुंजिया। वह बताती हैं,
“मैं हर साल यह जड़ी इकट्ठा करके बेचती हूं। मुझे पेंशन नहीं मिलता और मैं और कुछ काम नहीं कर सकती, तो इसी काम से मेरा गुज़ारा होता है।”
महिलाएं जड़ी घर ले आती हैं। फिर जड़ी को धान की मिजाई से जो पैरा बचता है, उससे जलाती हैं। इसे पूरी तरह से नहीं जलाया जाता, सिर्फ जड़ी को साफ करने के लिए थोड़ा जलाया जाता है। फिर जड़ी को धूप में 2 से 3 दिनों तक सुखाया जाता है। अच्छे से सूखने के बाद इस जड़ी को बाज़ार में बेचा जाता है।
बाज़ार में जड़ी का मूल्य लगभग 15 से 20 रूपए तक का रहता है और इसका उपयोग बड़े पैमाने पर अगरबत्ती और परफ्यूम बनाने के लिए किया जाता हैं।
यह अगरबत्ती और पर्फ़्यूम पहले यहां नज़दीक के ही एग्रोक्रेट्स सोसायटी फॉर रुरल डेवलपमेंट में बनाए जाते थे लेकिन आज यह फैक्टरी बंद पड़ी है और इसका उत्पादन यहां नहीं होता।
यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजैक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, और इसमें Prayog Samaj Sevi Sanstha और Misereor का सहयोग है।